Tuesday, March 31, 2009

नदिया से तटबंधों की तकरार पुरानी है
सीता सहनशीलता ने दुर्गा की ठानी है
सूर्य उदित हो चला तमस छाया हो जाएगा
संकल्पों की धार नई तलवार पुरानी है

कर में लिए कृपाण काटते स्वयम हीनताएं
हृदय विवर से खींच निकाले सभी दीनतायें
समता की शक्ति धारण करने आव्हान करें
अन्यायों से , अनाचार से , रार पुरानी है

दुर्गम दुर्गों पर मन के अपना अधिकार रहे
निर्बल निर्धन सबल धनी से सम व्यवहार रहे
शत्रु रहित सतपथ पर नित जीवन निर्बाध चले
प्रार्थनाओं के
स्वर में यह मनुहार पुरानी है



3 comments:

  1. Bahut achchi lagi aapki rachna.Badhai.

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  2. सुन्दर शब्द संयोजन ..शास्वत सत्य

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  3. Aap mere blogpe padh rahen hain, iske liye shukr guzaar hun...khair kisee karanwash mujhe kayi ehem hisse hata dene pade....shayad kuchh bikhraavsa lage...aur antbhee mere manmutaabiq nahee kar saki...jobhi hai, ab yahee hai...
    aapki rehnumayeeki hamesha tahe dilse qadr kartee hun...seekhna chahtee hun, aapjaise gurujanose..

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