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अलसाई यादों को अचानक पुरवैया ने जगा दिया नीद की बांहों में ख्वाबों ने अरमानो को सजा दिया धुप मे चादर डाल के सर पे चाँद मेरे घर पर आया नंगें पावों ,जलती दुपहरी, सन्नाटों से घबराया तन्हाई में मैंने अपने डर को गले से लगा लिया टकराती थी रोज़ नजर तब आते जाते राहों मे दौड़ लगाती थी उम्मीदें भर कर जिसे निगाहों मे उस खुशबू ने दस्तक दी औ घर को महका दिया अब तो शाम ढले दिन निकले सूरज के संग रात हुई जब दामन मेरा भीग चुका तब पता चला बरसात हुईदर्द न सोया जब जब ख़ुद माजी की लोरी सुना दिया
अलसाई यादों को अचानक पुरवैया ने जगा दिया
ReplyDeleteनीद की बांहों में ख्वाबों ने अरमानो को सजा दिया
khubsurat rachna ke liye badhaai.
Aapke sandesh aur rachnaa, donoke liye shukrguzaar hun..
ReplyDeleteAapki rachna, jo sansmaran likh rahee hun, uske liye prasnagik na bhi hio, lekin meree asli zindageeke liye behad prasnagik hai..."Dhhope chaadar daal..."lagta hai, mere moohse alfaaz chhin gaye hon...
Aapka ek sandesh, "The light by a lonely path" me jo "kahan aa gaye ham" kee ek kadi hai, wahan hai..maine us blogpe, ab likhna band kar diya hai...kuchh niji wajoohaat rahe....
Kaisee vidambana hai in alfaazme,"Ab to shaam dhale din nikale, soorajke sang raath huee...."!
अलसाई यादों को अचानक पुरवैया ने जगा दिया
ReplyDeleteनीद की बांहों में ख्वाबों ने अरमानो को सजा दिया .......
वाकई जगा दिया.... मेरा मोब. न. - 9893072930
अब तो शाम ढले दिन निकले सूरज के संग रात हुई
ReplyDeleteजब दामन मेरा भीग चुका तब पता चला बरसात हुई
दामन आंसू भर भर भीगा जब जीवन की रात हुई
जब दामन मेरा भीग चुका तब पता चला बरसात हुई
ReplyDeleteदर्द न सोया जब जब ख़ुद माजी की लोरी सुना दिया
DIL KO CHHOO LIYA.............
KHUBSOORAT RACHNA PRASTYTI PAR MEREE HARDIK BADHAI.
अलसाई यादों को अचानक पुरवैया ने जगा दिया
ReplyDeleteनीद की बांहों में ख्वाबों ने अरमानो को सजा दिया
बहोत खूब....!!
अब तो शाम ढले दिन निकले सूरज के संग रात हुई
जब दामन मेरा भीग चुका तब पता चला बरसात हुई
दर्द न सोया जब जब ख़ुद माजी की लोरी सुना दिया
वाह...वाह......!!
हाँ बैसाखी की आपको भी बधाई........!!
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteshaandaar sir jee. DIl ko choo liya aapne
ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी लगी,बधाई।
ReplyDeleteमैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा
लगा।आप मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा
लगेगा और अपने विचार जरूर दें। प्लीज.....
हर रविवार को नई ग़ज़ल,गीत अपने तीनों
ब्लाग पर डालता हूँ। मुझे यकीन है कि आप
को जरूर पसंद आयेंगे....
- प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
'धूप की चादर…'
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ऐसे ही लिखते रहिये।
आपकी रचनायें पढ़ी...दिल खुश हो गया... लिखते रहिये, दिखते रहिये...
ReplyDeleteआडवाणी जी वाले मेरे लेख पर आपके स्नेह भरे शब्दों ने मुझमें नयी जान फूँक दी है..दिल से शुक्रिया...
http://shubhammangla.blogspot.com/2009/04/blog-post_10.html
बहुत ही सुन्दर रचना है!
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