नीयत ना बदलेंगे तो फिर
नियति भला कैसे बदले
नियति वही रहना है तो
सरकार बदल कर क्या हासिल ?
कुछ लोग बदल जायेंगे बस
कुछ समीकरण हों परिवर्तित
नहीं बदलना है गर दिल
चेहरों को बदल कर क्या हासिल?
हवन यदि फिर भी पठ्ठों के हाथ रहा
और राज दंड भी उद्दंदों के साथ रहा
गीले कंडों की समिधा धुआं करेगी ही..
पंडे और पंडाल बदल कर क्या हासिल?
वंचित को शक्ति ना मिल पाए
मूक ना अभिव्यक्ति पाए
यदि लूट बरामद हो ना सके
धावों दावों से क्या हासिल?
अब आप आ ही गए हो तो ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है !
ReplyDeletedhanyavad
ReplyDelete