Sunday, June 30, 2024

।नही हैं दिखते बनाने वालेहरेक जगह हैं गिराने वालेजिन्हें बचाने तड़प रहे थेवही तो निकले फँसाने वाले2मुकर रहे हैं वे रोशनी से है उनकी किस्मत में तीरगी हीबर्क उन्हीं पर करी मुकर्ररजो आशियाँ थे दिलाने वाले3नहीं है ये कोई खुदा के बंदेये आँख वाले अक्ल के अंधेउन्ही के पाँवो जमीन खींचेंजो दे रहे हैं उन्हें निवाले4नापाक बंदे ये नाखुदा के खुद कश्तियो को डुबा रहे हैं क्या लिख सकेंगे ये खुशमिजाजीमोहब्बतों को मिटाने वालेorनापाक बंदे ये नाखुदा के जो भंवर में कश्ती फंसा रहे है क्या लिख सकेंगे ये खुशमिजाजीमोहब्बतों को मिटाने वाले5यकीं तरक्की औ उल्फतें भीनहीं तो आखिर क्या चाहते होन सरजमीं को दोजख बनाओनफरतों के न कर हवाले

नही हैं दिखते बनाने वाले
हरेक जगह हैं गिराने वाले
जिन्हें बचाने तड़प रहे थे
वही तो निकले फँसाने वाले
2
मुकर रहे हैं वे रोशनी से 
है उनकी किस्मत में तीरगी ही
बर्क उन्हीं पर करी मुकर्रर
जो आशियाँ थे दिलाने वाले
3
नहीं है ये कोई खुदा के बंदे
ये आँख वाले अक्ल के अंधे
उन्ही के पाँवो जमीन खींचें
जो दे रहे हैं उन्हें निवाले
4
नापाक बंदे ये नाखुदा के 
खुद कश्तियो को डुबा रहे हैं 
क्या लिख सकेंगे ये खुशमिजाजी
मोहब्बतों को मिटाने वाले

or
नापाक बंदे ये नाखुदा के 
जो भंवर में कश्ती फंसा रहे है 
क्या लिख सकेंगे ये खुशमिजाजी
मोहब्बतों को मिटाने वाले
5
यकीं तरक्की  औ उल्फतें भी
नहीं तो आखिर क्या चाहते हो
न सरजमीं को दोजख बनाओ
नफरतों के न कर  हवाले

यकीं तरक्की  औ उल्फतें भी
नहीं तो आखिर क्या चाहते हो
न सरजमीं को करो यूं दोजख 
न नफरतों के रहो हवाले

मैं बनाता रह गया श्रेष्ठता का काफियाऔ प्रतिष्ठा ले गया लूट कर एक माफियाअनसुनी करते रहे वो हर गुहारो प्रार्थनाएक्शन जब हो गया तब कहा ये क्या कियाइस तरह से मत खुलो कि संतुलन खोना पडेभांप कर मज्मूने खत हंस पडा था डाकियाकष्ट किश्तों में भला या फ़िर गुलामी चाहिएभींच ले तू मुठ्ठियाँ बदले हर इक जुगराफ़ियातख्ता पलट होने में कितनी देर लगती है कहोकेन्द्र तब तक ही सुरक्छित अहम जब तक हांशियाउद्विग्नता बढ़ती गयी ज्यों ज्यों निकट मंजिल हुईकर दवा कुछ होश की ला पिला दे साक़िया

मैं बनाता रह गया श्रेष्ठता का काफिया
औ प्रतिष्ठा ले गया लूट कर एक माफिया

अनसुनी करते रहे वो हर गुहारो प्रार्थना
एक्शन जब हो गया तब कहा ये क्या किया

इस तरह से मत खुलो कि संतुलन खोना पडे
भांप कर मज्मूने खत हंस पडा था डाकिया

कष्ट किश्तों में भला या फ़िर गुलामी चाहिए
भींच ले तू मुठ्ठियाँ बदले हर इक जुगराफ़िया

तख्ता पलट होने में कितनी देर लगती है कहो
केन्द्र तब तक ही सुरक्छित अहम जब तक हांशिया

उद्विग्नता बढ़ती गयी ज्यों ज्यों निकट मंजिल हुई
कर दवा कुछ होश की ला पिला दे साक़िया

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