चाँदनी से भरे मुट्ठियाँ
लीपती मैं रही चिट्ठियां
आंचल में बिखरे हुए
पलको में उलझे हुए
सपनों को सिलती रही
बरसती रहीं बदलियाँ
मधुबन कई बुन लिए
टांके कई इन्द्रधनु
ममता को तुर्पते हुए
घायल हुई उँगलियाँ
सितारों को जड़ते हुए
वसंतों को मढ़ते हुए
जरीदारधागों में लिपटीं
उलझतीं रहीं गुत्थियाँ
किताब मिली - शुक्रिया - 22
1 month ago
बहुत सुन्दर गीत है।बधाई ।
ReplyDeleteMere blogpe ye kavyamay tippanee pake meree palken bheeg gayeen...behad sundar rachna hai...shayad inheen bhavanubhutiyon ke sahare banta raha mera chhote, chhote tukdonka sansaar...
ReplyDeleteShukrguzareeke alawa aur koyi lafz nahee mere paas...
sarahniya kavya shaili aur sunder rachna ke liye badhai.
ReplyDeleteसितारों को जड़ते हुए
ReplyDeleteवसंतों को मढ़ते हुए
जरीदारधागों में लिपटीं
उलझतीं रहीं गुत्थियाँ
उलझी सुलझी गुत्थियों में लिपटी नज़्म....सुंदर प्रयास ...!!
bahut sundar geet badhai
ReplyDeleteपहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
ReplyDeleteआपकी शानदार शायरी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !
वाह वाह क्या बात है! बहुत ही उन्दा लिखा है आपने !
आप के ब्लॉग पर आके अच्छा लगा . बहुत अच्छा लिखते हैं आप .बधाई.
ReplyDeleteइस दुनिया में आके
दिल से दिल लगाके
जिसने प्यार न किया
उसने यार न जिया।
मैंने यह गीत का मुखडा लिखा है । पूरा गीत नहीं बन पा रहा है। ब्लोगरो से अपील है की मेरा यह गीत पूरा करने में मदद करें। गीत की पाँच अंतरा लिखनी हैं। जो भी ब्लोगर अंतरा लिखेगे उनका नाम अंतरा के सामने लिखा जाएगा। कमेन्ट बॉक्स में अपनी अंतरा लिखें । धन्यबाद ।
सितारों को जड़ते हुए
ReplyDeleteवसंतों को मढ़ते हुए
जरीदारधागों में लिपटीं
उलझतीं रहीं गुत्थियाँ
बहुत सुन्दर भाव तथा सुन्दर काव्य शिल्प
वाह वाह क्या बात है ! आप बहुत ही उन्दा लिखते हैं !
ReplyDeleteआंचल में बिखरे हुए
ReplyDeleteपलको में उलझे हुए
सपनों को सिलती रही
बरसती रहीं बदलियाँ
Bahut khub likha hai.