होली ये बोली सुन हमजोली खेल राग की होली
अपने मन का डाल न कीचड़ खेलो रंग-रंगोली
मौज में झूमे मस्ती में नाचे मस्तानो की टोली
आओ खेलें प्रीत के रंग से जला द्वेष की होली
ओट में मेरी घर न जले ना मन सहमे कोई
मै आई हूँ नेह बाँटने भरे रंग की झोली
रुत है फागुनी मन है फागुनी साजन भी फगुनाया
सब मन गायें गीत फागुनी छोड़ बैर की बोली
जिन हाथों में बंदूकें हैं उन में ले लो पिचकारी
मायूसों को मुस्कानें दो कर लो हँसी ठिठोली
गाली का क्या काम गुलालों को मल दो गालों पर
आज न पत्थर भी कोई फेंके बात दूर की गोली
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