असर हम पर न हो जाए जमाना है बदलने का
सफर है जिंदगी भर का ,है वादा साथ चलने का
मुसीबत ने बयां कर दी मुसीबत रिश्ते नातों की
बहाना ढूंढते हैं दोस्त, कतरा... के निकलने का
नजरफिसली नआई काम में फ़िरकोई होसियारी
नहीं मौका मिला अब के जरा सा भी संभलने का
नदी सूखी.पड़ी है, अब परिंदे ,क्या करें ?आकर
हवाओं में जलन है,,ये नहीं मौसम ,टहलने का
गुफ्तगू बा अमल कर दे बना कुछ कायदा ऐसा
यही एक रास्ता बचता है दिल की गांठ खुलने का
किताब मिली - शुक्रिया - 22
1 month ago
bahut hi sunder najm hai sir ....apki kuch njam padhi ..bahut hi lajavaab hai ...ek se badhkar ek
ReplyDelete..hamare blog par aane or shahrane ke liye shukriya ...apki coments hamesha vicharne yogya hoti hai ..poetry ki samajh abhi kam hai isliye aap sab ke beech rehkar bahut kuch samajhne or seekhne ko mil raha hai ...bahut bahut dhanyavad ..pranaam
गुफ्तगू बा अमल कर दे बना कुछ कायदा ऐसा
ReplyDeleteयही एक रास्ता बचता है दिल की गांठ खुलने का
बढिया ।
नदी सूखी.पड़ी है, अब परिंदे ,क्या करें ?आकर
ReplyDeleteहवाओं में जलन है,,ये नहीं मौसम ,टहलने का ....ab hwao se bhi darne lage hai log......khubsurt bhav...
waah. बहुत बढ़िया....
ReplyDeleteसमकालीन ग़ज़ल पत्रिका का प्रकाशन हो गया है...आप के सुझावों की बहुत आवश्यकता है।स्तम्भ कैसे हैं ?जरूर बतायें....
pehle sher me "zamana hai" ki jagah "hai zamana" likhen par pehla sher shayd aur behtar sound karega....iske alawa bahut zordaar likha hai....har soch kamaal ki hai....doosre sher ka andaaz-e-bayaa to mashalalah :)
ReplyDeleteसभी शेर पसंद आये
ReplyDeleteखूबसूरत गजल
वीनस केसरी
Behtareen....likhte rahiye...badhai
ReplyDeleteनदी सूखी पड़ी है....
ReplyDelete...... यह मौसम नही टहलने का
बडा खूबसूरत बन पड़ा है।
बधाईयाँ
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सबसे पहले तो एक और बेहतरीन नज़्म के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया......आगे समाचार इस प्रकार है कि आपने मेरे ब्लॉग पर आकर जो बहुमूल्य सुझाव दिए थे, उनके लिए भी आपका शुक्रिया....आपके आदेश को शिरोधार्य मानकर मैंने कितना बदल गया भगवान : भाग-२ (कारण) के रूप में इस समस्या के कारण खोजने की एक छोटी सी कोशिश की है......उम्मीद है यह छोटा सा प्रयास आपको पसंद आएगा.....
ReplyDeleteशेष फ़िर.....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
असर हम पर न हो जाए जमाना है बदलने का
ReplyDeleteसफर है जिंदगी भर का ,है वादा साथ चलने का
मुसीबत ने बयां कर दी मुसीबत रिश्ते नातों की
बहाना ढूंढते हैं दोस्त, कतरा... के निकलने का
नदी सूखी.पड़ी है, अब परिंदे ,क्या करें ?आकर
हवाओं में जलन है,,ये नहीं मौसम ,टहलने का
इन शेरों के लिए आपका जबाव नहीं.... बहुत ही उम्दा शेर है...
bahut achchhi rachanaa.....waah..
ReplyDeleteएक बहुत कसी हुई रचना. आपके बेहतरीन शायर और बेहतरीन इन्सान होने का एतराफ मैं पहले भी कर चुका हूँ. 'पेट और पीठ' वाले शेर का सन्दर्भ केवल इतना ही सोचा था कि गरीबी का इज़हार करने में भी लोगों की 'इगो' खडी हो जा रही है. शायद मैं इस शेर को सम्प्रेषित नहीं कर पाया. यार, आदमी हूँ, भूल चूक हो ही जाती है.
ReplyDeleteआप इस गजल में आख़िरी शेर, 'गुफ्तगू' की जगह 'सुखन को' कर लें तो बहर की टांग नहीं टूटेगी.
sabhi sher behatareen, gafil ji bahut bahut mubarak kubul farmayen.
ReplyDeleteगजल तो बहुत अच्छी है ,मगर गजल के उसूल के अनुसार 'खुलने का' काफिया जायज़ नहीं है .---मंज़रुल हक मंज़र 9839267013
ReplyDeleteउम्र भर साथ था निभाना जिन्हे
ReplyDeleteफ़ासला उनके दरमियान भी था
श्याम सखा ‘श्याम
मेरे ब्लॉग्स http//:gazalkbahane.blogspot.com/
Aapne apnee kavyamay tippaneeyon se mujhe bohot din mehroom rakha hai...!
ReplyDeleteKya koyi narazgee to nahee?
mai itnee saaree tippaneyon ke baad kya likhun? Khamosh hun, stabdh hun...!
Apnee beemaar maa ko aapkee rachnayen sunatee rahee...
snehadar sahit
shama
माननीय गर्दू-गाफिल जी
ReplyDeleteजय हिंद
मुआफी चाहूंगी आपसे कि मंज़र जी के दबाव डालने पर आपको 'खुलने' पर एतराज से सम्बंधित कमेन्ट पोस्ट किया ,मैं गजल की तकनीकियों से नावाकिफ हूँ ,कवितायें लिख लेती हूँ मंज़र साहब आये थे ,मेरे मुंह से आपकी गज़लों की तारीफ़ निकल गयी ,तो उन्होंने आपको पढ़ना चाहा , मैंने आपका ब्लॉग खोल कर दिखा दिया ,फिर उन्हें खुलने' पर एतराज हो गया और उन्होंने कमेन्ट करना चाहा ,मैं उनके एतराज से सहमत नहीं थी तो उन्होंने फरमाया कि मेरे नाम से कमेन्ट दीजिये ,फिर मैंने कहा कि अपना नम्बर भी दीजिये ताकी आपके एतराज से गाफिल जी संतुष्ट न हो तो आपसे बात कर लें ,उन्होंने नम्बर भी लिखा दिया .
मैंने ये सारा वाकया शाम को सर्वत साहब को सुनाया और दांत खाई कि ये पुराने लोग गजल को अपने मीटर से नापते हैं हिन्दी के मीटरको मानते ही नहीं ,तुम्हे नहीं लिखना था .अब आप ही बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए ,मेहमान का अपमान भी तो अच्छा नहीं और वो बुजुर्ग होने के साथ-साथ सर्वत साहब के मित्र भी हैं
इसलिए आपसे मुआफी चाहती हूँ क्योंकि 'खुलने'से मुझे कोई एतराज नहीं ,वह बिलकुल ठीक है
आप समझदार हैं आपने अनुमान लगा लिया है तो हमसे पूछते क्यों हैं?
वाह वाह /
ReplyDeleteगज़लो के इस ब्लोग से मै कैसे अनज़ान रहा???
बहुत खूब लिखते है जनाब आप/
etna khubsurat comment...main kya kahu ab...
ReplyDeleteख़ूबसूरत अशआर से जन्मी लजवाब ग़ज़ल
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल के सभी शेर एक से बढ़ कर.
ReplyDeleteबधाई.
नदी सूखी.पड़ी है, अब परिंदे ,क्या करें ?आकर
हवाओं में जलन है,,ये नहीं मौसम ,टहलने का
पर घर बैठ कर टिप्पणी करने का तो मौसम है............... सो कर रहा हूँ.
चन्द्र मोहन गुप्त