Saturday, February 4, 2023

इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई

इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई
बात जरा सी बढ़ गई

राज धर्म था जिन्हें पालना 
यही राज शिशु  हो गए
जन जन को पोषण देना था
क्षीर स्वयं ही  पी गए 
दीनदयाल जिन्हें होना था
 वह दीनदरिद्र हुए हैं
रामनाम की ओढ़ ओढ़नी
दशुमख चारित्र्य जिए हैं
जिनसे जपी मुक्ति की माला
उनसे हीं युक्त हुए है 
अकड़ गईं है इन की गर्दन 
इतनी चर्बी चढ़ गई
इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई
बात जरा सी बढ़ गई

कैडर कैडर गीत पेलते
घरवाली का टिकट निकाला
रहे टापते कर्ताधर्ता
माल जहॉ से मिला निकाला
पॉच साल बुर्के में काटे
ओढ़ आए फिर राम दुशाला
मोदी जी की पूंछ पकड़
फिर_ वैतरणी. पार करेंगें
चाँदी के जूतों के सहारे
. टिकट जुगाड़ करेंगें 
छल छ्द्मों की राजनीति 
इनके चरित्र पे चढ़ ग्ई
इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई
बात जरा सी बढ़ गई

.सिखा न पाए जो प्रेम करनाजगा न पाए संवेदनाए

 सिखा न पाए जो प्रेम करना
जगा न पाए संवेदनाए
उसे कहेंगे हम कैसे शिक्षा
जो काट देती है अपने घर से 

यदि किया है भजन राम का
तो छोड़ दो हरना सीता मेंया
हो संस्कारी यदि सनातन
तो फिर बचा लोगे माई गैया
यदि न बांटे उजाले तुमने
फिर कैसे हो तुम सूर्यवंशी 
जो तुमको रक्षक बना न पाए
छुड़ा न पाए जो भेद भाव
उसे कहेंगे हम कैसे भक्ति
जो हो रही है किसी के डर से 

करते हों चोरी राजपुरूष ही
तब कैसे कहिए बचे सुशासन
हुए प्रमादी यदि प्रशासक
कौन संभालेगा अनुशासन
साधू करने लगे ठगी यदि
कौन करेगा होम हवन . .
जो खा रहे है खेत अपने
भूल गए है जो धर्म अपने
उन्हें कहेंगें हम कैसे रक्षक
मरें न आतंकी जिनके डर से .

रामराज स्थापना अब यही राष्द्र आराधना

रामराज स्थापना अब यही राष्ट्र आराधना
इक दूजे से विनय करें हम करें यहीं बस प्रार्थना

राम भुवन निर्माण की बेला संकल्प हमें भी करना है
 शुचिता शुभता जनकल्याणी भाव हृदय में भरना है
मानवता की सुगंध फैले ऐसे सुरभित कर्म करें 
बनने लगा राम का मंदिर रामराज की ओर चले
देह देव भौतिक तापों से मुक्ति की है कामना
उल्लासित  मन हुआ मयूरा राम राम हर भावना

देशोत्तम  , पुरुषोत्तम की आभा से संयुक्त हुआ 
प्यासी भक्ति तरस रही थी आज राष्ट्र संतृप्त हुआ
विजय मार्ग में आने वाली बाधाओं को हरना है 
शौर्य त्याग निष्ठा करुणा के भाव हृदय में धरना है
श्रम साधक की आराधक की पूरी हो हर साधना 
भ्रष्टाचार भूख और भय की मिटे हर एक संभावना

ज्ञान और विज्ञान समुन्नत निर्माणों का ध्येय धरें
धरे विमल मति हृदय प्रेम गति निर्मल मर्यादा वरण करें
अपने अपने हिय मंदिर में राम प्रतिष्ठित करना है 
अपने रावण से मुक्ति ले देह अयोध्या करना है
रामराज्य लाने की जागी चहुं दिशा जनभावना
भरत भूमि भारत में होगी राम राज्य स्थापना

महामना जगदीश गुप्त

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