Tuesday, February 17, 2009

बहरों पर शब्द न व्यर्थ करो

गूंगों से मत शास्त्रर्थ करो

बहरों पर शब्द न व्यर्थ करो

ये टूटी हुई शलाकाएँ ,शेष न इनमें आग कोई

लालच के इन पुतलों में,बचा न देशज राग कोई

ये बँटे हुए हैं ख़ुद इतने ,कैसे हो इनका भाग कोई

इनकी है भागम भाग विकट ,इनके न कोई अनुअर्थ करो

सन्नाटे में सुने शब्द ,कहीं कोई हो यदि मनुष

करुण आर्त कृन्दन से पिघले ,हुंकार भरे ले थाम धनुष

मन वाला मत वाला होकर ,हो सके तो होजा आज मनुष

व्योम धरा नि; स्तब्ध हुए ,इनके न कोई स्लेशर्थ करो

संघनित करो तो पीड़ाएं, संधान के स्वर रोओं तो

महामंत्र है राष्ट्र मन्त्र ,बस बीज हृदय में बोओं तो

अवतार बनेगा शब्द स्वयं , तुम साथ शब्द के खोओ तो

हैं शब्द तपस्वी ओजस्वी ,इनके न कोई अन्यर्थ करो

2 comments:

  1. अतिसुन्दर !

    यह स्टाइल जानी पहचानी लग रही है !

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  2. dhanyavad
    kyoki
    jo peeda tumhe satati hai
    wah humsabko jhulsati hai
    hum pathik sabhi un rahon k
    jo manavta dikhlati hai

    ReplyDelete

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