Monday, February 16, 2009

इसी में है समझदारी

न बनिए झुनझुना झांझर , न बनिए राग दरबारी
प्रलोभन हैं बहुत जग में, बड़ी है किंतु खुद्दारी
बचा लो संस्कारों को ,इसी में है समझदारी

अगर तुम तत्व देते हो , जगत को शान्ति होती है
जिसे तुम सत्य देते हो , उसी मे क्रांति होती है
हो तुम वरदान ईश्वर का ,तुम्हें आशीष अक्षर का
खुले मन से लुटा निज को,न बन शब्दों का व्यापारी
बचा लो संस्कारों को ,इसी में है समझदारी

सजग होकर जगत में,तुम जगाओ श्रेष्ठतम चेतन
करो संहार विकृति का , रचो संसार एक नूतन
चलो संस्कृति का रथ लेकर ,पताका भारती की हो
बढ़ा चल मुक्ति के पथ पर ,जिसका है तू अधिकारी
बचा लो संस्कारों को,इसी में है समझदारी

बजो कान्हा की बंसी बन, गगन सुख रश्मियाँ भर दो
उठाओ कुंचियाँ अपनी ,हर इक मन रंगमय कर दो
मृदुल मन ताल दे थिरके ,भुवन हो नाद आनंद का
कला है हाथ जो तेरे , विश्व को बाँट दे सारी
बचा लो संस्कारों को ,इसी में है समझदारी

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