नदिया से तटबंधों की तकरार पुरानी है
सीता सहनशीलता ने दुर्गा की ठानी है
सूर्य उदित हो चला तमस छाया हो जाएगा
संकल्पों की धार नई तलवार पुरानी है
कर में लिए कृपाण काटते स्वयम हीनताएं
हृदय विवर से खींच निकाले सभी दीनतायें
समता की शक्ति धारण करने आव्हान करें
अन्यायों से , अनाचार से , रार पुरानी है
दुर्गम दुर्गों पर मन के अपना अधिकार रहे
निर्बल निर्धन सबल धनी से सम व्यवहार रहे
शत्रु रहित सतपथ पर नित जीवन निर्बाध चले
प्रार्थनाओं के स्वर में यह मनुहार पुरानी है
किताब मिली - शुक्रिया - 22
1 month ago
Bahut achchi lagi aapki rachna.Badhai.
ReplyDeleteसुन्दर शब्द संयोजन ..शास्वत सत्य
ReplyDeleteAap mere blogpe padh rahen hain, iske liye shukr guzaar hun...khair kisee karanwash mujhe kayi ehem hisse hata dene pade....shayad kuchh bikhraavsa lage...aur antbhee mere manmutaabiq nahee kar saki...jobhi hai, ab yahee hai...
ReplyDeleteaapki rehnumayeeki hamesha tahe dilse qadr kartee hun...seekhna chahtee hun, aapjaise gurujanose..