निर्मल सुखद बहती हुई जलधार,
अनवरत धूप में तरु एक छायादार
यही हो भूमिका व्यवहार का आधार
मै होना चाहता हूँ स्रोत अमृत द्वार
कर्म रण में समर के शौर्य का श्रंगार
निर्माण में सातत्य संलग्नता स्वीकार
प्रतिक्षा का समापन ,तोष का अनुस्वार
मै होना चाहता हूँ स्रोत अमृत द्वार
किताब मिली - शुक्रिया - 22
1 month ago
Achcha likhte hain aap.Badhai.
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