सिखा न पाए जो प्रेम करना
जगा न पाए संवेदनाए
उसे कहेंगे हम कैसे शिक्षा
जो काट देती है अपने घर से
यदि किया है भजन राम का
तो छोड़ दो हरना सीता मेंया
हो संस्कारी यदि सनातन
तो फिर बचा लोगे माई गैया
यदि न बांटे उजाले तुमने
फिर कैसे हो तुम सूर्यवंशी
जो तुमको रक्षक बना न पाए
छुड़ा न पाए जो भेद भाव
उसे कहेंगे हम कैसे भक्ति
जो हो रही है किसी के डर से
करते हों चोरी राजपुरूष ही
तब कैसे कहिए बचे सुशासन
हुए प्रमादी यदि प्रशासक
कौन संभालेगा अनुशासन
साधू करने लगे ठगी यदि
कौन करेगा होम हवन . .
जो खा रहे है खेत अपने
भूल गए है जो धर्म अपने
उन्हें कहेंगें हम कैसे रक्षक
मरें न आतंकी जिनके डर से .
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