Thursday, April 9, 2009

कितने प्रश्न निरूत्तर होकर झेल रहे उपहास

नहीं दिखती है कोई आस ,नहीं दिखती है कोई प्यास

...............................................

मेल ने अनबोला साधा , अनुभव ने मींची आँख

सद्भावों के पंछी लुंठित, कटे दया के पांख

सुख उतरा है निगुणो पर, और सदगुण खडे उदास

नहीं दिखती है कोई आस ....................

चिन्तन के सर पीड़ा भारी,शौर्य के मुख पर कालिख कारी

मित्र भावः के द्वार बंद हैं , लाज निर्वसन हुई बेचारी

सत्य हुआ तप हीन और विश्वास हुआ निः श्वास

नहीं दिखती है कोई आस .......................

सारी मर्यादाएं कलंकित ,भलमनसाहत है आतंकित

मुंह देखे की कहे प्रतिष्ठा ,मानवता का मन है शंकित

विनम्रता मतलब की मारी, डग डग आलस का वास

नहीं दिखती है कोई आस ......................

5 comments:

  1. सुख उतरा है निगुणो पर, और सदगुण खडे उदास

    वह भाई , कमाल कर दिया, सत्य कितनी खूबसूरती से कह दिया.

    उपरोक्त पन्तियाँ ही नहीं पूरी की पूरी कविता ही सुन्दर ही नहीं अति सुन्दर है.

    बधाई स्वीकार करें

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  2. Har pankti asar chodti hai.Badhai.

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  3. मेल ने अनबोला साधा , अनुभव ने मींची आँख

    सद्भावों के पंछी लुंठित, कटे दया के पांख

    सुख उतरा है निगुणो पर, और सदगुण खडे उदास

    नहीं दिखती है कोई आस ....................

    wah.wah. poori rachna sarahniya, anupam.

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  4. Pata nahee ke, aap jeevan me kaise, kaise anubhav
    tatha modonse guzare.....aisa lekhan swanubhaw ke siwa ho nahee sakta...dardse guzarkehi insaan sachhaeese ru b ru ho sakta hai..."kate dayake pankh", "sukha utara hai niguno par, aur sadgun khade udaas","Saaree maryadayen kalankit,bhalmanas hai aatankit"...ye 'swayamse' guzarkar poore wishwkee paridhiko samaye hue alfaaz hain...
    Aapki rachnayon pe tippanee karun, aisee meree qabiliyat nahee, ye mai phir ekbaar keh rahee hun...gar kuchh galati huee ho to kshama prarthi hun...

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  5. वर्तमान हालातो पर फिट बैठती है...
    नीचे लिखी पंक्तियों ने तो भाव विभोर कर दिया....
    कितने प्रश्न निरूत्तर होकर झेल रहे उपहास

    नहीं दिखती है कोई आस ,नहीं दिखती है कोई प्यास

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