देख तेरा दीवाना कैसे मारा मारा फिरता है
घर से लेकर घाट तलक ये बेचारा फिरता है
चाह में तेरी चातक सा पीहू पीहू रटता है
चौराहों से चौबारों तक आहें भरता फिरता है
कई बरातें हुईं सुहागन ,कितने गधे चढ़े घोड़ों
वर मालाएं मन में लेकर एक कुवांरा फिरता है
यूँ कहना अनुभूति मुश्किल,, पर समझो
गर्म धुप में नंगे तन पर ज्यूँ अंगारा फिरता है
उसने तो मन बना लिया ,,तेरे गले लटकने का
जबतक घर न बस जाये एक बंजारा फिरता है
घर से लेकर घाट तलक ये बेचारा फिरता है
चाह में तेरी चातक सा पीहू पीहू रटता है
चौराहों से चौबारों तक आहें भरता फिरता है
कई बरातें हुईं सुहागन ,कितने गधे चढ़े घोड़ों
वर मालाएं मन में लेकर एक कुवांरा फिरता है
यूँ कहना अनुभूति मुश्किल,, पर समझो
गर्म धुप में नंगे तन पर ज्यूँ अंगारा फिरता है
उसने तो मन बना लिया ,,तेरे गले लटकने का
जबतक घर न बस जाये एक बंजारा फिरता है
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