Saturday, July 4, 2009

अपनापन

अपने ही अवरोध बनेंगे अपने ही पतवार
मझधारों तक लायें अपने ,वे ही लगायें पार

नित्य निकलता सूर्य तमस से नित्य उसीमें लीन
गौरव की ऊंची उड़ान तब ,बाँध रहा क्यों हीन
अपनी ही परछाईं जीते ,जाए उसी से हार
अपना ही संघर्ष आपसे ,अपना ही विस्तार

बाहर से अर्गला है बंधन ,भीतर से आश्वस्ति
निज दृष्टी में उज्जवल रहना ,सबसे बडी प्रशस्ति
अपनों पर ही क्रोध हमारा अपनों पर आभार
अपनापन ही बोझ जगत का अपना ही विस्तार

पग पग पांव बढे आता है निकट शिखर आकाश
अनुरागी अपनेपन से मन छूता है विश्वास
सपने और अपने न रूठें यह जीवन का सार
अपनेपन की अपनी खेती ,अपनापन व्यापार

Wednesday, July 1, 2009

मैं बनाता रह गया श्रेष्ठता का काफिया
औ प्रतिष्ठा ले गया लूट कर एक माफिया

अनसुनी करते रहे वो हर गुहारो प्रार्थना
एक्शन जब हो गया तब कहा ये क्या किया

इस तरह से मत खुलो कि संतुलन खोना पडे
भांप कर मज्मूने खत हंस पडा था डाकिया

कष्ट किश्तों में भला या फ़िर गुलामी चाहिए
भींच ले तू मुठ्ठियाँ बदले हर इक जुगराफ़िया

तख्ता पलट होने में कितनी देर लगती है कहो
केन्द्र तब तक ही सुरक्छित अहम जब तक हांशिया

उद्विग्नता बढ़ती गयी ज्यों ज्यों निकट मंजिल हुई
कर दवा कुछ होश की ला पिला दे साक़िया

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