Saturday, December 23, 2023

कॉटे कितने भी हो पांव न घायल करना है तोहटा मिटा या बीन बान करमार्ग बनाना ही होगाकींचड़ कितना भी हो श्वांस स्वच्छ लेना है तोजीवन निर्मल रख़ना है तोसाफ इसे करना ही होगाप्रतियोगी तो सदा रहे हैसदा रहेगी स्पर्धा भले युद्ध तक यह पंहुचे इसे जीतना ही होगा संकल्पों तक है कठिनाईउसके आगे जय ही जय हैदीर्घ काल तक रहे काल-स्वइसे बचा रखना होगा


कॉटे कितने भी हो 
पांव न घायल करना है तो
हटा मिटा या बीन बान कर
मार्ग बनाना ही होगा

कींचड़ कितना भी हो 
श्वांस स्वच्छ लेना है तो
जीवन निर्मल रख़ना है तो
साफ इसे करना ही होगा

प्रतियोगी तो सदा रहे है
सदा रहेगी स्पर्धा 
भले युद्ध तक यह पंहुचे 
इसे जीतना ही होगा 

संकल्पों तक है कठिनाई
उसके आगे जय ही जय है
दीर्घ काल तक रहे काल-स्व
इसे बचा रखना होगा

Monday, August 28, 2023

यहां हर एक अंधा है कोई भक्ति में कोई विरोध में यहां हर एक गुलाम है कोई प्रमाद का कोई विषाद कायहां हर एक विवादी हैकोई वादी है कोई प्रतिवादी हैपर संतुलित नहीं है कोईसमाधान का हिस्सा नहीं होना चाहता कोईक्यों कि सबको पता है वो स्वयं ही अपने स्थान पर अपनों के लिए समस्या हैजिस दिन आप होने लगेंगें समाधान का हिस्साआपके आसपास सौंदर्यमय जीवन जन्मने बढ़ने लगेगा शेष दुनिया के नर्क में भी आपकी प्रेरणा जाती रहेगी

यहां हर एक अंधा है 
कोई भक्ति में कोई विरोध में 
यहां हर एक गुलाम है 
कोई प्रमाद का कोई विषाद का
यहां हर एक विवादी है
कोई वादी है कोई प्रतिवादी है
पर संतुलित नहीं है कोई
समाधान का हिस्सा नहीं होना चाहता कोई
क्यों कि सबको पता है 
वो स्वयं ही अपने स्थान पर अपनों के लिए समस्या है
जिस दिन आप होने लगेंगें समाधान का हिस्सा
आपके आसपास सौंदर्यमय जीवन जन्मने बढ़ने लगेगा 
शेष दुनिया के नर्क में भी आपकी प्रेरणा जाती रहेगी

28 august 2022 फेसबुक पर पोस्ट

Tuesday, August 22, 2023

लालकिला / मणिपुर/ सियासत

लालकिला / मणिपुर/ सियासत

मेले हैं झमेले हैं अकेले हैं यहां इस दुनियादारी में
बहुत कुछ, रखना पड़ता है, यहां पर पर्दादारी में

तौल-ले-बोल तभी मुंह खोल इल्मदां आए हैं  कहते
सियासत कब जला दे क्या ? तेरी, ईमानदारी में 

वो आए घर,बराएशौक,किया सिजदा,दिया सदका 
तोहमतें,, नाम कर दी, फिर ,मेरी तीमारदारी में

सांप की बस्तियों में ,खोल ,दरखिड़कियां रखिए
इरादा जो भी हो ,शक है ,सलह में ,समझदारी में

तोडेगा न छोड़ेगा  , रहे कोई , दोस्त  या  दुश्मन 
सियासत दुश्मनों से ,और मुहब्बत फूल  यारी में 

ग़रदू
22अगस्त 23 को फेसबुक पर प्रकाशित

प्रिय अभिषेक प्रिय के लिए

अहो विकट
प्रिय मधु मादक 
हास्य चेतना एक साथ
अद्भुत विवेक का यह विलास
सुर ताल गति नव नवल छंद
सुरभित मकरित मृदु हास छंद
गाता शिक्षा का कुरुज्ञान 
ऐसी पींगें ऐसी उड़ान
छोटा न हो जाए वितान
समकालिक समर्थ रचना महान
कवि का कुल का हो यशोगान
धन्य धन्य अभिषेक तान

महामना के उद्गार
फेसबुक पर 22/अगस्त2021 को प्रकाशित

Friday, July 21, 2023

जीवन नहीं रुका करते है कुछ जीवन रूक जाने सेगरलपान कर अमिय बॉटने का संकल्प और दृढ़ होयद्यपि वह वीभत्स देखकर सिहर गया मन सहमा हैउधर गिरे इक माँ के आँसू इधर कई आँचल भीगेपांचाली का अपराधी, क्या केवल दुर्योधन था यामोह मदांध शकुनि के पांसो में फंसे युधिष्ठिर भीमूल्यों का संस्थापन करने अब समाज मन सुदृढ़ हो अच्छा है तुम्हें ग्लानि जगी , क्यों कि तुम संस्कारी होठगी गई बालाओं पर भी कभी पसीजा क्या मन यहसभ्यताओं पर क्रोध करो जिनका जीवन व्यभिचारी हैदिशाबोध दे करो नियंत्रण आपराधिक यह लाचारी हैसंकल्प करो दंडित करने का शौर्य हमारा सुदृढ़ होबहिष्कार है कायरता कुछ वीरोचित आभियान करोकृष्ण राम की तरह क्रूर अन्यायी पर संधान करो कुछ अर्जुन तैयार करो कुछ भीम भूमि पर खड़े करोमन विस्तार करो स्व का ,मत स्वांतसुखाय सिकुड़ रहोस्वयंप्रभा से करो समुज्ज्वल जगती का सम्बल सुदृढ़ होमम

जीवन नहीं रुका करते है कुछ जीवन रूक जाने से
गरलपान कर अमिय बॉटने का संकल्प और दृढ़ हो

यद्यपि वह वीभत्स देखकर सिहर गया मन सहमा है
उधर गिरे इक माँ के आँसू  इधर कई आँचल भीगे
पांचाली का अपराधी, क्या केवल दुर्योधन था या
मोह मदांध शकुनि के पांसो में फंसे युधिष्ठिर भी
मूल्यों का संस्थापन करने अब समाज मन सुदृढ़ हो 

अच्छा है तुम्हें ग्लानि जगी , क्यों कि तुम संस्कारी हो
ठगी गई बालाओं पर भी कभी पसीजा क्या मन यह
सभ्यताओं पर क्रोध करो जिनका जीवन व्यभिचारी है
दिशाबोध दे करो नियंत्रण आपराधिक यह लाचारी है
संकल्प करो दंडित करने का  शौर्य हमारा सुदृढ़ हो

बहिष्कार है कायरता कुछ वीरोचित आभियान करो
कृष्ण राम की तरह क्रूर अन्यायी पर संधान करो 
कुछ अर्जुन तैयार करो कुछ भीम भूमि पर खड़े करो
मन विस्तार करो स्व का ,मत स्वांतसुखाय सिकुड़ रहो
स्वयंप्रभा से करो समुज्ज्वल जगती का सम्बल सुदृढ़ हो

मम

दुनिया की सेहत को अच्छे रंग बिरंगे लोगलेकिन नहीं चाहिए भैया रंग बदलते लोग

दुनिया की सेहत को अच्छे रंग बिरंगे लोग
लेकिन नहीं चाहिए भैया रंग बदलते लोग

Monday, May 22, 2023

आप चाहेंगे तो गाएंगे गीत वे आएगी गंध जिनमें बस प्रेम कीआप चाहेगें तो गाऐंगे मेघ वे_ बरसे जो नयनों से बरसों- बरसगाती कोयल फुदकती गौरैया मिलीजब आए कोई देने दाना उन्हेंपाईं राधा की मीरा की अनुभूतियांजब जब मिले जैसे कान्हा उन्हेंआप कह दें तो कह दूं सभी उलझनेजो सुलझांई हैं तुमने बरसो बरसप्रेम पल भर का भी होता है अमरजिसका परिणाम जग को मधुमय मिलेसौ गुना भाग्य है उस हृदय का अहोजिसमें रहने की इच्छा तुम्हारी जगेभाग्यशाली हैँ वे चाँद तारे सभी जो तकते रहे तुमको बरसों बरसआज भी तुम टटोलो अपने हृदयएक मूरत मिले खिलखिलाती हुईजिसपे तुम भी चढ़ाए, शतदलकमल फूलो के दल रानी चंपा जुही भीगता ही रहा ,पर कह न सकाएक बदली से मन की बरसों बरसमहामना

आप चाहेंगे तो गाएंगे गीत वे 
आएगी गंध जिनमें बस प्रेम की
आप चाहेगें तो गाऐंगे मेघ वे_ 
बरसे जो नयनों से बरसों- बरस

गाती कोयल फुदकती गौरैया मिली
जब आए कोई देने दाना उन्हें
पाईं राधा की मीरा की अनुभूतियां
जब जब मिले जैसे कान्हा उन्हें
आप कह दें तो कह दूं सभी उलझने
जो सुलझांई हैं तुमने बरसो बरस

प्रेम पल भर का भी होता है अमर
जिसका परिणाम जग को मधुमय मिले
सौ गुना भाग्य है उस हृदय का अहो
जिसमें रहने की इच्छा तुम्हारी जगे
भाग्यशाली हैँ वे चाँद तारे सभी 
जो तकते रहे तुमको  बरसों बरस

आज भी तुम टटोलो  अपने हृदय
एक मूरत मिले  खिलखिलाती हुई
जिसपे तुम भी चढ़ाए, शतदलकमल 
 फूलो के दल रानी चंपा जुही 
भीगता ही रहा ,पर कह न सका
एक बदली से मन की बरसों बरस

महामना

Friday, March 31, 2023

संसार तो छलिया है अंधेर है डगर डगरकीच और काँटों से निज को ही बचना हैपग पग पे प्रलोभन हैं फूलो में हैँ नाग बसेया तो शिव होना है या संभल निकलना हैआभार भार होता उपहार हार होताकिसकी है नीयत कैसी यह आप समझना हैमहामना

कहते तो यही हैं सब यह ईश की रचना है 
धूप छाँव सुख दुख हमको ही चखना है 
संसार तो छलिया है अंधेर है डगर डगर
कीच और काँटों से निज को ही बचना है
पग पग पे प्रलोभन हैं फूलो में हैँ नाग बसे
या तो शिव होना है या संभल निकलना है
आभार भार होता उपहार हार होता
किसकी है नीयत कैसी यह आप समझना है
महामना

Saturday, February 4, 2023

इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई

इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई
बात जरा सी बढ़ गई

राज धर्म था जिन्हें पालना 
यही राज शिशु  हो गए
जन जन को पोषण देना था
क्षीर स्वयं ही  पी गए 
दीनदयाल जिन्हें होना था
 वह दीनदरिद्र हुए हैं
रामनाम की ओढ़ ओढ़नी
दशुमख चारित्र्य जिए हैं
जिनसे जपी मुक्ति की माला
उनसे हीं युक्त हुए है 
अकड़ गईं है इन की गर्दन 
इतनी चर्बी चढ़ गई
इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई
बात जरा सी बढ़ गई

कैडर कैडर गीत पेलते
घरवाली का टिकट निकाला
रहे टापते कर्ताधर्ता
माल जहॉ से मिला निकाला
पॉच साल बुर्के में काटे
ओढ़ आए फिर राम दुशाला
मोदी जी की पूंछ पकड़
फिर_ वैतरणी. पार करेंगें
चाँदी के जूतों के सहारे
. टिकट जुगाड़ करेंगें 
छल छ्द्मों की राजनीति 
इनके चरित्र पे चढ़ ग्ई
इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई
बात जरा सी बढ़ गई

.सिखा न पाए जो प्रेम करनाजगा न पाए संवेदनाए

 सिखा न पाए जो प्रेम करना
जगा न पाए संवेदनाए
उसे कहेंगे हम कैसे शिक्षा
जो काट देती है अपने घर से 

यदि किया है भजन राम का
तो छोड़ दो हरना सीता मेंया
हो संस्कारी यदि सनातन
तो फिर बचा लोगे माई गैया
यदि न बांटे उजाले तुमने
फिर कैसे हो तुम सूर्यवंशी 
जो तुमको रक्षक बना न पाए
छुड़ा न पाए जो भेद भाव
उसे कहेंगे हम कैसे भक्ति
जो हो रही है किसी के डर से 

करते हों चोरी राजपुरूष ही
तब कैसे कहिए बचे सुशासन
हुए प्रमादी यदि प्रशासक
कौन संभालेगा अनुशासन
साधू करने लगे ठगी यदि
कौन करेगा होम हवन . .
जो खा रहे है खेत अपने
भूल गए है जो धर्म अपने
उन्हें कहेंगें हम कैसे रक्षक
मरें न आतंकी जिनके डर से .

रामराज स्थापना अब यही राष्द्र आराधना

रामराज स्थापना अब यही राष्ट्र आराधना
इक दूजे से विनय करें हम करें यहीं बस प्रार्थना

राम भुवन निर्माण की बेला संकल्प हमें भी करना है
 शुचिता शुभता जनकल्याणी भाव हृदय में भरना है
मानवता की सुगंध फैले ऐसे सुरभित कर्म करें 
बनने लगा राम का मंदिर रामराज की ओर चले
देह देव भौतिक तापों से मुक्ति की है कामना
उल्लासित  मन हुआ मयूरा राम राम हर भावना

देशोत्तम  , पुरुषोत्तम की आभा से संयुक्त हुआ 
प्यासी भक्ति तरस रही थी आज राष्ट्र संतृप्त हुआ
विजय मार्ग में आने वाली बाधाओं को हरना है 
शौर्य त्याग निष्ठा करुणा के भाव हृदय में धरना है
श्रम साधक की आराधक की पूरी हो हर साधना 
भ्रष्टाचार भूख और भय की मिटे हर एक संभावना

ज्ञान और विज्ञान समुन्नत निर्माणों का ध्येय धरें
धरे विमल मति हृदय प्रेम गति निर्मल मर्यादा वरण करें
अपने अपने हिय मंदिर में राम प्रतिष्ठित करना है 
अपने रावण से मुक्ति ले देह अयोध्या करना है
रामराज्य लाने की जागी चहुं दिशा जनभावना
भरत भूमि भारत में होगी राम राज्य स्थापना

महामना जगदीश गुप्त

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