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गीत गाना धन कमाना बस यही तो काम है
बेचते हैं वीर रस भी लक्ष्य केवल दाम है ।
बुझ चुके है प्रज्ञ-चक्षु संवेदना का तंत्र विकृत
राज्य के चरणों में बैठे श्री राम के कापुरुष वंशज
राजदासों में अवस्थित राम के कापुरुष वंशज
जाति पर लड़ने को उद्यत राक्षसों से संधि तत्पर
वेदांत के थाती न सम्हली चर्वाक जैसे काम है
ज्वालामुखी हैं ईर्ष्या के श्रीबुद्ध के सहगाम है
लिख रहे नित पोथियां दृष्टि में याचन प्रशस्ति
सिद्ध वाणी हो गई तो अहमन्यता में धंस गए
कई उलूकाचार्य बैठे व्यास जी की पीठ पर
वीरता गानी थी जिनको गा रहे वे काम हैं
काम लोभी दाम लोभी बेचते अध्यात्म हैं
साकार हो जाए सृजन कृत्य हो जाए कथानक
दुष्ट के संहार को "कोदंड" हो जाए विचारक
बन सुदर्शन स्वयं काटे दल सनातन शत्रु के
लेखनी हो सार्थक तब धन्य वन्दे मातरम्
नटराज के साधन सघन कृष्ण के अनुगाम है
कह सकेंगे गर्व से आराध्य अपने राम हैं
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कैसे लोकतंत्र में हम है
कुलघाती को सम अधिकार
नैतिकता का और पतन क्या
संहिताओ का यह व्यभिचार
जिसने अपहृत कर विधान को
(कु )शोधन विधान कर डाला
रक्षक बन कर वही घूमता
जपता संविधान की माला
इससे और अधिक क्या होगा
नैतिकता का बलात्कार
समदर्शी का स्वांग रचाए
एकांगी दृष्टि से काना
ठगी की सब उपमाएं छोटी
ऐसे षड़यंत्रो को ताना
अदलबदल कर बाने अपने
आतुर है बनने सरकार
कहता है निरपेक्ष स्वयं को
एक पक्ष को काट रहा है
फिरे घूमता आग लगाता
जाति कौम में बांट रहा है
ऐसा कैसा विरू विपक्ष है
शत्रु सा जिसका व्यवहार
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रेगिस्तानों के गुलाम ओ
मत करो प्रदूषित बंग को
निगल जाएगा दावानल सब
हवा न दो इस जंग को
गिरगिट जैसे मत बांचो
मजहब की कितआब को
फल कर्मो का मिलता ही है
मत भूलो इस पाठ को
माहौल बिगड़ने से पहले
लुढ़काओ विषैले रंग को
मकसद का हो गया खुलासा
कठपुतली किरदार सियासी
गोद में जा बैठे हो उसकी
दी जिसने मजहब को फाँसी
अंजाम सोच लो क्या क्या होगा
तुम बांट रहे जिस भंग को
ख्वाब एक कश्मीर का
ले उड़ा आबरू पाक की
तुमकों भी लेकर डूबेगी
आहें हिंदू ए बंगाल की
मत तांडव को करो निमंत्रित
करो न दूषित गंग को
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रेगिस्तानों के ओ कासिद
मम