मैंने तो बस गोली एक ही दागी थी
तुम मरही गए मेरी मासूमियत पर
मैं खेल ही तो रहा था पेट्रोल बमों से
तुम्हें अब भी शक है मेरी नीयत पर
पत्थर उड़ कर आए थे मेरे हाथों में
क्या बरसाता और तुम्हारे स्वागत पर
तेरा सर फूटा या किसी की आंख गई
मैं तो कायम था मेरी इबादत पर
तुम मेरी तरह कभी हो ही नहीं सकते
ज्यादा से ज्यादा आओगे, तोहमत पर
तुम समझते हो कि मैं समझता नहीं
हंसू या रोऊं तुम्हारी जाहिलियत पर
एक है उलझन काफिर बनाए किसने
झल्लाऊं खुदा पर या शैतानियत पर
शैतान, बनाया किसने और किसलिए
हैरान परेशान हूं उसकी हैवानियत पर
जालिम को अपना कह जो माफ करे
जो भी हो वह धब्बा है इंसानियत पर
ग़रदूं
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