Thursday, February 19, 2009

तुम्हारी सौगंध

मधुर प्रीत बेला के अनुपम अनुबंध

मथते हैं मन को तुम्हारी सौगंध

स्मृति झरोखों पर मलयज सुगंध

दृगों में द्रवित प्रिय पीड़ा के बंध

पुनः पुनः दृश्यमान प्रणयित स्कन्ध

हृदय के पटल पर विराजित प्रबंध

मथते हैं मन को तुम्हारी सौगंध

मतिहारी मनुहारी उद्वेगी प्रसंध

वैदेही वरदेही युग्मों के संध

गीतों में उतरे छुअन के निबंध

परिभाषा को तरसे अबूझे सम्बन्ध

मथते हैं मन को तुम्हारी सौगंध

अटकाते भटकाते भावों के फंद

संदर्शित संदल कपाटों के संद

विहगों की पांखों पर उल्लासित छंद

संध्या को नीड़ों में अलसाये वृन्द

मथते हैं मन को तुम्हारी सौगंध

कुंतल कपोलों पर लहराते मंद

कुंडल की किंकणी में बंदी आनंद

प्रतिहारी स्वीकारी आवेशी द्वंद

आशंकित आल्हादित चितवन स्पंद

मथते हैं मन को तुम्हारी सौगंध

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