Thursday, March 26, 2020
Monday, March 23, 2020
मन में पीड़ाएं बहुत हैं क्या कहें और क्या सुनेंछ्ल रहे हैं हम हमें ही क्या गुनें और क्या चुनें ?
Tuesday, December 31, 2019
शौक ये उम्रsभर लगाए रहिएमिजाज इश्किया बनाए रहिए बड़ा
Sunday, August 25, 2019
कारवां ए-तूफां गुजारा कहां है
बड़े दिनों के बाद अफातु भाषा की एक रचना
कारवा ए तूफां गुजारा कहां है
अभी संग ढ़ग से उछाला कहां है
उड़ जाएगें तमाम हमामों के पर्दे
अभी जोश ने जोश पाला कहां है
अभी अपने अहलेअहद में हैं बैठे
औ कोई परचम निकाला कहां है
गुलूकार हम भी हैं माहिरे फन
हमें मौसिकी ने संभाला कहां है
ऐ ग़रदूं गज़ल तेरी है ये अधूरी
अभी इश्क इसमें डाला कहां है
जब से तुमने राम कहा
जब से तुमने राम कहा , राम हुआ जाता हूं
प्रस्तर था सम्मुख तेरे प्रतिमान हुआ जाता हूं
उजला उजला कह कर, सारी कालिख धो दी
कीचड़ कीचड़ अंगनांई में तुलसी तुलसी बो दी
आलोकित मंदिर कर डाला ज्योतित कर दी कुटिया
जर्जर जीवन अभिलाषा को दे दी एक लकुटिया
दूषित कलुषित अपयश था यशगान हुआ जाता हूं
कामुक था सम्मुख तेरे निष्काम हुआ जाता हूं
जब से तुमने राम कहा , राम हुआ जाता हूं
प्रस्तर था सम्मुख तेरे प्रतिमान हुआ जाता हूं
प्रियवर प्रियवर कह कर मेरे कांटे सभी निकाले
क्रोध घृणा मत्सर नकार के शांत किए सब छाले
नेह प्रीत अभिसिंचित कर द्वेष और क्लेष बहाया
हीन पतित जग जीवन में उत्स और मोद जगाया
गरलताल था ,अमृतसर रसखान हुआ जाता हूं
अरिसुर था सम्मुख तेरे लय धाम हुआ जाता हूं
जब से तुमने राम कहा , राम हुआ जाता हूं
प्रस्तर था सम्मुख तेरे प्रतिमान हुआ जाता हूं
"महामना" जगदीश गुप्त