कांच कंचन हुआ मन वृंदावन हुआ
पांव पायल हुई बावरी बावरी
गंधरस मेँ पगी रुप की माधुरी
भोर होते हुई पांखुरी पांखुरी
स्वर सुधा साध कर रागिनी सुरमई
द्रुत विलंबित हुई मध्यमा छुईमुई
दृश्यमय हो गए गीत गोविंद के
तार सप्तक अधर हो गए बांसुरी
सर से सरकी चुनर,धूप निखरी इधर
भोर का छोर तज मुख हुआ दोपहर
रश्मिरथ पे चढ़ा सूर्य आगे बढ़ा
सांझ की लालिमा हो गई सांवरी
रच गई अल्पना सच हुई कल्पना
व्योम पर छा गया एक बादल घना
तूलिका हंस पड़ी रंग नर्तक हुए
लय हुई देह की भांवरी भांवरी
11:56AM, 6 Jul - jgdis Gupt:
पांव पायल हुई बावरी बावरी
गंधरस मेँ पगी रुप की माधुरी
भोर होते हुई पांखुरी पांखुरी
स्वर सुधा साध कर रागिनी सुरमई
द्रुत विलंबित हुई मध्यमा छुईमुई
दृश्यमय हो गए गीत गोविंद के
तार सप्तक अधर हो गए बांसुरी
सर से सरकी चुनर,धूप निखरी इधर
भोर का छोर तज मुख हुआ दोपहर
रश्मिरथ पे चढ़ा सूर्य आगे बढ़ा
सांझ की लालिमा हो गई सांवरी
रच गई अल्पना सच हुई कल्पना
व्योम पर छा गया एक बादल घना
तूलिका हंस पड़ी रंग नर्तक हुए
लय हुई देह की भांवरी भांवरी
11:56AM, 6 Jul - jgdis Gupt:
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