पलट कर जब समंदर में ,लहर यादों की आती है
बहकता है ये दिल मेरा ,नजर जब मुस्कुराती है
अंधेरे बंद कमरें में ,अचानक रोशनी करके
हर इक तहजीब से आगे ,हवा में गुदगुदी करके
घुली लम्हों में खुशबू सी ,शरारत गीत गाती है
पलट कर जब ................
दुआएं साफ दिखतीं हैं ,तेरे खामोश ओंठों पर
लरजता द्वार तक आँगन , तुम्हारी एक आहट पर
मुसलसल ये वफ़ा दिलवर ,मेरे अरमां जगाती है
पलट कर जब ...............
अकेले कैक्टस पर फूल की ,इस मेहरबानी का
नवाजिश आपकी ,बेइंतिहा ,,,,इस कद्रदानी का
'ये आराइश ये रौनक इस नजर में झिलमिलाती है.
पलट कर जब ................
waaaah bhahut khoob bahut hi surila sa geet laga ..plz larajta ka mean batane ki kirpa karen..thanks
ReplyDeletewah, bahut sunder , pyara geet, badhaai sweekaren.
ReplyDeleteइस गीत में गेयता गजब की है
ReplyDeleteदुआएं साफ़ .............
मुझे पसंद आया
कमाल की शायरी.!!! जाहो-जलाल की शायरी !! भाई इतना अच्छा लिखना मेरे मन में ईर्ष्या पैदा कर रहा है.
ReplyDeleteआप से दो बार कहा, ई-मेल देने के लिए, आपने अनसुनी कर दी. आज अंतिम बार मांग रहा हूँ, इस फरियाद के साथ कि अपना देना गवारा नहीं तो किसी मित्र का दे दें, यकीन रखें, एक बार के बाद कभी इस्तेमाल नहीं करूंगा, कहने पर भी नहीं. इस मांग के पीछे एक प्रयोजन है, जो शुद्ध साहित्यिक है. मैं चंदा नहीं मांगूंगा, किसी साईट का विज्ञापन नहीं करूंगा, किसी युवती / महिला को भी नहीं दूंगा.
एक बार फिर शानदार रचना के लिए जानदार रचनाकार को बधाई.
पलट कर जब समंदर में ,लहर यादों की आती है
ReplyDeleteबहकता है ये दिल मेरा ,नजर जब मुस्कुराती है ...nazaro ka muskana dil ko bahkaataa hi hai....hmesha ki tarah sunder post...
'गाफिल '-सी लहर का क्या कहना ,
ReplyDeleteजो हर हालमे बहा देती है !
ग़ज़ल को पता हो न हो ,
कुछ गज़ब तो ऐसा है ,
गूँज छुपाये से क्या छुपे ?
दुनिया सुन ही लेती है ..
अंधेरे बंद कमरें में ,अचानक रोशनी करके
ReplyDeleteहर इक तहजीब से आगे ,हवा में गुदगुदी करके
घुली लम्हों में खुशबू सी ,शरारत गीत गाती है
वाह वा...गर्दू जी वाह...बेमिसाल पंक्तियाँ...कविता का सारा सौन्दर्य समेटे हुए...आनंद आ गया पढ़ कर...
नीरज
bahut hi achcha likhte hain aap..
ReplyDeleteदुआएं साफ दिखतीं हैं ,तेरे खामोश ओंठों पर
लरजता द्वार तक आँगन ,देहरी की एक आहट पर
मुसलसल ये वफ़ा दिलवर ,मेरे अरमां जगाती है
waah ! waah !waah!
bahut umda panktiyan!
Man men utar jaane wala geet.
ReplyDeleteThink Scientific Act Scientific
प्रेम भरे भावों की सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteआप के अनुरोध पर ‘संजीदगी से गाओ ये गीत दर्द का है’ग़ज़ल में ३ और शेर प्रस्तुत किया है।आप देखें तो मेहनत सार्थक हो.....
ReplyDeleteअंधेरे बंद कमरें में ,अचानक रोशनी करके
ReplyDeleteहर इक तहजीब से आगे ,हवा में गुदगुदी करके
घुली लम्हों में खुशबू सी ,शरारत गीत गाती है
पलट कर जब ................
बहुत ही बेहतरीन गीत!
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
Badhiya nazm.
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ReplyDeleteSunday, September 6, 2009
ReplyDeleteलहर
पलट कर जब समंदर में ,लहर यादों की आती है
बहकता है ये दिल मेरा ,नजर जब मुस्कुराती है
अंधेरे बंद कमरें में ,अचानक रोशनी करके
हर इक तहजीब से आगे ,हवा में गुदगुदी करके
घुली लम्हों में खुशबू सी ,शरारत गीत गाती है
पलट कर जब ................
दुआएं साफ दिखतीं हैं ,तेरे खामोश ओंठों पर
लरजता द्वार तक आँगन ,देहरी की एक आहट पर
मुसलसल ये वफ़ा दिलवर ,मेरे अरमां जगाती है
पलट कर जब ...............
अकेले कैक्टस पर फूल की ,इस मेहरबानी का
शुक्रिया आपकी ,बेइंतिहा ,,,,इस कद्रदानी का
रौनके बज्म बे -परवाह ,निगह में झिलमिलाती है
पलट कर जब ................
Posted by गर्दूं-गाफिल at 11:17 AM
century visitors time
ReplyDeleteसुनो 'गर्दू', तुम्हारी लेखनी हमको सुहाती है
ReplyDeleteमगर रचना में देरी भी हमें बेहद सताती है
जिगर के एक गोशे से यही आवाज़ आती है
ये गर्दू की कलम किस तरह से कविता बनाती है
उजाला बांटते हो और आँखें मूँद लेते हो
सभी को चेतना देकर तुम्हीं सोए, अचेते हो
उठो गर्दू तुम्हारी लेखनी तुमको जगाती है
ये आलस और पर्दा छोड़ दो बाहर निकल आओ
जो मन में राग पैठा है उसे अब आंच दिखलाओ
सभी कृशकाय हैं केवल तेरी गज भर की छाती है.