गूंगों से मत शास्त्रर्थ करो
बहरों पर शब्द न व्यर्थ करो
ये टूटी हुई शलाकाएँ ,शेष न इनमें आग कोई
लालच के इन पुतलों में,बचा न देशज राग कोई
ये बँटे हुए हैं ख़ुद इतने ,कैसे हो इनका भाग कोई
इनकी है भागम भाग विकट ,इनके न कोई अनुअर्थ करो
सन्नाटे में सुने शब्द ,कहीं कोई हो यदि मनुष
करुण आर्त कृन्दन से पिघले ,हुंकार भरे ले थाम धनुष
मन वाला मत वाला होकर ,हो सके तो होजा आज मनुष
व्योम धरा नि; स्तब्ध हुए ,इनके न कोई स्लेशर्थ करो
संघनित करो तो पीड़ाएं, संधान के स्वर रोओं तो
महामंत्र है राष्ट्र मन्त्र ,बस बीज हृदय में बोओं तो
अवतार बनेगा शब्द स्वयं , तुम साथ शब्द के खोओ तो
हैं शब्द तपस्वी ओजस्वी ,इनके न कोई अन्यर्थ करो
अतिसुन्दर !
ReplyDeleteयह स्टाइल जानी पहचानी लग रही है !
dhanyavad
ReplyDeletekyoki
jo peeda tumhe satati hai
wah humsabko jhulsati hai
hum pathik sabhi un rahon k
jo manavta dikhlati hai