Friday, June 20, 2025

स्पान्टेनियस फ्लो के तीन गीत

स्पॉन्टेनियस फ्लो के तीन गीत
1
गीत गाना धन कमाना बस यही तो काम है
बेचते हैं वीर रस भी लक्ष्य केवल दाम है ।

बुझ चुके है प्रज्ञ-चक्षु संवेदना का तंत्र विकृत
राज्य के चरणों में बैठे श्री राम के कापुरुष वंशज
राजदासों में अवस्थित राम के कापुरुष वंशज
जाति पर लड़ने को उद्यत राक्षसों से संधि तत्पर
वेदांत के थाती न सम्हली चर्वाक जैसे काम है 
ज्वालामुखी हैं ईर्ष्या के श्रीबुद्ध के सहगाम है

लिख रहे नित पोथियां दृष्टि में याचन प्रशस्ति
सिद्ध वाणी हो गई तो अहमन्यता में धंस गए 
कई उलूकाचार्य बैठे व्यास जी की पीठ पर 
वीरता गानी थी जिनको गा रहे वे काम हैं
काम लोभी दाम लोभी बेचते अध्यात्म हैं

साकार हो जाए सृजन कृत्य हो जाए कथानक
दुष्ट के संहार को "कोदंड" हो जाए विचारक
बन सुदर्शन स्वयं काटे दल सनातन शत्रु के
लेखनी हो सार्थक तब धन्य वन्दे मातरम्
नटराज के साधन सघन कृष्ण के अनुगाम है
कह सकेंगे गर्व से आराध्य अपने राम हैं 

2

कैसे लोकतंत्र में हम है 
कुलघाती को सम अधिकार 
नैतिकता का और पतन क्या
संहिताओ का यह व्यभिचार

जिसने अपहृत कर विधान को
(कु )शोधन विधान कर डाला
रक्षक बन कर वही घूमता
जपता संविधान की माला 
इससे और अधिक क्या होगा
नैतिकता का बलात्कार 

समदर्शी का स्वांग रचाए 
एकांगी दृष्टि से काना
ठगी की सब उपमाएं छोटी
ऐसे षड़यंत्रो को ताना 
अदलबदल कर बाने अपने
आतुर है बनने सरकार

कहता है निरपेक्ष स्वयं को 
 एक पक्ष को काट रहा है
फिरे घूमता आग लगाता 
जाति कौम में बांट रहा है 
ऐसा कैसा विरू विपक्ष है 
शत्रु सा जिसका व्यवहार

3

रेगिस्तानों के गुलाम ओ
मत करो प्रदूषित बंग को
निगल जाएगा दावानल सब
हवा न दो इस जंग को 

गिरगिट जैसे मत बांचो
मजहब की कितआब को
फल कर्मो का मिलता ही है
मत भूलो इस पाठ को
माहौल बिगड़ने से पहले
लुढ़काओ विषैले रंग को 

मकसद का हो गया खुलासा
कठपुतली किरदार सियासी
गोद में जा बैठे हो उसकी
दी जिसने मजहब को फाँसी 
अंजाम सोच लो क्या क्या होगा
तुम बांट रहे जिस भंग को

ख्वाब एक कश्मीर का
ले उड़ा आबरू पाक की
तुमकों भी लेकर डूबेगी 
आहें हिंदू ए बंगाल की 
मत तांडव को करो निमंत्रित
करो न दूषित गंग को 

.

रेगिस्तानों के ओ कासिद

मम

Wednesday, May 28, 2025

विनय न मानत जलधि जड़ ये लातो के मीतचाकर से मत आस कर भय बिन होय न प्रीत हम अनुगामी थे शौर्य के सिंहो के आदर्शभेड़ो के अनुगमन के हम कब हुए प्रदर्श करते रहो सवाल कि जब तक स्याही न जाए सूखमृगतृष्णा है आस कि जिनको धन मद पद की भूख

विनय न मानत जलधि जड़  ये लातो के मीत
चाकर से मत आस कर भय बिन होय न प्रीत

हम अनुगामी थे शौर्य के सिंहो के आदर्श
भेड़ो के अनुगमन के   हम कब हुए प्रदर्श

करते रहो सवाल कि जब तक स्याही न जाए सूख
मृगतृष्णा है आस कि जिनको धन मद पद की भूख

Saturday, May 24, 2025

छू दोगे गर लव से तुम ये कलाम गजल हो जाएगाकरो कुबूल मुहब्बत से ये सलाम गजल हो जाएगा हर इक सीने में इक दिल हर दिल में इक नाम रहेजिस नाम को दोगे अपना दिल वो नाम गजल हो जाएगामिलन के कई बहाने ग़रदूं ईद दीवाली होली हैआओगे जिस काम से मिलने वो काम गजल हो जाएगा

छू दोगे गर लव से तुम ये कलाम गजल हो जाएगा
करो कुबूल मुहब्बत से ये सलाम गजल हो जाएगा 

हर इक सीने में इक दिल हर दिल में इक नाम रहे
जिसको दोगे अपना दिल वो नाम गजल हो जाएगा

मिलन के कई बहाने ग़रदूं ईद दीवाली होली है
मिलने की जो वजह बने वो काम गजल हो जाएगा

Tuesday, September 17, 2024

हृदय पटल के पग पग पर सुधियों का मेला है फिर से आ गई होली फिर से मन रंगीला है भंवरे तितली फूल और कलियां सब हैं मस्ती में गली गली मदमाया मौसम डोले बस्ती मेंरंग अबीर घुला रग रग में मन की मौजो में बूढ़ा बरगद बाबू सोना हुआ सजीला हैकीच बना श्रृंगार आज हुड़दंगी टोली कागल गलौच है अलंकार इठलाती बोली काहोड़ ले रहा महलो से उल्लास भी खोली काबाहर तन और अन्तर्मन सब गीला गीला हैपुलक रहा है अंग अंग बिना पिए ही भंगमन करता मनुहार करे कोई आज मुझे भी तंगजीत वार दूं आ दुलार दूं करू न कोई जंगचूक न जाना होली का त्यौहार नशीला है जय होली जय जय प्रहलाद जय रंगोत्सव जय आह्लादआज जोड़ लें टूटे पुल पार करें कर लें संवादराजनीति को हद बतला दें राग राग में करें निनादसमरसता का उत्सव यह कान्हा की लीला हैमम

पग पग हृदय पटल पर सुधियों का मेला है 
ऑगन में होली द्वारे पर संत रंगीला है

भंवरे तितली फूल और कलियां सब हैं मस्ती में 
गली गली मदमाया मौसम डोले बस्ती में
रंग अबीर घुला रग रग में  मन की मौजो में 
बूढ़ा बरगद बाबू सोना हुआ सजीला है

कीच बना श्रृंगार आज हुड़दंगी टोली का
गल गलौच है अलंकार इठलाती बोली का
होड़ ले रहा महलो से उल्लास भी खोली का
बाहर तन और अन्तर्मन सब गीला गीला है

पुलक रहा है अंग अंग  बिना पिए ही भंग
मन करता मनुहार करे कोई आज मुझे भी तंग
जीत वार दूं आ दुलार दूं करू न कोई जंग
चूक न जाना होली का त्यौहार नशीला है 

जय होली जय जय प्रहलाद जय रंगोत्सव जय आह्लाद
आज जोड़ लें टूटे पुल पार करें कर लें संवाद
राजनीति को हद बतला दें राग राग में करें निनाद
समरसता का उत्सव यह कान्हा की लीला है

हृदय पटल के पग पग पर सुधियों का मेला है 
फिर से आ गई होली फिर से मन रंगीला है 

मम

Saturday, September 7, 2024

दोहे

मूरखन के संसार में     ज्ञानी की है मौज
विज्ञान कला के पीछे भागे जग की फौज

अंतर क्या है ठगी से भक्ति का बतलाओ
कहे कहे में ना चले करके भी दिखलाओ

कवि प्रवाचक भांजते आपस में क्यों लट्ठ
दोनों खावें शब्द की        भक्त पड़े हैं पट्ट

गाली देने में भला       लगे न एक छदाम
एक शब्द निकसे नही लगे यदि कुछ दाम

देख लिफाफा भरकमी  कवि कर ले कन्ट्रोल
.दिन तेरा भी आएगा        लग जाएगा मोल

Monday, September 2, 2024

एक प्रतिक्रिया

नजरूल इस्लाम 'की मूर्खतापूर्ण  नज़्म पर एक प्रतिक्रिया 

पढ़ने का समय नहीं है 
न उत्सुकता न जिज्ञासा
शब्द प्रयोग से पहले 
न जाना अर्थ न परिभाषा

जिनके लिए ग्रंथ किताब का अर्थ एक है
क्यों कि उनके लिए बहन बेटी मां बहू पत्नी एक है 
ऐसी बीमार सोच और दृष्टि है जिनकी 
उनके लिए अर्जन और विसर्जन भी एक है
जिन्हें दंडित करना है मानवता के लिए 
सरासर मूर्खता है उनसे करना 
कोई भी सकारात्मक आशा 

जो देने वाले के प्रति भी आभारी नहीं हो पाते
जिस थाली में खाते उसमें छेद करते नहीं लजाते
क्यों कि कपट और लूट जिन के साधन
और को गैर कह जीने का अधिकार नहीं दे पाते 
जिन शैतानों को रोकना है नेक जीवन के लिए 
सरासर मूर्खता है उनसे करना 
कोई भी सकारात्मक आशा

Posted on face book on date 1 / 9 / 24


कायर कोरी बाते करतेकरते रहते तूम तड़ाकधरें हथेली प्राण होमनेकरें लड़ाके धूम धड़ाकबड़ी बड़ी कविताए लिखतेलिखते बड़े बड़े आलेखलिए चाहना एक हृदय मेंहो जाए कोई उल्लेखमृतक हृदय से निकले अक्षर कैसे प्रेरण दे पाएंगेपंच सितारा के चमगादडक्या रणभेर बजा पाएंगेगाल बजाने वाले गालवगांडीव उठाएंगे कैसे डस आएंगे शत्रु कोबरेपल विपलो में फट्ट फड़ाक

कायर कोरी बाते करते
करते रहते तूम तड़ाक
धरें हथेली प्राण होमने
करें लड़ाके धूम धड़ाक

बड़ी बड़ी कविताए लिखते
लिखते बड़े बड़े आलेख
लिए चाहना एक हृदय में
हो जाए कोई उल्लेख
मृतक हृदय से निकले अक्षर
 कैसे प्रेरण दे पाएंगे
पंच सितारा के चमगादड
क्या रणभेर बजा पाएंगे
गाल बजाने वाले गालव
गांडीव उठाएंगे कैसे 
डस आएंगे शत्रु कोबरे
पल विपलो में फट्ट फड़ाक

Posted on face book at 1 /9/ 24

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