Tuesday, September 17, 2024

हृदय पटल के पग पग पर सुधियों का मेला है फिर से आ गई होली फिर से मन रंगीला है भंवरे तितली फूल और कलियां सब हैं मस्ती में गली गली मदमाया मौसम डोले बस्ती मेंरंग अबीर घुला रग रग में मन की मौजो में बूढ़ा बरगद बाबू सोना हुआ सजीला हैकीच बना श्रृंगार आज हुड़दंगी टोली कागल गलौच है अलंकार इठलाती बोली काहोड़ ले रहा महलो से उल्लास भी खोली काबाहर तन और अन्तर्मन सब गीला गीला हैपुलक रहा है अंग अंग बिना पिए ही भंगमन करता मनुहार करे कोई आज मुझे भी तंगजीत वार दूं आ दुलार दूं करू न कोई जंगचूक न जाना होली का त्यौहार नशीला है जय होली जय जय प्रहलाद जय रंगोत्सव जय आह्लादआज जोड़ लें टूटे पुल पार करें कर लें संवादराजनीति को हद बतला दें राग राग में करें निनादसमरसता का उत्सव यह कान्हा की लीला हैमम

हृदय पटल के पग पग पर सुधियों का मेला है 
फिर से आ गई होली फिर से मन रंगीला है 

भंवरे तितली फूल और कलियां सब हैं मस्ती में 
गली गली मदमाया मौसम डोले बस्ती में
रंग अबीर घुला रग रग में  मन की मौजो में 
बूढ़ा बरगद बाबू सोना हुआ सजीला है

कीच बना श्रृंगार आज हुड़दंगी टोली का
गल गलौच है अलंकार इठलाती बोली का
होड़ ले रहा महलो से उल्लास भी खोली का
बाहर तन और अन्तर्मन सब गीला गीला है

पुलक रहा है अंग अंग  बिना पिए ही भंग
मन करता मनुहार करे कोई आज मुझे भी तंग
जीत वार दूं आ दुलार दूं करू न कोई जंग
चूक न जाना होली का त्यौहार नशीला है 

जय होली जय जय प्रहलाद जय रंगोत्सव जय आह्लाद
आज जोड़ लें टूटे पुल पार करें कर लें संवाद
राजनीति को हद बतला दें राग राग में करें निनाद
समरसता का उत्सव यह कान्हा की लीला है

मम

Saturday, September 7, 2024

दोहे

मूरखन के संसार में     ज्ञानी की है मौज
विज्ञान कला के पीछे भागे जग की फौज

अंतर क्या है ठगी से भक्ति का बतलाओ
कहे कहे में ना चले करके भी दिखलाओ

कवि प्रवाचक भांजते आपस में क्यों लट्ठ
दोनों खावें शब्द की        भक्त पड़े हैं पट्ट

गाली देने में भला       लगे न एक छदाम
एक शब्द निकसे नही लगे यदि कुछ दाम

देख लिफाफा भरकमी  कवि कर ले कन्ट्रोल
.दिन तेरा भी आएगा        लग जाएगा मोल

Monday, September 2, 2024

एक प्रतिक्रिया

नजरूल इस्लाम 'की मूर्खतापूर्ण  नज़्म पर एक प्रतिक्रिया 

पढ़ने का समय नहीं है 
न उत्सुकता न जिज्ञासा
शब्द प्रयोग से पहले 
न जाना अर्थ न परिभाषा

जिनके लिए ग्रंथ किताब का अर्थ एक है
क्यों कि उनके लिए बहन बेटी मां बहू पत्नी एक है 
ऐसी बीमार सोच और दृष्टि है जिनकी 
उनके लिए अर्जन और विसर्जन भी एक है
जिन्हें दंडित करना है मानवता के लिए 
सरासर मूर्खता है उनसे करना 
कोई भी सकारात्मक आशा 

जो देने वाले के प्रति भी आभारी नहीं हो पाते
जिस थाली में खाते उसमें छेद करते नहीं लजाते
क्यों कि कपट और लूट जिन के साधन
और को गैर कह जीने का अधिकार नहीं दे पाते 
जिन शैतानों को रोकना है नेक जीवन के लिए 
सरासर मूर्खता है उनसे करना 
कोई भी सकारात्मक आशा

Posted on face book on date 1 / 9 / 24


कायर कोरी बाते करतेकरते रहते तूम तड़ाकधरें हथेली प्राण होमनेकरें लड़ाके धूम धड़ाकबड़ी बड़ी कविताए लिखतेलिखते बड़े बड़े आलेखलिए चाहना एक हृदय मेंहो जाए कोई उल्लेखमृतक हृदय से निकले अक्षर कैसे प्रेरण दे पाएंगेपंच सितारा के चमगादडक्या रणभेर बजा पाएंगेगाल बजाने वाले गालवगांडीव उठाएंगे कैसे डस आएंगे शत्रु कोबरेपल विपलो में फट्ट फड़ाक

कायर कोरी बाते करते
करते रहते तूम तड़ाक
धरें हथेली प्राण होमने
करें लड़ाके धूम धड़ाक

बड़ी बड़ी कविताए लिखते
लिखते बड़े बड़े आलेख
लिए चाहना एक हृदय में
हो जाए कोई उल्लेख
मृतक हृदय से निकले अक्षर
 कैसे प्रेरण दे पाएंगे
पंच सितारा के चमगादड
क्या रणभेर बजा पाएंगे
गाल बजाने वाले गालव
गांडीव उठाएंगे कैसे 
डस आएंगे शत्रु कोबरे
पल विपलो में फट्ट फड़ाक

Posted on face book at 1 /9/ 24

Sunday, August 25, 2024

बड़े दिनों के बाद अफातु भाषा की एक रचनाकारवा ए तूफां गुजारा कहां है अभी संग ढ़ग से उछाला कहां हैउड़ जाएगें तमाम हमामों के पर्देअभी जोश ने जोश पाला कहां हैअभी अपने अहलेअहद में हैं बैठे औ कोई परचम निकाला कहां हैगुलूकार हम भी हैं माहिरे फनहमें मौसिकी ने संभाला कहां हैऐ ग़रदूं गज़ल तेरी है ये अधूरीअभी इश्क इसमें डाला कहां है

बड़े दिनों के बाद अफातु भाषा की एक रचना

कारवा ए तूफां गुजारा कहां है 
अभी संग ढ़ग से उछाला कहां है

उड़ जाएगें तमाम हमामों के पर्दे
अभी जोश ने जोश पाला कहां है

अभी अपने अहलेअहद में हैं बैठे 
औ कोई परचम निकाला कहां है

गुलूकार हम भी    हैं    माहिरे फन
हमें  मौसिकी  ने संभाला कहां   है

ऐ  ग़रदूं  गज़ल  तेरी  है  ये अधूरी
अभी  इश्क   इसमें  डाला कहां है

Face book post 
25/8/2017

Saturday, August 24, 2024

दुर्गा

जो पंचाग नहीं देखते मुर्गे वही हैं
जो सर झुकाए मानते गुर्गे वही हैं
भरने जो तत्पर खड़ी खप्पर लिए
रक्त अपराधी का पीने दुर्गे वही हैं

Saturday, August 17, 2024

लालकिला / मणिपुर/ सियासत गजल 16 अगस्त 2023 को फेसबुक पर पोस्ट

लालकिला / मणिपुर/ सियासत

मेले हैं झमेले हैं अकेले हैं यहां इस दुनियादारी में
बहुत कुछ, रखना पड़ता है, यहां पर पर्दादारी में

तौल-ले-बोल तभी मुंह खोल इल्मदां आए हैं  कहते
सियासत कब जला दे क्या ? तेरी, ईमानदारी में 

वो आए घर,बराएशौक,किया सिजदा,दिया सदका 
तोहमतें,, नाम कर दी, फिर ,मेरी तीमारदारी में

सांप की बस्तियों में ,खोल ,दरखिड़कियां रखिए
इरादा जो भी हो ,शक है ,सलह में ,समझदारी में

तोडेगा न छोड़ेगा  , रहे कोई , दोस्त  या  दुश्मन 
सियासत दुश्मनों से ,और मुहब्बत फूल  यारी में 

ग़रदू

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