अपने अपने हृदय जगाओ ' शौर्य जगाओ जागो अब
समय देश का आया है ' मत दायित्वों से भागो अब
निष्ठाओं पर ग्रहण लगाने ' अनगिन राहू केतू हैं
अंधकूप वाचाल हो रहे, सबके अपने हेतु हैं
अनय कूट की मूर्च्छा हर ' अमिय बांटने निकलो अब
निर्बल दीन हीन जीवन का तिमिर छांटने निकलो अब
नीति न्याय का समय उठे तम को यह स्वीकार नहीं
लोभ निगल लेता मूल्यों को ,सत्य को अब सत्कार नहीं
कटु दुर्नीति दमन करो, संस्कृति जगाने निकलो अब
बन रामकृष्ण 'बन महावीर' देवत्व जगाने निकलो अब
धनपशुओं को नहीं सुहाते ' सेवा, नवल प्रबंधन ' हाँ
कुलटा कूटों को ही भाते ' आंधियारे गठ्वंधन हां
शुद्ध बनो, नवबुद्ध बनो ,नववोध दिलाने निकलो अब
जनमन के दारिद्रय हरण' श्री बुद्धि खिलाने निकलो अब