एक वर्षों पुराने खुदरा कागज से सहेज ली आज एक अनगढ़ रचना
हो गया छवि देखकर मैं मुग्ध जिसकी
आ रहा आभार है उस मूर्तिका पर
मन मालिनी मकरंद रज की भूमिका में
छा गई है मन भुवन की बुर्जिका पर
ग्यात से अग्यात के पथ पांव अनुचर
धूप से सुख छांव तक के नित्य सहचर
अभिमाननी आंख में उतरा प्रणयपल
माधुर्य आया तब भंवरती गीतिका पर
आह्लाद के आभार में श्रृगांर कर आई
मधुरिमा प्रतिदान का संकेत कर आई
प्रतिदृष्टि में कौंधी धजा विद्युल्लता सी
लावण्य भर आया सहमती रीतिका पर
[12:25AM, 05/04/2015] jgdis Gupt:
हो गया छवि देखकर मैं मुग्ध जिसकी
आ रहा आभार है उस मूर्तिका पर
मन मालिनी मकरंद रज की भूमिका में
छा गई है मन भुवन की बुर्जिका पर
ग्यात से अग्यात के पथ पांव अनुचर
धूप से सुख छांव तक के नित्य सहचर
अभिमाननी आंख में उतरा प्रणयपल
माधुर्य आया तब भंवरती गीतिका पर
आह्लाद के आभार में श्रृगांर कर आई
मधुरिमा प्रतिदान का संकेत कर आई
प्रतिदृष्टि में कौंधी धजा विद्युल्लता सी
लावण्य भर आया सहमती रीतिका पर
[12:25AM, 05/04/2015] jgdis Gupt:
No comments:
Post a Comment