tag:blogger.com,1999:blog-14351647512406755232024-03-17T20:03:18.066-07:00सर्जनागर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.comBlogger99125tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-63244145939773865662023-12-23T08:31:00.001-08:002023-12-23T08:31:58.950-08:00कॉटे कितने भी हो पांव न घायल करना है तोहटा मिटा या बीन बान करमार्ग बनाना ही होगाकींचड़ कितना भी हो श्वांस स्वच्छ लेना है तोजीवन निर्मल रख़ना है तोसाफ इसे करना ही होगाप्रतियोगी तो सदा रहे हैसदा रहेगी स्पर्धा भले युद्ध तक यह पंहुचे इसे जीतना ही होगा संकल्पों तक है कठिनाईउसके आगे जय ही जय हैदीर्घ काल तक रहे काल-स्वइसे बचा रखना होगा<div><br></div><div>कॉटे कितने भी हो </div><div>पांव न घायल करना है तो</div><div>हटा मिटा या बीन बान कर</div><div>मार्ग बनाना ही होगा</div><div><br></div><div>कींचड़ कितना भी हो </div><div>श्वांस स्वच्छ लेना है तो</div><div>जीवन निर्मल रख़ना है तो</div><div>साफ इसे करना ही होगा</div><div><br></div><div>प्रतियोगी तो सदा रहे है</div><div>सदा रहेगी स्पर्धा </div><div>भले युद्ध तक यह पंहुचे </div><div>इसे जीतना ही होगा </div><div><br></div><div>संकल्पों तक है कठिनाई</div><div>उसके आगे जय ही जय है</div><div>दीर्घ काल तक रहे काल-स्व</div><div>इसे बचा रखना होगा</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-80586741784531207492023-08-28T04:16:00.001-07:002023-08-28T04:16:25.632-07:00यहां हर एक अंधा है कोई भक्ति में कोई विरोध में यहां हर एक गुलाम है कोई प्रमाद का कोई विषाद कायहां हर एक विवादी हैकोई वादी है कोई प्रतिवादी हैपर संतुलित नहीं है कोईसमाधान का हिस्सा नहीं होना चाहता कोईक्यों कि सबको पता है वो स्वयं ही अपने स्थान पर अपनों के लिए समस्या हैजिस दिन आप होने लगेंगें समाधान का हिस्साआपके आसपास सौंदर्यमय जीवन जन्मने बढ़ने लगेगा शेष दुनिया के नर्क में भी आपकी प्रेरणा जाती रहेगी<div>यहां हर एक अंधा है </div><div>कोई भक्ति में कोई विरोध में </div><div>यहां हर एक गुलाम है </div><div>कोई प्रमाद का कोई विषाद का</div><div>यहां हर एक विवादी है</div><div>कोई वादी है कोई प्रतिवादी है</div><div>पर संतुलित नहीं है कोई</div><div>समाधान का हिस्सा नहीं होना चाहता कोई</div><div>क्यों कि सबको पता है </div><div>वो स्वयं ही अपने स्थान पर अपनों के लिए समस्या है</div><div>जिस दिन आप होने लगेंगें समाधान का हिस्सा</div><div>आपके आसपास सौंदर्यमय जीवन जन्मने बढ़ने लगेगा </div><div>शेष दुनिया के नर्क में भी आपकी प्रेरणा जाती रहेगी</div><div><br></div><div>28 august 2022 फेसबुक पर पोस्ट</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-33945675173020630382023-08-22T04:14:00.001-07:002023-08-22T04:14:18.650-07:00लालकिला / मणिपुर/ सियासत <div>लालकिला / मणिपुर/ सियासत</div><div><br></div><div>मेले हैं झमेले हैं अकेले हैं यहां इस दुनियादारी में</div><div>बहुत कुछ, रखना पड़ता है, यहां पर पर्दादारी में</div><div><br></div><div>तौल-ले-बोल तभी मुंह खोल इल्मदां आए हैं कहते</div><div>सियासत कब जला दे क्या ? तेरी, ईमानदारी में </div><div><br></div><div>वो आए घर,बराएशौक,किया सिजदा,दिया सदका </div><div>तोहमतें,, नाम कर दी, फिर ,मेरी तीमारदारी में</div><div><br></div><div>सांप की बस्तियों में ,खोल ,दरखिड़कियां रखिए</div><div>इरादा जो भी हो ,शक है ,सलह में ,समझदारी में</div><div><br></div><div>तोडेगा न छोड़ेगा , रहे कोई , दोस्त या दुश्मन </div><div>सियासत दुश्मनों से ,और मुहब्बत फूल यारी में </div><div><br></div><div>ग़रदू</div><div>22अगस्त 23 को फेसबुक पर प्रकाशित</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-53637276852469184832023-08-22T03:58:00.001-07:002023-08-22T03:58:45.830-07:00प्रिय अभिषेक प्रिय के लिए<div>अहो विकट</div><div>प्रिय मधु मादक </div><div>हास्य चेतना एक साथ</div><div>अद्भुत विवेक का यह विलास</div><div>सुर ताल गति नव नवल छंद</div><div>सुरभित मकरित मृदु हास छंद</div><div>गाता शिक्षा का कुरुज्ञान </div><div>ऐसी पींगें ऐसी उड़ान</div><div>छोटा न हो जाए वितान</div><div>समकालिक समर्थ रचना महान</div><div>कवि का कुल का हो यशोगान</div><div>धन्य धन्य अभिषेक तान</div><div><br></div><div>महामना के उद्गार</div><div>फेसबुक पर 22/अगस्त2021 को प्रकाशित</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-18083360927370451812023-07-21T19:35:00.001-07:002023-07-21T19:35:06.611-07:00जीवन नहीं रुका करते है कुछ जीवन रूक जाने सेगरलपान कर अमिय बॉटने का संकल्प और दृढ़ होयद्यपि वह वीभत्स देखकर सिहर गया मन सहमा हैउधर गिरे इक माँ के आँसू इधर कई आँचल भीगेपांचाली का अपराधी, क्या केवल दुर्योधन था यामोह मदांध शकुनि के पांसो में फंसे युधिष्ठिर भीमूल्यों का संस्थापन करने अब समाज मन सुदृढ़ हो अच्छा है तुम्हें ग्लानि जगी , क्यों कि तुम संस्कारी होठगी गई बालाओं पर भी कभी पसीजा क्या मन यहसभ्यताओं पर क्रोध करो जिनका जीवन व्यभिचारी हैदिशाबोध दे करो नियंत्रण आपराधिक यह लाचारी हैसंकल्प करो दंडित करने का शौर्य हमारा सुदृढ़ होबहिष्कार है कायरता कुछ वीरोचित आभियान करोकृष्ण राम की तरह क्रूर अन्यायी पर संधान करो कुछ अर्जुन तैयार करो कुछ भीम भूमि पर खड़े करोमन विस्तार करो स्व का ,मत स्वांतसुखाय सिकुड़ रहोस्वयंप्रभा से करो समुज्ज्वल जगती का सम्बल सुदृढ़ होममजीवन नहीं रुका करते है कुछ जीवन रूक जाने से<div>गरलपान कर अमिय बॉटने का संकल्प और दृढ़ हो</div><div><br></div><div>यद्यपि वह वीभत्स देखकर सिहर गया मन सहमा है</div><div>उधर गिरे इक माँ के आँसू इधर कई आँचल भीगे</div><div>पांचाली का अपराधी, क्या केवल दुर्योधन था या</div><div>मोह मदांध शकुनि के पांसो में फंसे युधिष्ठिर भी</div><div>मूल्यों का संस्थापन करने अब समाज मन सुदृढ़ हो </div><div><br></div><div>अच्छा है तुम्हें ग्लानि जगी , क्यों कि तुम संस्कारी हो</div><div>ठगी गई बालाओं पर भी कभी पसीजा क्या मन यह</div><div>सभ्यताओं पर क्रोध करो जिनका जीवन व्यभिचारी है</div><div>दिशाबोध दे करो नियंत्रण आपराधिक यह लाचारी है</div><div>संकल्प करो दंडित करने का शौर्य हमारा सुदृढ़ हो</div><div><br></div><div>बहिष्कार है कायरता कुछ वीरोचित आभियान करो</div><div>कृष्ण राम की तरह क्रूर अन्यायी पर संधान करो </div><div>कुछ अर्जुन तैयार करो कुछ भीम भूमि पर खड़े करो</div><div>मन विस्तार करो स्व का ,मत स्वांतसुखाय सिकुड़ रहो</div><div>स्वयंप्रभा से करो समुज्ज्वल जगती का सम्बल सुदृढ़ हो</div><div><br></div><div>मम<br></div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-47121666600864618022023-07-21T19:22:00.000-07:002023-07-21T19:23:00.478-07:00दुनिया की सेहत को अच्छे रंग बिरंगे लोगलेकिन नहीं चाहिए भैया रंग बदलते लोग<div>दुनिया की सेहत को अच्छे रंग बिरंगे लोग</div><div>लेकिन नहीं चाहिए भैया रंग बदलते लोग</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-76933168829289837722023-05-22T09:12:00.002-07:002023-05-22T09:13:27.504-07:00आप चाहेंगे तो गाएंगे गीत वे आएगी गंध जिनमें बस प्रेम कीआप चाहेगें तो गाऐंगे मेघ वे_ बरसे जो नयनों से बरसों- बरसगाती कोयल फुदकती गौरैया मिलीजब आए कोई देने दाना उन्हेंपाईं राधा की मीरा की अनुभूतियांजब जब मिले जैसे कान्हा उन्हेंआप कह दें तो कह दूं सभी उलझनेजो सुलझांई हैं तुमने बरसो बरसप्रेम पल भर का भी होता है अमरजिसका परिणाम जग को मधुमय मिलेसौ गुना भाग्य है उस हृदय का अहोजिसमें रहने की इच्छा तुम्हारी जगेभाग्यशाली हैँ वे चाँद तारे सभी जो तकते रहे तुमको बरसों बरसआज भी तुम टटोलो अपने हृदयएक मूरत मिले खिलखिलाती हुईजिसपे तुम भी चढ़ाए, शतदलकमल फूलो के दल रानी चंपा जुही भीगता ही रहा ,पर कह न सकाएक बदली से मन की बरसों बरसमहामनाआप चाहेंगे तो गाएंगे गीत वे <div>आएगी गंध जिनमें बस प्रेम की</div><div>आप चाहेगें तो गाऐंगे मेघ वे_ </div><div>बरसे जो नयनों से बरसों- बरस</div><div><br></div><div>गाती कोयल फुदकती गौरैया मिली</div><div>जब आए कोई देने दाना उन्हें</div><div>पाईं राधा की मीरा की अनुभूतियां</div><div>जब जब मिले जैसे कान्हा उन्हें</div><div>आप कह दें तो कह दूं सभी उलझने</div><div>जो सुलझांई हैं तुमने बरसो बरस</div><div><br></div><div>प्रेम पल भर का भी होता है अमर</div><div>जिसका परिणाम जग को मधुमय मिले</div><div>सौ गुना भाग्य है उस हृदय का अहो</div><div>जिसमें रहने की इच्छा तुम्हारी जगे</div><div>भाग्यशाली हैँ वे चाँद तारे सभी </div><div>जो तकते रहे तुमको बरसों बरस</div><div><br></div><div>आज भी तुम टटोलो अपने हृदय</div><div>एक मूरत मिले खिलखिलाती हुई</div><div>जिसपे तुम भी चढ़ाए, शतदलकमल </div><div> फूलो के दल रानी चंपा जुही </div><div>भीगता ही रहा ,पर कह न सका</div><div>एक बदली से मन की बरसों बरस</div><div><br></div><div>महामना</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-32857253366221395582023-03-31T21:51:00.001-07:002023-03-31T21:54:58.506-07:00संसार तो छलिया है अंधेर है डगर डगरकीच और काँटों से निज को ही बचना हैपग पग पे प्रलोभन हैं फूलो में हैँ नाग बसेया तो शिव होना है या संभल निकलना हैआभार भार होता उपहार हार होताकिसकी है नीयत कैसी यह आप समझना हैमहामना<div>कहते तो यही हैं सब यह ईश की रचना है </div><div>धूप छाँव सुख दुख हमको ही चखना है </div><div>संसार तो छलिया है अंधेर है डगर डगर</div><div>कीच और काँटों से निज को ही बचना है</div><div>पग पग पे प्रलोभन हैं फूलो में हैँ नाग बसे</div><div>या तो शिव होना है या संभल निकलना है</div><div>आभार भार होता उपहार हार होता</div><div>किसकी है नीयत कैसी यह आप समझना है</div><div>महामना</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-24531608946035926112023-02-04T20:02:00.001-08:002023-02-04T20:05:37.759-08:00इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई<div>इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई</div><div>बात जरा सी बढ़ गई</div><div><br></div><div>राज धर्म था जिन्हें पालना </div><div>यही राज शिशु हो गए</div><div>जन जन को पोषण देना था</div><div>क्षीर स्वयं ही पी गए </div><div>दीनदयाल जिन्हें होना था</div><div> वह दीनदरिद्र हुए हैं</div><div>रामनाम की ओढ़ ओढ़नी</div><div>दशुमख चारित्र्य जिए हैं</div><div>जिनसे जपी मुक्ति की माला</div><div>उनसे हीं युक्त हुए है </div><div>अकड़ गईं है इन की गर्दन </div><div>इतनी चर्बी चढ़ गई</div><div>इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई</div><div>बात जरा सी बढ़ गई</div><div><br></div><div>कैडर कैडर गीत पेलते</div><div>घरवाली का टिकट निकाला</div><div>रहे टापते कर्ताधर्ता</div><div>माल जहॉ से मिला निकाला</div><div>पॉच साल बुर्के में काटे</div><div>ओढ़ आए फिर राम दुशाला</div><div>मोदी जी की पूंछ पकड़</div><div>फिर_ वैतरणी. पार करेंगें</div><div>चाँदी के जूतों के सहारे</div><div>. टिकट जुगाड़ करेंगें </div><div>छल छ्द्मों की राजनीति </div><div>इनके चरित्र पे चढ़ ग्ई</div><div>इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई</div><div>बात जरा सी बढ़ गई</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-68526888506980950672023-02-04T19:58:00.001-08:002023-02-04T20:05:08.245-08:00.सिखा न पाए जो प्रेम करनाजगा न पाए संवेदनाए <div> सिखा न पाए जो प्रेम करना</div><div>जगा न पाए संवेदनाए</div><div>उसे कहेंगे हम कैसे शिक्षा</div><div>जो काट देती है अपने घर से </div><div><br></div><div>यदि किया है भजन राम का</div><div>तो छोड़ दो हरना सीता मेंया</div><div>हो संस्कारी यदि सनातन</div><div>तो फिर बचा लोगे माई गैया</div><div>यदि न बांटे उजाले तुमने</div><div>फिर कैसे हो तुम सूर्यवंशी </div><div>जो तुमको रक्षक बना न पाए</div><div>छुड़ा न पाए जो भेद भाव</div><div>उसे कहेंगे हम कैसे भक्ति</div><div>जो हो रही है किसी के डर से </div><div><br></div><div>करते हों चोरी राजपुरूष ही</div><div>तब कैसे कहिए बचे सुशासन</div><div>हुए प्रमादी यदि प्रशासक</div><div>कौन संभालेगा अनुशासन</div><div>साधू करने लगे ठगी यदि</div><div>कौन करेगा होम हवन . .</div><div>जो खा रहे है खेत अपने</div><div>भूल गए है जो धर्म अपने</div><div>उन्हें कहेंगें हम कैसे रक्षक</div><div>मरें न आतंकी जिनके डर से .</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-11849808789420175072023-02-04T19:51:00.000-08:002023-02-04T19:51:04.928-08:00रामराज स्थापना अब यही राष्द्र आराधना <div>रामराज स्थापना अब यही राष्ट्र आराधना</div><div>इक दूजे से विनय करें हम करें यहीं बस प्रार्थना</div><div><br></div><div>राम भुवन निर्माण की बेला संकल्प हमें भी करना है</div><div> शुचिता शुभता जनकल्याणी भाव हृदय में भरना है</div><div>मानवता की सुगंध फैले ऐसे सुरभित कर्म करें </div><div>बनने लगा राम का मंदिर रामराज की ओर चले</div><div>देह देव भौतिक तापों से मुक्ति की है कामना</div><div>उल्लासित मन हुआ मयूरा राम राम हर भावना</div><div><br></div><div>देशोत्तम , पुरुषोत्तम की आभा से संयुक्त हुआ </div><div>प्यासी भक्ति तरस रही थी आज राष्ट्र संतृप्त हुआ</div><div>विजय मार्ग में आने वाली बाधाओं को हरना है </div><div>शौर्य त्याग निष्ठा करुणा के भाव हृदय में धरना है</div><div>श्रम साधक की आराधक की पूरी हो हर साधना </div><div>भ्रष्टाचार भूख और भय की मिटे हर एक संभावना</div><div><br></div><div>ज्ञान और विज्ञान समुन्नत निर्माणों का ध्येय धरें</div><div>धरे विमल मति हृदय प्रेम गति निर्मल मर्यादा वरण करें</div><div>अपने अपने हिय मंदिर में राम प्रतिष्ठित करना है </div><div>अपने रावण से मुक्ति ले देह अयोध्या करना है</div><div>रामराज्य लाने की जागी चहुं दिशा जनभावना</div><div>भरत भूमि भारत में होगी राम राज्य स्थापना</div><div><br></div><div>महामना जगदीश गुप्त</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-25025207020985537232020-03-26T22:38:00.001-07:002020-03-26T22:38:02.284-07:00<div>मैंने तो बस गोली एक ही दागी थी</div><div>तुम मरही गए मेरी मासूमियत पर</div><div><br></div><div>मैं खेल ही तो रहा था पेट्रोल बमों से</div><div>तुम्हें अब भी शक है मेरी नीयत पर</div><div><br></div><div>पत्थर उड़ कर आए थे मेरे हाथों में </div><div>क्या बरसाता और तुम्हारे स्वागत पर</div><div><br></div><div>तेरा सर फूटा या किसी की आंख गई</div><div>मैं तो कायम था मेरी इबादत पर</div><div><br></div><div>तुम मेरी तरह कभी हो ही नहीं सकते</div><div>ज्यादा से ज्यादा आओगे, तोहमत पर</div><div><br></div><div>तुम समझते हो कि मैं समझता नहीं</div><div>हंसू या रोऊं तुम्हारी जाहिलियत पर</div><div><br></div><div>एक है उलझन काफिर बनाए किसने</div><div>झल्लाऊं खुदा पर या शैतानियत पर</div><div><br></div><div>शैतान, बनाया किसने और किसलिए</div><div>हैरान परेशान हूं उसकी हैवानियत पर</div><div><br></div><div>जालिम को अपना कह जो माफ करे</div><div>जो भी हो वह धब्बा है इंसानियत पर</div><div><br></div><div>ग़रदूं</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-35904960650477616342020-03-26T22:36:00.001-07:002020-03-26T22:37:30.853-07:00<div>जुबां खानदान का पूरा पता देती है </div><div>सीरतोअक्ल और इल्म बता देती है</div><div><br></div><div>घुस आए हैं उन्ही को डर लगता है </div><div>चोर की दाढ़ी बूटे का पता देती है</div><div><br></div><div>घिर के आई ये कारी बदरिया कैसी</div><div>हवा की मौज मौसम का पता देती है </div><div><br></div><div>बयां पे हंसते रहे उनके कोतो काजी </div><div>आंख की चाल शरारत का पता देती है </div><div><br></div><div>गंरदू को नहीं मालूम तुम्हारी तबियत</div><div>जर्द सूरत ही बीमारी का पता देती है </div><div><br></div><div>ग़रदू गाफिल</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-78338146195538751822020-03-26T22:29:00.000-07:002020-03-26T22:29:14.761-07:00<div>घरवाली और घरवाले में दंगा हो गया </div><div>बीवी निकली दबंग आदमी नंगा हो गया</div><div> </div><div>गुस्ताखी बस इतनी सी पतिदेव ने कर दी</div><div> मांगा था नेकलेस हाथ में लाकर चैन ही धर दी</div><div>चैन भी क्या थी दुबली पतली दो तोले की माशा </div><div>इसी बात पर सुबह शाम का हो गया खूब तमाशा</div><div>ऐसा मिला निखट्टू इससे कौन लगाऊं आशा</div><div>हाय हाय बादाम बताकर पकड़ा दिया बताशा</div><div>होली हुई दिवाली में और दिवाली....होली</div><div>पूरा सीजन निकला , वैलेंटाईन कतई न बोली</div><div>जी भर कोसा गाली भी दी और बहाई गंगा</div><div>धू-धू करके शंमा जली और साथ में जला पतंगा</div><div>फिर चैन वैन सब उजड़ा पंगा हो गया</div><div>एक दिन किसी के घर में यूं दंगा हो गया</div><div><br></div><div>बड़े चैन से कटते थे दोनों के दिन रात</div><div>घूमते फिरते रहते थे लिए हाथ में हाथ</div><div>हम हैं लैला मजनू ..कभी ना छूटे अपना साथ</div><div>खाया करते थे यूं कसमें बात बात बेबात</div><div>कल्लू कालू पर करती थी गोरी जब बरसात</div><div>देख देखकर जलती थी रंडवो की बारात</div><div>देख एक विज्ञापन हीरा सदा के लिए है</div><div>बोलगया फिर बड़ा -"निछावर" अदा के लिए है</div><div>दौड़ा भागा पति बहुत पर हुआ ना कोई जुगाड़</div><div>यूं चांदी का चमचा आखिर हो के रहा कबाड़</div><div>रांझा बन गई बिल्ला हीर भी रंगा हो गया</div><div>एक रोज किसी के घर में यूं दंगा हो गया</div><div><br></div><div>ऐसा उनमें मेल मिसाले देते थे सब लोग</div><div>पीस पीस कर दांत मसलते थे हाथों को लोग</div><div>लेते थे चटकारे भर भर के मस्साले लोग</div><div>हुआ नहीं वह भी कहते थे दिल के काले लोग</div><div>लगी निगोड़ी हाय बद्दुआ जब उसे मिला वेटेज</div><div>करते हैं जो प्यार घणी से घर लाते हैं प्रेस्टेज</div><div>प्रेस्टीज का प्रश्न बन गया कुकर ने मारी सिट्टी</div><div>होना था फिर वही हुआ पति को लग गई पट्टी</div><div>आखिरकार मोहब्बत उन ने इस तरह से खर्ची </div><div>इस ने ले ली हाथ में मिट्टी उसने ले ली मिर्ची</div><div>बचे न सर पर बाल बेचारा "कंघा" हो गया.</div><div>एक रोज किसी के घर में यूं दंगा हो गया</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-5660995417365392952020-03-23T20:41:00.000-07:002020-03-23T20:45:12.557-07:00मन में पीड़ाएं बहुत हैं क्या कहें और क्या सुनेंछ्ल रहे हैं हम हमें ही क्या गुनें और क्या चुनें ?<div>मन में पीड़ाएं बहुत हैं क्या कहें और क्या सुनें</div><div>छ्ल रहे हैं हम हमें ही क्या गुनें और क्या चुनें ?</div><div><br></div><div>छांह तो मिलती है लेकिन राह खो जाती यहां</div><div>सम्वेदना भी वेदना के साथ सो जाती यहां</div><div>श्रमशील उद्यमिता जुटी है ताम्रपत्रों के लिए</div><div>और विलखता है इधर जीवन चरित्रों के लिए</div><div>आश्रमों में भगदड़े है होड़ वैभव के लिए</div><div>और तिरस्कृत त्याग तकता राह आश्रय के लिए</div><div>मन बसा है मूल्य में और तन रमा सुविधाओं में</div><div>श्रेष्ठंता निकृष्टता में भेद करना है कठिन</div><div>साधनों ओर साधना में आज हम किसकी सुनें</div><div><br></div><div>प्रश्नवाचक हो गए हैं मित्र भी और शत्रु भी</div><div>खो गए हैं धैर्य सारे धर्म के सब सूत्र भी</div><div>कुछ ढूढ़ना सभव नहीं जब दृष्टि ही अन्यत्र है</div><div>नवकुसुम की गंध में मदअंध करता इत्र हैं</div><div>गुरूपीठ पर है विकृ दर्पण लोभ मय है साधना</div><div>रस कहां से पाए जीवन समरस नहीं जब भावना</div><div>मुख फंसा है व्यंजनों में सुख है सरल अभिधाओं में</div><div>अनुशासितो भयशासितो में भेद करना है कठिन</div><div>अनुभूति या विभूतियों में हम कहो क्रिसकी सुने</div><div><br></div><div>गीत तो उगते हैं लेकिन लय तनिक सधती नहीं</div><div>बांसुरी खुलती है तो मृदुअंग बजती ही नहीं</div><div>भोग से भागा मगर जोग सध पाया नहीं</div><div>रात आधी हो चली मन लौट कर आया नहीं</div><div>कैसे काटेंगे फसल जब बीज ही बोया नहीं</div><div>व्यासत्व संभव ही नहीं निजता को यदि खोया नहीं</div><div>किसकी मानें प्रेम की या राज की दुविधाओं में</div><div>क्या सुखद है क्या दुखद है भेद करना है कठिन</div><div>चाहना और चेतना में अब हम कहो किसकी सुनें</div><div><br></div><div>महामना२४/३/१९ २:२२ अपरान्ह</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-65096143735348558762019-12-31T18:10:00.001-08:002019-12-31T18:10:54.329-08:00शौक ये उम्रsभर लगाए रहिएमिजाज इश्किया बनाए रहिए बड़ा <div>शौक ये उम्रsभर लगाए रहिए</div><div>मिजाज इश्किया बनाए रहिए </div><div><br></div><div>बड़ा एहसान आपका होगा</div><div>हमको सीने से लगाए रहिए</div><div><br></div><div>बड़ी बारीक है नज़र उनकी</div><div>उनसे कुछ फासले बनाए रहिए</div><div><br></div><div>हर कदम फूल खिलेंगे , तय है </div><div>अपनी ये शोखियां बचाए रहिए</div><div><br></div><div>रफ्ता रफ्ता मुकाम तय होंगे</div><div>दिल में बस मंजिले बसाए २हिए</div>गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-15559380697186744102019-08-25T21:02:00.001-07:002019-08-25T21:03:13.092-07:00कारवां ए-तूफां गुजारा कहां है<p dir="ltr">बड़े दिनों के बाद अफातु भाषा की एक रचना</p>
<p dir="ltr">कारवा ए तूफां गुजारा कहां है <br>
अभी संग ढ़ग से उछाला कहां है</p>
<p dir="ltr">उड़ जाएगें तमाम हमामों के पर्दे<br>
अभी जोश ने जोश पाला कहां है</p>
<p dir="ltr">अभी अपने अहलेअहद में हैं बैठे <br>
औ कोई परचम निकाला कहां है</p>
<p dir="ltr">गुलूकार हम भी हैं माहिरे फन<br>
हमें मौसिकी ने संभाला कहां है</p>
<p dir="ltr">ऐ ग़रदूं गज़ल तेरी है ये अधूरी<br>
अभी इश्क इसमें डाला कहां है</p>
गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-89416881385316323762019-08-25T20:59:00.001-07:002019-10-20T06:36:57.825-07:00जब से तुमने राम कहा<p dir="ltr">जब से तुमने राम कहा , राम हुआ जाता हूं<br>
प्रस्तर था सम्मुख तेरे प्रतिमान हुआ जाता हूं</p>
<p dir="ltr">उजला उजला कह कर, सारी कालिख धो दी<br>
कीचड़ कीचड़ अंगनांई में तुलसी तुलसी बो दी<br>
आलोकित मंदिर कर डाला ज्योतित कर दी कुटिया <br>
जर्जर जीवन अभिलाषा को दे दी एक लकुटिया <br>
दूषित कलुषित अपयश था यशगान हुआ जाता हूं<br>
कामुक था सम्मुख तेरे निष्काम हुआ जाता हूं </p>
<p dir="ltr">जब से तुमने राम कहा , राम हुआ जाता हूं<br>
प्रस्तर था सम्मुख तेरे प्रतिमान हुआ जाता हूं</p>
<p dir="ltr">प्रियवर प्रियवर कह कर मेरे कांटे सभी निकाले<br>
क्रोध घृणा मत्सर नकार के शांत किए सब छाले<br>
नेह प्रीत अभिसिंचित कर द्वेष और क्लेष बहाया<br>
हीन पतित जग जीवन में उत्स और मोद जगाया <br>
गरलताल था ,अमृतसर रसखान हुआ जाता हूं<br>
अरिसुर था सम्मुख तेरे लय धाम हुआ जाता हूं</p>
<p dir="ltr">जब से तुमने राम कहा , राम हुआ जाता हूं<br>
प्रस्तर था सम्मुख तेरे प्रतिमान हुआ जाता हूं</p>
<p dir="ltr">"महामना" जगदीश गुप्त</p>
गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-29919062024882334492019-06-26T11:40:00.001-07:002019-09-15T00:52:51.591-07:00उर्दू एक विशलेषण<p dir="ltr"><u>खाद्य</u> वैज्ञानिक अन्वीक्षण अनुसंधान करके यह बताते हैं<br>
कि कुछ मिश्रण औषधि बन जाते हैं <br>
किंतु<br>
कुछ मिश्रण घातक विष बन जाते हैं </p>
<p dir="ltr">इस पटल पर भाषा पर  प्रयोग करने वाले वैज्ञानिक हैं <br>
आपने भी भाषा के प्रभावों को अनुभव किया होगा </p>
<p dir="ltr">कुछ  अन्वीक्षण अनुभव मेरे भी हैं <br>
आपके अनुभव में इनका विस्तार या प्रतिकार जो भी हो कृपा कर साझा करेंगें </p>
<p dir="ltr">अखंड भारत के विभाजन के लिए अनेक अध्येता इस्लाम को उत्तर दायी ठहराते हैं <br>
किंतु बांग्लादेश के जन्म का अनुभव इसका खंडन करता है <br>
बांग्लादेश बना क्यों कि उर्दू भाषी बांग्लाभाषी को अपने ऊपर स्वीकार नहीं कर सकते । संवैधानिक रूप से बहुमत में आने के उपरांत भी अपना नेता नहीं मान सके । बांग्ला भाषियों को स्वयं से हीन व निम्न मानने की ग्रंथि उनमें थी ।</p>
<p dir="ltr">अर्थात अपवाद छोड़कर अन्य भाषाओं व भाषियों पर प्रभुत्व की लालसा उर्दूभाषियों में होती है </p>
<p dir="ltr">ऐसा क्यों होता होगा </p>
<p dir="ltr">कुछ कारण ध्यान में आते हैं </p>
<p dir="ltr">उर्दू का अर्थ छावनी है और यह शब्द छावनीमें बोली जाने वाली भाषा के लिए रूढ़ हो गया है।<br>
छावनी युद्ध के लिए निकले सैनिकों के पड़ाव को कहते है <br>
युद्धरत की सैनिक मानसिकता ही उर्दू बोलने वाले की मानसिकता बन जाती है अपवाद छोड़ कर ।</p>
<p dir="ltr">वैसे तो उर्दू एक बोली के रुप में विकसित हुई थी क्यों कि भारत के राज्यो को लूटने आए मूल लुटेरे आक्रमणकारी ' ,सैनिक व सेनापति रेगिस्तानी राज्यों यथा अरबी फारसी या तुर्की भाषाई होते थे । उन्हें आपस में व  भारतीय नागरिको विशेषकर स्थानीय स्तर पर नियोजित गए स्थानीय सैनिकों व सहायकों व दासों से संवाद के लिए प्रयास करने होते थे । इन्हीं प्रयासों में हिंदी वाक्य विन्यास में आक्रमणकारी सैनिक अपनी भाषाओं के शब्द भी प्रयोग करते थे I नियमित उपयोग होने से स्थानीय सेवको व सैनिकों ने यह शब्द सीख लिए। <br>
वे अपने स्वामियों / सेनापतियों को प्रसन्न करने अधिकाधिक शब्द प्रयोग कर उनकी कृपा व पुरूस्कार पाने का प्रयास करते। <br>
आज भी उर्दू रचनाकारों व बोलने  वालों के मन में यह चाटुकारिता का भाव व पुरस्कार का लालच महत्वपूर्ण कारण होता है </p>
<p dir="ltr">शेष ..</p>
<p dir="ltr">भारत में तब भी विशुद्ध अरबी विशुद्ध फारसी व विशुद्ध तुर्की साहित अनेक विदेशी भाषाओ के विद्वान थे । व्यापार व राज्यकी सुरक्षा के लिए यह आवश्यक भी था ।</p>
गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-52491577478702110612019-06-26T11:38:00.001-07:002019-06-26T11:38:19.395-07:00तू जला दे शौक से ग़रदूं को घर का गम नहीं
पर ये वादा कर यहां से रोशनी ले जाएगा
तेरे घर चूल्हा जले जलती रहें आंते मेरी
मुस्कुरा लूंगा अगर भर पेट तू मुस्काएगा<p dir="ltr">तू जला दे शौक से ग़रदूं को घर का गम नहीं<br>
पर ये वादा कर यहां से रोशनी ले जाएगा<br>
तेरे घर चूल्हा जले जलती रहें आंते मेरी<br>
मुस्कुरा लूंगा अगर भर पेट तू <u>मुस्काएगा</u></p>
गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-66639936492861918412019-05-16T12:07:00.002-07:002023-05-22T09:13:38.042-07:00रौशनी के दिए हाथों में लिए <p dir="ltr">रौशनी के दिए<br>
हाथों में लिए <br>
बांटते जाएंगे <br>
प्रेम सुरभित सुमन<br>
सिंहवीरो की है<br>
ये पावन धरा <br>
मां भारती तुझे <br>
शत शत नमन</p>
<p dir="ltr">हम स्वयं ही बने <br>
धूप भी होम भी <br>
हम स्वयं का करें <br>
आचमन हितवतन<br>
तिल तिल जलें<br>
तेरी पूजा में हम<br>
बांधा तेरे लिए मां <br>
सर पे कफन</p>
<p dir="ltr">दूषणों के लिए<br>
अग्नि का पुंज हैं<br>
भूषणों के लिए<br>
पुष्प के कुंज हैं<br>
निर्मिति के लिए<br>
श्रम के साधन हैं हम<br>
स्वेद सरिताओं से <br>
कर रहे हैं सृजन<br></p>
<p dir="ltr">मां के श्रृंगार को<br>
मां के उत्कर्ष को<br>
मां के उल्लास को<br>
माता के हर्ष को<br>
हम कटिबद्ध हैं<br>
स्वयं प्रतिब्दह हैं<br>
आत्मआहूतियां दे<br>
कर रहें हैं हवन </p>
<p dir="ltr">भू का मंडल कोई<br>
अंतरिक्ष शून्य हो<br>
हर कहीं भारती का<br>
प्रशस्ति पुण्य हो<br>
दिव्य की चेतना<br>
भव्य आयोजना<br>
मातृभू के लिए<br>
सहेंगें हर तपन</p>
गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-26249016840730722372019-04-09T19:41:00.001-07:002019-04-09T20:47:34.981-07:00सरस नदी सी बहती हो
मेरे मन में रहती हो
मैं पत्थऱ घाट किनारे का
तुम छ्ल छ्ल छूती रहती हो
विहगों सी है ऊंची उड़ान
कोकिल कंठी सुर मधुर तान
विमल नवल तुम धवल कंवल
मैं कंटक युति सांवल सेमल
तुम शांत सरल मर्यादा में
मुझे पल पल सहती रहती हो
हिरण्यमयी द्युतिं कांति किरण
मोहक मृदुला मधुहास अरूण
तुम हो प्रभात की शुभ बेला
में काम क्रोध मद मंद-पुंज
मै हूं ज्वर का उत्ताप श्रृंग
तुम दल -दल झरती रहती हो
स्पर्शो की अनुभूति
अंतरतम शीतल करती है
तुम सुमन कली सी लज्जा में
मैं बौराया सा भंवरा हूं
संकोच मोच न हो पाया
तुम कल कल करती रहती हो
महामना जगुप्त
अनुमानित सितम्वर1985-2019अप्रेल
<p dir="ltr">सरस नदी सी बहती हो <br>
मेरे मन में रहती हो <br>
मैं पत्थऱ घाट किनारे का<br>
तुम छ्ल छ्ल छूती रहती हो</p>
<p dir="ltr">विहगों सी है ऊंची उड़ान<br>
कोकिल कंठी सुर मधुर तान<br>
विमल नवल तुम धवल कंवल<br>
मैं कंटक युति सांवल सेमल<br>
तुम शांत सरल मर्यादा में<br>
मुझे पल पल सहती रहती हो</p>
<p dir="ltr">हिरण्यमयी द्युतिं कांति किरण<br>
मोहक मृदुला मधुहास अरूण<br>
तुम हो प्रभात की शुभ बेला <br>
में काम क्रोध मद मंद-पुंज<br>
मै हूं ज्वर का उत्ताप श्रृंग<br>
तुम दल -दल झरती रहती हो </p>
<p dir="ltr">रति-स्पर्शो की अनुभूति <br>
अंतरतम शीतल करती है <br>
तुम सुमन कली सी लज्जा में<br>
मैं बौराया सा भंवरा हूं<br>
संकोच मोच न हो पाया<br>
तुम कल कल करती रहती हो </p>
<p dir="ltr">ललित ललक दृष्टित अपलक<br>
तुम कृष्णबिंदु दिक् दैव झलक<br>
तुम संदल वन की मलय पवन <br>
में नगर सभ्यता का उपवन<br>
खोकर मुझमें अपना वैभव<br>
स्व, हल-हल .पीती २हती हो</p>
<p dir="ltr">महामना जगुप्त<br>
अनुमानित सितम्वर1985-2019अप्रेल</p>
गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-26333998480359620862019-04-04T11:38:00.001-07:002019-04-04T11:38:49.284-07:00जो मिलना है खुदा से ,खुद से मिलने का तजुर्बा कर
किसी मजबूर को महफूज करने का तजुर्वा कर
मोहब्बत है तो खुलकर सामने आना जरूरी है
किसी आशिक की आहों पे मरने का तजुर्वा कर
मुलाकातो के जरिए है जरा सा हौसला तो कर
हवा भर ले परो मे और उड़ने का तजुर्वा कर
कि गुमसुम को तबस्सुम दे दवा बीमार को देकर
खुशी पाने ,अना को जज़्ब करने का तजुर्वा कर
न यूं गमगीन हो खुद भी न कर माहौल भी वैसा
दिलोजां जीतने हैं तो, बिखरने का तजुर्वा कर
ये ग़रदूं की गुजारिश है गुजारो शब हमारे संग
महकना है तो संदल से लिपटने का तजुर्वा कर<p dir="ltr">जो मिलना है खुदा से ,खुद से मिलने का तजुर्बा कर<br>
किसी मजबूर को महफूज करने का तजुर्वा कर<br>
मोहब्बत है तो खुलकर सामने आना जरूरी है<br>
किसी आशिक की आहों पे मरने का तजुर्वा कर<br>
मुलाकातो के जरिए है जरा सा हौसला तो कर<br>
हवा भर ले परो मे और उड़ने का तजुर्वा कर <br>
कि गुमसुम को तबस्सुम दे दवा बीमार को देकर<br>
खुशी पाने ,अना को जज़्ब करने का तजुर्वा कर <br>
न यूं गमगीन हो खुद भी न कर माहौल भी वैसा<br>
दिलोजां जीतने हैं तो, बिखरने का तजुर्वा कर<br>
ये ग़रदूं की गुजारिश है गुजारो शब हमारे संग<br>
महकना है तो संदल से लिपटने का तजुर्वा <u>कर</u></p>
गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-5228101701066030292019-03-24T01:44:00.001-07:002019-03-25T11:07:26.105-07:00क्या गुनें और क्या चुनें<p dir="ltr">मन में पीड़ाएं बहुत हैं क्या कहें और क्या सुनें<br>
छ्ल रहे हैं हम हमें ही क्या गुनें और क्या चुनें ?</p>
<p dir="ltr">छांह तो मिलती है लेकिन राह खो जाती यहां<br>
सम्वेदना भी वेदना के साथ सो जाती यहां<br>
श्रमशील उद्यमिता जुटी है ताम्रपत्रों के लिए<br>
और विलखता है इधर जीवन चरित्रों के लिए<br>
आश्रमों में भगदड़े है होड़ वैभव के लिए<br>
और तिरस्कृत त्याग तकता राह आश्रय के लिए<br>
मन बसा है मूल्य में और तन रमा सुविधाओं में<br>
श्रेष्ठंता निकृष्टता में भेद करना है कठिन<br>
साधनों ओर साधना में आज हम किसकी सुनें</p>
<p dir="ltr">प्रश्नवाचक हो गए हैं मित्र भी और शत्रु भी<br>
खो गए हैं धैर्य सारे धर्म के सब सूत्र भी<br>
कुछ ढूढ़ना सभव नहीं जब दृष्टि ही अन्यत्र है<br>
नवकुसुम की गंध में मदअंध करता इत्र हैं<br>
गुरूपीठ पर है विकृ दर्पण लोभ मय है साधना<br>
रस कहां से पाए जीवन समरस नहीं जब भावना<br>
मुख फंसा है व्यंजनों में सुख है सरल अभिधाओं में<br>
अनुशासितो भयशासितो में भेद करना है कठिन<br>
अनुभूति या विभूतियों में हम कहो क्रिसकी सुने</p>
<p dir="ltr">गीत तो उगते हैं लेकिन लय तनिक सधती नहीं<br>
बांसुरी खुलती है तो मृदुअंग बजती ही नहीं<br>
भोग से भागा मगर जोग सध पाया नहीं<br>
रात आधी हो चली  मन लौट कर आया नहीं<br>
कैसे काटेंगे फसल जब बीज ही बोया नहीं<br>
व्यासत्व  संभव ही नहीं निजता को यदि खोया नहीं<br>
किसकी मानें प्रेम की या राज की दुविधाओं में<br>
क्या सुखद है क्या दुखद है भेद करना है कठिन<br>
चाहना और चेतना में अब हम कहो किसकी सुनें</p>
<p dir="ltr">महामना<br>
<br>
</p>
गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1435164751240675523.post-59744477250082257622018-12-04T10:42:00.000-08:002024-02-29T06:16:13.440-08:00गुंचा ए गुलबदन महकता हुआ<div dir="ltr">
गुंचा ए गुलबदन महकता हुआ<br>
जुल्फ से पाजेब तक खनकता हुआ<br>
<br>
रेशमी रूमाल में अंगार की तरह<br>
मोम की नम आंख में दहकता हुआ<br>
<br>
शहद के स्वाद में है मय का नशा<br>
पुरगुल इक डाल सा लचकता हुआ<br>
<br>
धूप के रंग रंगी चांद की गज़ल सा<br>
नज़र से दिल तक दमकता हुआ<br>
<br>
खिलते कंवल सा मंजर हंसी<br>
जैसे घूंघट से चूनर सरकता हुआ<br>
<br>
<br>
<br></div>
गर्दूं-गाफिलhttp://www.blogger.com/profile/18099843303913951602noreply@blogger.com0