अपने ही अवरोध बनेंगे अपने ही पतवार
मझधारों तक लायें अपने ,वे ही लगायें पार
नित्य निकलता सूर्य तमस से नित्य उसीमें लीन
गौरव की ऊंची उड़ान तब ,बाँध रहा क्यों हीन
अपनी ही परछाईं जीते ,जाए उसी से हार
अपना ही संघर्ष आपसे ,अपना ही विस्तार
बाहर से अर्गला है बंधन ,भीतर से आश्वस्ति
निज दृष्टी में उज्जवल रहना ,सबसे बडी प्रशस्ति
अपनों पर ही क्रोध हमारा अपनों पर आभार
अपनापन ही बोझ जगत का अपना ही विस्तार
पग पग पांव बढे आता है निकट शिखर आकाश
अनुरागी अपनेपन से मन छूता है विश्वास
सपने और अपने न रूठें यह जीवन का सार
अपनेपन की अपनी खेती ,अपनापन व्यापार
मझधारों तक लायें अपने ,वे ही लगायें पार
नित्य निकलता सूर्य तमस से नित्य उसीमें लीन
गौरव की ऊंची उड़ान तब ,बाँध रहा क्यों हीन
अपनी ही परछाईं जीते ,जाए उसी से हार
अपना ही संघर्ष आपसे ,अपना ही विस्तार
बाहर से अर्गला है बंधन ,भीतर से आश्वस्ति
निज दृष्टी में उज्जवल रहना ,सबसे बडी प्रशस्ति
अपनों पर ही क्रोध हमारा अपनों पर आभार
अपनापन ही बोझ जगत का अपना ही विस्तार
पग पग पांव बढे आता है निकट शिखर आकाश
अनुरागी अपनेपन से मन छूता है विश्वास
सपने और अपने न रूठें यह जीवन का सार
अपनेपन की अपनी खेती ,अपनापन व्यापार
सपने और अपने न रूठें यह जीवन का सार...kitni sahi baat kah di aapne..
ReplyDeleteHarek pankti, alag se daad kee haqdaar hai..Saar to saara isee me hai,"apnepan kee khetee, apnepanka vyapar..."
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http:aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
नायाब कृति बहुत ख़ूब
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र
टेम्पलेट के कलर के कारण पोस्ट पढने में दिक्कत होती है कृपया कुछ बदलाव करिए
ReplyDeleteवीनस केसरी
सपने और अपने न रूठें यह जीवन का सार
ReplyDeleteअपनेपन की अपनी खेती ,अपनापन व्यापार
waaaah sir ek dam sacchi baat
mere blog par aane k liye bahut bahut shukriya sir or us compliment k liye bhi jo ek asirvaad laga mujhe .thanks again
sory to say plz प्रशस्ति ka bhi arth bata de
एक सकारात्मक गीत. अच्छा लगा.
ReplyDeleteआजकल तो अपनापन भी बाजार की शरण जाता नजर आ रहा है.
ReplyDeleteआज गर्दू जी का जन्म दिन है. बहुत बहुत शुभकामनाये.
ReplyDeleteफिर एकबार आपकी नज़में पढने पहुँच गयी ..नयी तो नही मिली ..लेकिन हर बार पहले पढी हुई नज़्मओ नगमों मे कुछ और अधिक नज़र आता है ..लगता है ,ये पहले कैसे नही महसूस हुआ ..हरेक लफ्ज़ इतनी अधिक मायने लिए होता है ...ये हुनर मेरे जैसे की बस की बात हैही नही ..
ReplyDeletehttp://lalitlekh.blogspot.blogspot.com
मेरा श्रम सार्थक हुआ.
ReplyDeleteआपकी टिप्पणिया ही हैं जो पोस्ट लिखने को प्रेरित करती हैं.
नित्य निकलता सूर्य तमस से नित्य उसीमें लीन
ReplyDeleteगौरव की ऊंची उड़ान तब ,बाँध रहा क्यों हीन
अपनी ही परछाईं जीते ,जाए उसी से हार
अपना ही संघर्ष आपसे ,अपना ही विस्तार
बहुत सुंदर ख्यालात ......!!
सबसे पहले तो आपको जन्मदिन की बधाई अभी टिप्पणी से पता चला कि आपका जन्म दिन अभी आकर गया है.
ReplyDeleteआपके गीत भी ग़ज़लों की तरह लाजवाब हैं.
सर्वत जी के ब्लाग पर टिप्प्णी के लिये टिप्पणी पर आपका आभार.
भूल से अपने ब्लाग पर आपके ब्लाग का लिंक नहीं लगा पाया हूं इसी लिये बहुत दिन से आपका ब्लाग नहीं पढ पाया. गलती सुधार ली है अब नियमित मुलाकात होगी.
bahut apnapan hai is rachna mein. hamaara sangharsh kisi aur se nahi balki khud se hi to hai..
ReplyDeleteshukria duaon ke liye, badhai ke liye aur .......apnepan ke liye bhi.
ReplyDeleteयार, इतने अच्छे अच्छे गीत लिखोगे तो प्रार्थी क्या करेगा. माना कि लेखन मेरा पेशा नही शौक़ है और कहीं से भी मेरे पेट पर लात नहीं पड़ रही है, फिर भी, इतना अच्छा लिखने की क्या जरूरत है? थोडा हल्का लिखोगे तो कोई फर्क तो नहीं पड़ेगा. मेरे इन कठिन दिनों में लगातार अपनी टिप्पणियों से मेरा हौसला जगाये रखने के लिए बार-बार, लगातार शुक्रिया.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई इस शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
ReplyDelete९ जुलाई आपका जन्म दिन था अब इतनी लेट मैं बधाई क्या दूँ बस भगवान् से यही प्रार्थना है की आपकी लेखनी को नित नयी बुलंदी दे
ReplyDeleteआपने प्रशस्ति का अर्थ वंदना जी को बताया कि नहीं ,हमारे देश में लोगो की हिन्दी इतनी कमजोर है ! ताज्जुब है !! याद नहीं आ रहा किस ने एक ब्लॉग पर हस्बे ...का अर्थ पूछा है ,हालांकि मैं कुछ भी पूछने को गलत नहीं मानती लेकिन लोगो की जो पढने की आदत ख़त्म हो गयी है उसे गलत मानती हूँ ,इस पीढी को तो फिर भी बहुत कुछ आता है ,जो नकल करके पास हुई पीढी आरही है ,वह कैसी होगी !!!
कविता के बारे में कुछ कहूँ ये कोई जरूरी तो है नहीं ,बस बात करने चली आयी हूँ ,पिछले साल की ९ जुलाई को ट्रेन ने मुझे पीछे से आकर आसमान में उछाल दिया था ,सिर्फ सर की हड्डी टूटी ,याददाश्त भी सलामत है,हाथ-पैर भी सलामत हैं ,इन सारे लोगो ने कहा ९जुलाई को तुम्हारा दूसरा जन्म हुआ है ,इन लोगो ने सेलीब्रेट भी किया था ,चलिए अगले साल एक-साथ सेलीब्रेट करेंगे.
कभी-कभी मेरी दवाओं को भी भला-बुरा कह लिया करें