कहते तो यही हैं सब यह ईश की रचना है
धूप छाँव सुख दुख हमको ही चखना है
संसार तो छलिया है अंधेर है डगर डगर
कीच और काँटों से निज को ही बचना है
पग पग पे प्रलोभन हैं फूलो में हैँ नाग बसे
या तो शिव होना है या संभल निकलना है
आभार भार होता उपहार हार होता
किसकी है नीयत कैसी यह आप समझना है
महामना
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