यह होली का समय है। समय के रथ पर बैठकर परिवर्तन आता रहता है एक समय था जब उम्र जताने के लिए देखे हुए बसन्तों की गिनती बताई जाती थी। अब बसन्त देखने ही नहीं मिलते। बसन्त तो पेड़ों पर आता था। पेड़ जंगल में पाये जाते थे,अब जंगलात कागजों में बचे हैं। बसन्त, जंगल लीलने वालों के दरबाजों की चौखटों में जड़ा है । फर्नीचर बन के अलसाया पड़ा है । जंगलात के पूरे मंगलात और पूरी समृद्घि लिये वहीं आराम से रह रहा है। ए.सी.के इशारों पर बारहो महीने वहीं नाचता है।
जब बसंत नहीं बचा तो उम्र जताने के लिए होली दिवाली नै अपनी सेवाएं देना स्वीकार कर लिया। कुछ जी अपनी उम्र दीवाली से बताते हैं तो कुछ होली से। दीवाली से उम्र बताना भाग्यशालियों के भाग में आता है। जिनके भाग्य फूटे टूटे हैं उन्हें तो दीवाली मनाने के लिए भी होली की तरह जलना पड़ता है॥
होलिका असल में उन्ही की बहन थी हिरण्यकश्यप ने तो उसे चुनावी बहन बनाया था। चुनाव में तो जाने किस किसको क्या-क्या नहीं बनाना पड़ता। गधे को बाप कहना पड़ता है और खुद किसी-किसी को सुअर तक होना पड़ता है।
प्रहलाद उसी होलिका की गोद में पला बढ़ा था जो आम आदमी की आम बहन है जिसकी जान की और लाज की कीमत न कल थी न आज है जब तक आम बने रहेंगे उनका रस (खून)पिया जाता रहेगा यही व्यवस्था का राज है। आज प्रहलाद तो नहीं है लेकिन उसका भाई आह्लाद है। गरीब तिल तिल होलिका की तरह जीवित जलते हैं आह्लाद उसकी गोद से निकलकर हिरण्यकश्यप की उंगली थामे चलते हैं। किसान दिन रात मेंहनत कर फसलें उगाते हैं और बिचौलिये घर पर बैठकर उनके पसीने पर सट्टा लगाकर करोड़ों अरबों कमाते हैं।
समय के रथ पर बैठकर और भी परिवर्तन आये हैं। गरीब शब्द का एक पर्यायवाची कार्यकर्ता भी हो ेगया है। देश मे जितने भी राजनैतिक दल है उनके अधिकांश कार्यकर्ता सालभर होली मनाते हैं। वे अपने धन की समय की होली जलाते हैं। होलिका की भूमिका निबाहते है और नेताओं को हिरण्य(स्वर्ण) कच्छप बनाते हैं। हिरण्य पाकर नेता कच्छप हो जाते हैं। देश की समस्याओं, जनता के दुख के अंगारे उनकी कठोर पीठ का कुछ नहीं बिगाड़ पाते। कठोर जीवन की संभावना सामने आते ही वे तुरन्त अपना मूंह छुपाकर अपनी पीठिका पर वेशर्म निश्चल पड़े रहते हैं।
देश में आग लगी है महंगाई की लपटों से आम (जन) का रस जल रहा है, पेटों में भूंख की ज्वाला धधक रही है लेकिन हिरण्यकच्छप दीवाली मना रहा है। वह बम फोड़कर धमाके कर रहा है जब कार्यकर्ता जवाब मांगते हैं तब ये हिरण्यकच्छप फट से अपना दर्शन कराते हैं, अपना दर्शन सुनाते हैं।
प्रहलाद उसी होलिका की गोद में पला बढ़ा था जो आम आदमी की आम बहन है जिसकी जान की और लाज की कीमत न कल थी न आज है जब तक आम बने रहेंगे उनका रस (खून)पिया जाता रहेगा यही व्यवस्था का राज है। आज प्रहलाद तो नहीं है लेकिन उसका भाई आह्लाद है। गरीब तिल तिल होलिका की तरह जीवित जलते हैं आह्लाद उसकी गोद से निकलकर हिरण्यकश्यप की उंगली थामे चलते हैं। किसान दिन रात मेंहनत कर फसलें उगाते हैं और बिचौलिये घर पर बैठकर उनके पसीने पर सट्टा लगाकर करोड़ों अरबों कमाते हैं।
समय के रथ पर बैठकर और भी परिवर्तन आये हैं। गरीब शब्द का एक पर्यायवाची कार्यकर्ता भी हो ेगया है। देश मे जितने भी राजनैतिक दल है उनके अधिकांश कार्यकर्ता सालभर होली मनाते हैं। वे अपने धन की समय की होली जलाते हैं। होलिका की भूमिका निबाहते है और नेताओं को हिरण्य(स्वर्ण) कच्छप बनाते हैं। हिरण्य पाकर नेता कच्छप हो जाते हैं। देश की समस्याओं, जनता के दुख के अंगारे उनकी कठोर पीठ का कुछ नहीं बिगाड़ पाते। कठोर जीवन की संभावना सामने आते ही वे तुरन्त अपना मूंह छुपाकर अपनी पीठिका पर वेशर्म निश्चल पड़े रहते हैं।
देश में आग लगी है महंगाई की लपटों से आम (जन) का रस जल रहा है, पेटों में भूंख की ज्वाला धधक रही है लेकिन हिरण्यकच्छप दीवाली मना रहा है। वह बम फोड़कर धमाके कर रहा है जब कार्यकर्ता जवाब मांगते हैं तब ये हिरण्यकच्छप फट से अपना दर्शन कराते हैं, अपना दर्शन सुनाते हैं।
ये कहते हैं- देखो हम भी जल रहे हैं। ईष्र्या, द्वेष, अहंकार, वासना, और लालच की आग में हम भी जल रहे हैं। मगर हमें तो यह आग बड़ी मीठी लगती है, जैसे कि कड़क सर्दी में सुलगती सिगड़ी भली लगती है। तुम हमें बेवकूफ मत बनाओ। हमारी तरह जलकर होली नहीं, दीवाली मनाओ अगर यह नहीं कर सकते तो खुद में क्रोध की ज्वाला जलाओ, अप्प होली भव: का मंत्र अपनाओ और अपने आक्रोश की लपटों में इस व्यवस्था की गंदगी जलाओ।
लुटेरों को पहचानों, पकड़ो और वहिष्कार की आग में जलाओ वर्ना खुद ही जलो, जलते रहो। हमें होली पर दीवाली मनाने दो तुम अगर अवसर को नहीं भून पाओ तो हाथ मलते रहो।
bahut karara samyik aur sunder vyangya.
ReplyDeleteहो न फिर फसाद , मजहब के नाम पर
ReplyDeleteकेसर में हरा रंग मिले ,इस बार होली में !
'होली भव: का मंत्र अपनाओ और अपने आक्रोश की लपटों में इस व्यवस्था की गंदगी जलाओ'
ReplyDelete--सच कहा है आप ने!
****आपको सपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाये****
खुद में क्रोध की ज्वाला जलाओ, अप्प होली भव: का मंत्र अपनाओ और अपने आक्रोश की लपटों में इस व्यवस्था की गंदगी जलाओ।
ReplyDeleteवाह वाह...गर्दू साहब क्या कमाल की बात कही है आपने...होली की शुभकामनयें...
नीरज
bahut der baad apki post ayee...
ReplyDeleteBahut antraal de kar likhte hain aap...:)
ReplyDelete@--post par aap ki tippani ka uttar yahin de dun--
ReplyDeleteGujhiya aap sab ke liye hi hai na..Virtual gujhiya!!!!!!!:)..jitni chahe khayeeye!
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteगर्दू साहब .. बहुत ही लाजवाब बात कही है आपने ... लुटेरों को पहचानो ...
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की मंगल-कामनाएँ ...
बहुत खूब.....!!
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद ही सही आपका आना सुखद लगा ......!!
लुटेरों को पहचानों, पकड़ो और वहिष्कार की आग में जलाओ वर्ना खुद ही जलो, जलते रहो। हमें होली पर दीवाली मनाने दो तुम अगर अवसर को नहीं भून पाओ तो हाथ मलते रहो।
ReplyDeleteKitna achha sandesh hai yah...kaash ham sabhi is raah pe chal paden!
मैं देर, बहुत बहुत ही देर से आ रहा हूँ लेकिन आपको भूला नहीं हूँ. आप मेरी स्मृतियों में बदस्तूर बने हुए हैं. आपने इस लेख में जो कुछ भी लिखा, वो मेरी अपनी आवाज़ है. मेरी मानसिकता से आप से ज्यादा दूसरा कोई वाकिफ भी नहीं. आपने जो कुछ लिखा, वो वक्त की जरूरत है.
ReplyDeleteहोली को माध्यम बनाकर राजनीति को जिस तरह से आपने बेनकाब किया है उसकी सराहना न करना, सच को झुटलाने जैसा ही होगा.
मैं काफी दिनों से व्यस्तता के घेरे में हूँ. आप भी शायद व्यस्त हैं लेकिन मित्र एक लाइन का ई-मेल का तो डाल सकते हैं.
आपकी भाभी चिंतित हैं, उन्हें ही अपनी खबर दे दें. यदि मुझसे कोई नाराजगी हो तो बताएं जरूर.
Kya baat hai aapne bade dinon se kuchh likha nahi?
ReplyDeleteye holi ki post aaj tak !!!!
ReplyDeleteaap kahaa ho bhaaii
jaldi se batao
blog pe nyee post update huee thi par yaha nahi dikh rahi..
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