नदिया से तटबंधों की तकरार पुरानी है
सीता सहनशीलता ने दुर्गा की ठानी है
सूर्य उदित हो चला तमस छाया हो जाएगा
संकल्पों की धार नई तलवार पुरानी है
कर में लिए कृपाण काटते स्वयम हीनताएं
हृदय विवर से खींच निकाले सभी दीनतायें
समता की शक्ति धारण करने आव्हान करें
अन्यायों से , अनाचार से , रार पुरानी है
दुर्गम दुर्गों पर मन के अपना अधिकार रहे
निर्बल निर्धन सबल धनी से सम व्यवहार रहे
शत्रु रहित सतपथ पर नित जीवन निर्बाध चले
प्रार्थनाओं के स्वर में यह मनुहार पुरानी है
किताब मिली - शुक्रिया - 22
4 months ago