इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई
बात जरा सी बढ़ गई
राज धर्म था जिन्हें पालना
यही राज शिशु हो गए
जन जन को पोषण देना था
क्षीर स्वयं ही पी गए
दीनदयाल जिन्हें होना था
वह दीनदरिद्र हुए हैं
रामनाम की ओढ़ ओढ़नी
दशुमख चारित्र्य जिए हैं
जिनसे जपी मुक्ति की माला
उनसे हीं युक्त हुए है
अकड़ गईं है इन की गर्दन
इतनी चर्बी चढ़ गई
इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई
बात जरा सी बढ़ गई
कैडर कैडर गीत पेलते
घरवाली का टिकट निकाला
रहे टापते कर्ताधर्ता
माल जहॉ से मिला निकाला
पॉच साल बुर्के में काटे
ओढ़ आए फिर राम दुशाला
मोदी जी की पूंछ पकड़
फिर_ वैतरणी. पार करेंगें
चाँदी के जूतों के सहारे
. टिकट जुगाड़ करेंगें
छल छ्द्मों की राजनीति
इनके चरित्र पे चढ़ ग्ई
इनको चढ़ना था कुर्सी पर कुर्सी इन पर चढ़ गई
बात जरा सी बढ़ गई
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