नागफनी आंखों में लेकर, सोना हो पाता है क्या
जज्बातों में उलझ के कोई, चैन कहीं पाता है क्या
सावन के झूले पर उठते ,मीत मिलन के गीत कई
सबकी किस्मत में मिलनेका ,अवसर आपाता है क्या
बीज मोहब्बत के रोपे ,फ़िर छोड़ गए रुसवाई में
दर्द को किसने कैसे भोगा ,कोई समझ पाता है क्या
धूप का टुकडा हुआ चांदनी, खुशबू से लबरेज़ हुआ
चाँद देख कर दूर देश में ,याद कोई आता है क्या
मन के तूफां पर सवार हैं ,,,उम्मीदों की नौकाएं
बनती मिटती लहरें पल-पल, गर्दूं गिन पाता है क्या
जज्बातों में उलझ के कोई, चैन कहीं पाता है क्या
सावन के झूले पर उठते ,मीत मिलन के गीत कई
सबकी किस्मत में मिलनेका ,अवसर आपाता है क्या
बीज मोहब्बत के रोपे ,फ़िर छोड़ गए रुसवाई में
दर्द को किसने कैसे भोगा ,कोई समझ पाता है क्या
धूप का टुकडा हुआ चांदनी, खुशबू से लबरेज़ हुआ
चाँद देख कर दूर देश में ,याद कोई आता है क्या
मन के तूफां पर सवार हैं ,,,उम्मीदों की नौकाएं
बनती मिटती लहरें पल-पल, गर्दूं गिन पाता है क्या
धूप का टुकडा हुआ चांदनी, खुशबू से लबरेज़ हुआ
ReplyDeleteचाँद देख कर दूर देश में ,याद कोई आता है क्या.....yaad kar leta hun ulfat ke fasane kitne.......boht khoobsurat....
नागफनी आंखों में लेकर, सोना हो पाता है क्या
ReplyDeleteजज्बातों में उलझ के कोई, चैन कहीं पाता है क्या
धूप का टुकडा हुआ चांदनी, खुशबू से लबरेज़ हुआ
चाँद देख कर दूर देश में ,याद कोई आता है क्या
वाह!वाह! गर्दू जी क्या खूब शेर हुए हैं. बिल्कुल नया लहज़ा. आनन्द आ गया. कई दिन बाद अच्छे शेर पढने को मिले.
बहुत उम्दा ख़्यालात से लबरेज़ ग़ज़ल है
ReplyDelete---
आनंद बक्षी
behatareen khayalaat ke saath lajawaab rachna.
ReplyDeletegafil ji badhai sweekaren.
गर्दू गाफिल भाई, गजल- ऐसे ऐसे शेर, इन्हें तो बब्बर कहा जाना चाहिए. मेरी तो बोलती बंद हो गयी है. मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ---मुझे भी कुछ अपना उतरन वगैरह भेज दो, शायद कलम को धार मिल जाये. और एक अर्ज़-- अब इससे नीचे का तेवर नहीं चलेगा. समझे क्या!
ReplyDeletewaaah sir bahut khoooob ....
ReplyDeleteवाकई दर्द कैसे भोगा जाता है ये आततायी नहीं जान पाता
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeletebadhai!!!!!!!!!
बीज मोहब्बत के रोपे ,फ़िर छोड़ गए रुसवाई में
ReplyDeleteदर्द को किसने कैसे भोगा ,कोई समझ पाता है क्या
शानदार ग़ज़ल का सबसे पसंदीदा शेर.
मुकम्मल ग़ज़ल. की बधाई
वाह बहुत ही ख़ूबसूरत और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई !
ReplyDeleteधूप का टुकडा हुआ चांदनी, खुशबू से लबरेज़ हुआ
ReplyDeleteचाँद देख कर दूर देश में ,याद कोई आता है क्या
गाफिल साहब...सुभान अल्लाह...क्या शेर कहा है...भाई वाह...जिंदाबाद...मेरी दिली दाद कबूल फरमाएं इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए....लिखते रहें...
नीरज
धूप का टुकडा हुआ चांदनी, खुशबू से लबरेज़ हुआ
ReplyDeleteचाँद देख कर दूर देश में ,याद कोई आता है क्या
wahhhhhhh bahut hi khoobsurat sher
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल. हर शेर एक से बढ़कर एक.
ReplyDeleteBahut sundar bhaav hain aapke.
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
"सावन के झूले पर उठते,मीत मिलन के गीत कई
ReplyDeleteसबकी किस्मत में मिलनेका,अवसर आ पाता है क्या"
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...बहुत बहुत बधाई...
आपाता ko आ पाता kar lein,typing truti hai...
bahut hi khubsurat sher hain...har ek sher lajawab hai...bahut pasand aayi yah gazal.
ReplyDelete[aap ka template tippani post karne mein pareshaan karta hai..scroll karne se kayee baar post a comment gayab ho jata hai..third try mein comment post kar paa rahi hun.]