आत्म वंचना करके किसने क्या पाया
कुंठा और संत्रास लिए मन कुह्साया
इतना पीसा नमक झील खारी कर डाली
जल राशिः में खड़ा पियासा वनमाली
नहीं सहेजे सुमन न मधु का पान किया
सर से ऊपर चढ़ी धूप तो अकुलाया
सूर्या रश्मियाँ अवहेलित कर ,निशा क्रयित की
अप्राकृतिक आस्वादों पर रूपायित की
अपने ही हाथों से अपना दिवा विदा कर
निज सत्यों को नित्य निरंतर झुठलाया
पागल की गल सुन कर गलते अहंकार को
पीठ दिखाई ,मृदुता शुचिता संस्कार को
प्रपंचताओं के नागों से शृंगार किया
अविवेकी अतिरेकों को अधिमान्य बनाया
किताब मिली - शुक्रिया - 22
1 month ago
इतना पीसा नमक झील खारी कर डाली
ReplyDeleteजल राशिः में खड़ा पियासा वनमाली
नहीं सहेजे सुमन न मधु का पान किया
सर से ऊपर चढ़ी धूप तो अकुलाया
wah gafil ji, satya saheje , vishudh hini shabdon ka prayog , kul mila kar behatareen geet. badhaai.
ऐसी ऐसी रचनाएँ पढ़ कर मन को धक्का लगता है. मन कहता है 'सर्वत! बहुत तीस मार खां बनते थे ना! अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे.' ऊपर वाला ये तेवर बनाये रखे.
ReplyDeleteसरवत जी ने बिल्कुल सही कहा है. रचना बहुत उम्दा है. अलग ही तेवर लिये है. बधाई
ReplyDeleteसर्वत भाई
ReplyDeleteन कोई ऊँट न कोई पर्वत
मैं गर्दूं तुम सर्वत तुम शर्बत
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब गीत लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा!
ReplyDeleteआज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
ReplyDeleteरचना गौड़ ‘भारती’
आपके ब्लॉग पे आती रही ...कई बार टिप्पणी करनेकी बात भी सोची ..लेकिन हाथ रुक गए ..आपकी रचनायों पे मै, अदना-सी व्यक्ती, क्या लिखूँ ?
ReplyDeleteलेकिन आपकी कमी मेरे ब्लॉग पे ज़रूर महसूस करती हूँ...
"meree jaan rahe naa rahe,
meree mata ke sarpe taaj rahe.."
http://kavitasbyshama.blogspot.com
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nice
ReplyDelete'kahanee' blog pe comment ke liye tahe dilse shukriya!
ReplyDeleteएक अन्य ब्लॉग परसे आपका लिंक लेके आयी हूँ ..पढ़ना जारी है ..आप तो comment भी इतनी सुंदर रचना लिख, पेश करते हैं , जिसका जवाब नही ..!
ReplyDeleteआत्म वंचना करके किसने क्या पाया sahi baat hai..जल राशिः में खड़ा पियासा वनमाली ..banmali ki kismat..ek boht hi khoobsurat kavita...
ReplyDeleteKya aapkee e-mail iD ke liye iltija kar sakti hun? Ek zarooree messege dena chaah rahee thee..!Gar aitraaz na ho to, shukr guzaar rahungee..!
ReplyDeleteMeree email ID de rahee hun:
kshamasadhana8@gmail.com
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteBAhut khub.Likhte rahiye.
ReplyDeleteगर्दू गाफिल आप टिप्पडी मांग रहे हैं.
ReplyDeleteयानी ब्लोगर को सूली पर टांग रहे हैं .
'उनके' ऊपर छोड़ रखा है आना-जाना.
किसी पोस्ट पर जाना और कमेन्ट दे आना
लेकिन आप संत, ज्ञानी हैं, देवर भी हैं.
शब्द-टिप्पडी नहीं ये 'गर्दू' घेवर भी हैं.
पागल की गल सुन कर गलते अहंकार को
ReplyDeleteपीठ दिखाई ,मृदुता शुचिता संस्कार को
प्रपंचताओं के नागों से शृंगार किया
अविवेकी अतिरेकों को अधिमान्य बनाया
कुछ कठिन फलसफे दे जातीं हैं आपकी पंक्तियाँ ......!!
इतनी कठिन हिन्दी के शब्द ,भाई किसी विश्वविद्यालय में साहितियिक हिन्दी के प्रोफेसर हो क्या ,हमें तो पूरे गीत का अर्थ छात्र मान के समझाओ.
ReplyDeleteशानदार कविता ने तबियत खुश कर दी.
ReplyDeleteबधाई! बधाई!! बधाई!!!
नहीं सहेजे सुमन न मधु का पान किया
ReplyDeleteसर से ऊपर चढ़ी धूप तो अकुलाया ....
...kavita ka bhav paksh aur kala paksh dono hi adbhoot hain...
badhai !!
इतना पीसा नमक झील खारी कर डाली
ReplyDeleteजल राशिः में खड़ा पियासा वनमाली
umda abhivyakti..hamesha ki tarah..
gaafi ji ,
ReplyDeletenamaskaar !
aapko padhna hamesha hi ek sukhad anubhav
rehta hai , , ,
gehri, t`tsm shabdaawali ka saarthak upyog kar pana bs aap hi ke bs ki baat hai
hr baar kisi naye drshn se saakshaatkaar !!
abhivaadan svikaareiN .
---MUFLIS---
kshmaa chaahta hooN
ReplyDeleteoopar "gaafil ji" ki jagah kuchh adhoora chhp gaya hai...just a typing mistake ...
---MUFLIS---