Monday, March 2, 2009

तुम मिले


तुम मिले चम्पा चमेली हो लिए

मधु मालिनी मकरंद केसर घोलिए

शब्द निसृत हो रहे अमृत सरित

रूपरागी हूँ कमल मुख खोलिए

बहती रहे यह शब्द धारा

भीगता जिससे किनारा

श्रंगार की मनुहार में जीवन कटा

अनुरागकामी हूँ सतत सुख घोलिये

शब्द की माया प्रबल

अनुराग के धागे निबल

प्रेम का साधक निम्न्त्र्ण दे रहा

नित अनवरत प्रिय बोलिए

2 comments:

  1. khoobsurat lafz parhne ko mile ,
    iss gazal ke sath hm bhi ho liye...

    waah !!
    aisa stareey kalaam...
    itne gehre aur saarthak shabd...
    badhaaee svikaareiN. . . .
    ---MUFLIS---

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  2. अद्भुत शब्द प्रयोग किये हैं आपने...और विस्मित किया है अपने शब्द ज्ञान से....वाह...जितनी तारीफ की जाये कम है..

    होली की शुभ कामनाएं.

    नीरज

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