Tuesday, March 31, 2009

नदिया से तटबंधों की तकरार पुरानी है
सीता सहनशीलता ने दुर्गा की ठानी है
सूर्य उदित हो चला तमस छाया हो जाएगा
संकल्पों की धार नई तलवार पुरानी है

कर में लिए कृपाण काटते स्वयम हीनताएं
हृदय विवर से खींच निकाले सभी दीनतायें
समता की शक्ति धारण करने आव्हान करें
अन्यायों से , अनाचार से , रार पुरानी है

दुर्गम दुर्गों पर मन के अपना अधिकार रहे
निर्बल निर्धन सबल धनी से सम व्यवहार रहे
शत्रु रहित सतपथ पर नित जीवन निर्बाध चले
प्रार्थनाओं के
स्वर में यह मनुहार पुरानी है



Sunday, March 29, 2009

दिल का मौसम ,दर्द का मौसम
मीत बिना यह भीड़ का मौसम

खैरात के जंगल में खुद्दारी
बाढ़ों में बरसात का मौसम

नाम ऐ मोहब्बत लिखकर किसने
भेजा है जज्बात का मौसम

सच सहने का हुनर सीख लो
दुनिया है ऐबात का मौसम

किन अल्फाजो शाबासी दूँ
गर्दू पर है साज़ का मौसम

Wednesday, March 18, 2009

हल तो हर मुश्किल का है

असली सवाल पर दिल का है

दिल्ली बिल्ली होकर तो देखे

इस्लामाबाद भी चूहे कुल का है

कितना भी जहरीला सांप रहे

कितने ही गहरे बिल में हो

फैला ले फन कितना ही ,पर

अन्तिम दांव नकुल का है

Wednesday, March 11, 2009

ग़ालिब को छूना है ,धरती पर चलना है
काँटों की रिवायत को .फूलों में बदलना है

कोई राह नहीं लेकिन ,परवाह नहीं बिल्कुल
बस जिद है अपनी भी ,उस पार
निकलना है

संगसार किया सबने जब प्यार किया हमने
शीशे के घरोंदों को, ताजो में बदलना है

बारूद पे बैठे हो ,आतिश से न खेलो तुम
इस मौजे जवानी का दस्तूर फिसलना है

इस दर्दे मोहब्बत को गर्दूं ने बहुत झेला
अब के तो बरसना है अब के तो पिघलना है

मै होना चाहता हूँ

निर्मल सुखद बहती हुई जलधार,
अनवरत धूप में तरु एक छायादार
यही हो भूमिका व्यवहार का आधार
मै होना चाहता हूँ स्रोत अमृत द्वार

कर्म रण में समर के शौर्य का श्रंगार
निर्माण में सातत्य संलग्नता स्वीकार
प्रतिक्षा का समापन ,तोष का अनुस्वार
मै होना चाहता हूँ स्रोत अमृत द्वार

Monday, March 9, 2009

नजर में हूर उतरे और सुखन से नूर बरसेमुकाबिल हो अगर गर्दूं समझ लेना कि होली हैबधाई रंग-ऐ-मौसम की हवाएं गोद भर लायेंकलम जब रंग बरसाए ,समझ लेना कि होली है

नजर में हूर उतरे और सुखन से नूर बरसे
मुकाबिल हो अगर गर्दूं समझ लेना कि होली है
बधाई रंग-ऐ-मौसम की हवाएं गोद भर लायें
कलम जब रंग बरसाए ,समझ लेना कि होली है

Monday, March 2, 2009

तुम मिले


तुम मिले चम्पा चमेली हो लिए

मधु मालिनी मकरंद केसर घोलिए

शब्द निसृत हो रहे अमृत सरित

रूपरागी हूँ कमल मुख खोलिए

बहती रहे यह शब्द धारा

भीगता जिससे किनारा

श्रंगार की मनुहार में जीवन कटा

अनुरागकामी हूँ सतत सुख घोलिये

शब्द की माया प्रबल

अनुराग के धागे निबल

प्रेम का साधक निम्न्त्र्ण दे रहा

नित अनवरत प्रिय बोलिए

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