Saturday, April 11, 2009



अलसाई यादों को अचानक पुरवैया ने जगा दिया
नीद की बांहों में ख्वाबों ने अरमानो को सजा दिया

धुप मे चादर डाल के सर पे चाँद मेरे घर पर आया
नंगें पावों ,जलती दुपहरी, सन्नाटों से घबराया
तन्हाई में मैंने अपने डर को गले से लगा लिया

टकराती थी रोज़ नजर आते जाते राहों मे
दौड़ लगाती थी उम्मीदें भर कर जिसे निगाहों मे
उस खुशबू ने दस्तक दी औ घर को महका दिया

अब तो शाम ढले दिन निकले सूरज के संग रात हुई
जब दामन मेरा भीग चुका तब पता चला बरसात हुई
दर्द न सोया जब जब ख़ुद माजी की लोरी सुना दिया

12 comments:

  1. अलसाई यादों को अचानक पुरवैया ने जगा दिया
    नीद की बांहों में ख्वाबों ने अरमानो को सजा दिया

    khubsurat rachna ke liye badhaai.

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  2. Aapke sandesh aur rachnaa, donoke liye shukrguzaar hun..
    Aapki rachna, jo sansmaran likh rahee hun, uske liye prasnagik na bhi hio, lekin meree asli zindageeke liye behad prasnagik hai..."Dhhope chaadar daal..."lagta hai, mere moohse alfaaz chhin gaye hon...
    Aapka ek sandesh, "The light by a lonely path" me jo "kahan aa gaye ham" kee ek kadi hai, wahan hai..maine us blogpe, ab likhna band kar diya hai...kuchh niji wajoohaat rahe....
    Kaisee vidambana hai in alfaazme,"Ab to shaam dhale din nikale, soorajke sang raath huee...."!

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  3. अलसाई यादों को अचानक पुरवैया ने जगा दिया
    नीद की बांहों में ख्वाबों ने अरमानो को सजा दिया .......
    वाकई जगा दिया.... मेरा मोब. न. - 9893072930

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  4. अब तो शाम ढले दिन निकले सूरज के संग रात हुई
    जब दामन मेरा भीग चुका तब पता चला बरसात हुई


    दामन आंसू भर भर भीगा जब जीवन की रात हुई

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  5. जब दामन मेरा भीग चुका तब पता चला बरसात हुई
    दर्द न सोया जब जब ख़ुद माजी की लोरी सुना दिया

    DIL KO CHHOO LIYA.............
    KHUBSOORAT RACHNA PRASTYTI PAR MEREE HARDIK BADHAI.

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  6. अलसाई यादों को अचानक पुरवैया ने जगा दिया
    नीद की बांहों में ख्वाबों ने अरमानो को सजा दिया

    बहोत खूब....!!

    अब तो शाम ढले दिन निकले सूरज के संग रात हुई
    जब दामन मेरा भीग चुका तब पता चला बरसात हुई
    दर्द न सोया जब जब ख़ुद माजी की लोरी सुना दिया

    वाह...वाह......!!

    हाँ बैसाखी की आपको भी बधाई........!!

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  7. shaandaar sir jee. DIl ko choo liya aapne

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  8. रचना बहुत अच्छी लगी,बधाई।
    मैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा
    लगा।आप मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा
    लगेगा और अपने विचार जरूर दें। प्लीज.....
    हर रविवार को नई ग़ज़ल,गीत अपने तीनों
    ब्लाग पर डालता हूँ। मुझे यकीन है कि आप
    को जरूर पसंद आयेंगे....
    - प्रसन्न वदन चतुर्वेदी

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  9. 'धूप की चादर…'
    बहुत सुन्दर।
    ऐसे ही लिखते रहिये।

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  10. आपकी रचनायें पढ़ी...दिल खुश हो गया... लिखते रहिये, दिखते रहिये...

    आडवाणी जी वाले मेरे लेख पर आपके स्नेह भरे शब्दों ने मुझमें नयी जान फूँक दी है..दिल से शुक्रिया...

    http://shubhammangla.blogspot.com/2009/04/blog-post_10.html

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  11. बहुत ही सुन्दर रचना है!

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