गरलपान कर अमिय बॉटने का संकल्प और दृढ़ हो
यद्यपि वह वीभत्स देखकर सिहर गया मन सहमा है
उधर गिरे इक माँ के आँसू इधर कई आँचल भीगे
पांचाली का अपराधी, क्या केवल दुर्योधन था या
मोह मदांध शकुनि के पांसो में फंसे युधिष्ठिर भी
मूल्यों का संस्थापन करने अब समाज मन सुदृढ़ हो
अच्छा है तुम्हें ग्लानि जगी , क्यों कि तुम संस्कारी हो
ठगी गई बालाओं पर भी कभी पसीजा क्या मन यह
सभ्यताओं पर क्रोध करो जिनका जीवन व्यभिचारी है
दिशाबोध दे करो नियंत्रण आपराधिक यह लाचारी है
संकल्प करो दंडित करने का शौर्य हमारा सुदृढ़ हो
बहिष्कार है कायरता कुछ वीरोचित आभियान करो
कृष्ण राम की तरह क्रूर अन्यायी पर संधान करो
कुछ अर्जुन तैयार करो कुछ भीम भूमि पर खड़े करो
मन विस्तार करो स्व का ,मत स्वांतसुखाय सिकुड़ रहो
स्वयंप्रभा से करो समुज्ज्वल जगती का सम्बल सुदृढ़ हो
मम
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