बहोत अंधेरा घिर आया है दिल की राहों में
जलाओं दीप मोहब्बत के तुम निगाहों में
हुज़ुमे गम है चुभन दिल में नमी आंखों में
लोग डूबे हैं अंधेरों में सुरुरों में औ अनाओं में
करूं निसार हजार बार ये जिंदगी तुझ पर
दौर ऐ गर्दिश में भी जीता रहा वफाओं में
हर तरफ तंज़ कहीं रंज ,है बदगुमानी कहीं
सुकूने ऐ दिल की तलब है मेरी सदाओं में
संभलो तहजीब पे हमलों का दौर है गर्दूं
बहोत है दर्दे वतन मरहम चढाओ घावों में
किताब मिली - शुक्रिया - 22
1 month ago
आपकी कहन तो अच्छी है मगर मुझे आपकी गजल बेबहर लगी
ReplyDeleteआपका वीनस केसरी
बहोत अंधेरा घिर आया है दिल की राहों में
ReplyDeleteजलाओं दीप मोहब्बत के तुम निगाहों में
boht hi sunder...
एकबस महब्बत चाहत मकाम है मेरा
ReplyDeleteबेइल्म हूँ मगर गुनगुनाना काम है मेरा
कसीदाकारी है गोया हुनरमिजाजों की
मै सुनार नहीं लोहे का काम है मेरा
मैं तो उलझा हूँ खुशबुओं की खेती मे
सजाओ तुम गुल खिलाना काम हैमेरा
जैसे चाहो सजाओ मेरे गुलदानों को
खुश्बू ऐ जीस्त उगाना काम है मेरा
मै परिंदा हवाओं का हमसफर हरदिन
मैं हूँ गर्दूं और सुखन असमान है मेरा
सम्हालो शौक से नगमात हैं तुम्हारे लिए
तुम्हारे जज्बे को केसरी सलाम है मेरा
मैं तो उलझा हूँ खुशबुओं की खेती मे
ReplyDeleteसजाओ तुम, गुल खिलाना काम है मेरा
वाह! गर्दू जी वाह!! प्रतिक्रिया में ही सही मेरे मन के भावो को अभिव्यक्त कर दिया आपने. मेरा वीनस केसरी जी को धन्यवाद.
गर्दू जी, अनुरोध है कि इस रचना को स्वतंत्र रूप से पोस्ट करें ताकि हम जैसे प्रशंसकों को बाद में भी ढूढने में आसानी हो.
राम राम.
एक बात और आपके ब्लॉग की नई थीम पुरानी थीम से ज्यादा अच्छी है.
ReplyDeleteराम राम
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ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से पेश किया आपने इस कविता को.....क्या शब्दों का प्रयोग किया आपने...मैं तो निशब्द हूँ!
ReplyDeleteऔर मेरे ब्लॉग में आपकी शायरी की दात देनी पड़ेगी!
आपकी सुंदर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteमुझे आपका ये कविता बेहद पसंद आया! इतना अच्छा लगा कि कहने के लिए अल्फाज़ नहीं है!
संभलो तहजीब पे हमलों का दौर है गर्दूं
ReplyDeleteबहोत है दर्दे वतन मरहम चढाओ घावों में
अति संवेदनशील और देशभक्ति भावना से ओतप्रोत शेर
बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
बहोत अंधेरा घिर आया है दिल की राहों में
ReplyDeleteजलाओं दीप मोहब्बत के तुम निगाहों में
वाह....बहुत खूब......!
संभलो तहजीब पे हमलों का दौर है गर्दूं
बहोत है दर्दे वतन मरहम चढाओ घावों में
लाजवाब ....!! गाफिल जी आपके शे'रों में दिन पर दिन निखार आता जा रहा है ......bdhai...!!
गुर्दू गाफिल जी शायद आपको पता नहीं है कि शाहिद मिर्जा जी का इंतकाल हुए कुछ अर्सा हो गया है।
ReplyDeleteहो सके तो लिख डाला ब्लॉग में अपना कमेंट डिलीट कर आइए।
मैंने आज ही देखा तो सोचा कि आपको आगाह कर दूं।
अनोनमस जी
ReplyDeleteसूचना के लिए धन्यवाद किन्तु टिप्पणी तो वर्षा जी की स्वीक्रति के बाद ही प्रकाशित होनी थी .
उन्होंने यह टिप्पणी प्रकाशित ही क्यों की होगी ?
सहृदयता के लिए आभार
आपके ब्लाग की सज्जा अकल्पनीय है बधाई और हां प्रस्तुत गजलनुमा रचना के लिये भी बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteबहोत अंधेरा घिर आया है दिल की राहों में
ReplyDeleteजलाओं दीप मोहब्बत के तुम निगाहों में
bahut khoob gafil ji, sunder rachna ke liye badhaai sweekaren.
sunder Rachna ke liye badhayi sweekar kare
ReplyDeletegafil ji,
ReplyDeletebahut khoob!aap ko is rachna ke liye bahut dhanyawaad.
नागफनी आँखों में लेकर सोना हो पाता है क्या
ReplyDeleteउम्मीदों में उलझके कोई चैन कहीं पाता है क्या
बीज मोहब्बत के रोपे फिर छोड़ गए रुसवाई में
दर्द को मैंने कैसे भोगा कोई समझ पाताहै क्या
धुप का टुकडा हुआ चांदनी खुसबू से लबरेज़ हुआ
चाँद देख कर दूर देश में याद कोई आता है क्या
मेरे ब्लॉग पर इन गजब के शे,रों से कमेन्ट देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ......!!
Aksar aapki tippaneeka jawab dene aati hun, aur aapki rachnayen, baar, baar padhte hue, wahee baat bhool jati hun!
ReplyDeleteKhair, aapko batane aayi thee,ki, "aajtak takyahan tak" pe "Bole tu kaunsi bolee" is sheershak tehet ,kuchh halke fulke lamhaat yaad kar rahee hun!
Intezar rahega!
Jis rachnake tehet,ye likh rahee hun, use badhke nishabd hun...watanke liye dilme ek dard liyehi, koyi aisa likh sakta hai...