Sunday, April 19, 2009

चाँदनी से भरे मुट्ठियाँ
लीपती मैं रही चिट्ठियां

आंचल में बिखरे हुए
पलको में उलझे हुए
सपनों को सिलती रही
बरसती रहीं बदलियाँ

मधुबन कई बुन लिए
टांके कई इन्द्रधनु
ममता को तुर्पते हुए
घायल हुई उँगलियाँ

सितारों को जड़ते हुए
वसंतों को मढ़ते हुए
जरीदारधागों में लिपटीं
उलझतीं रहीं गुत्थियाँ

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर गीत है।बधाई ।

    ReplyDelete
  2. Mere blogpe ye kavyamay tippanee pake meree palken bheeg gayeen...behad sundar rachna hai...shayad inheen bhavanubhutiyon ke sahare banta raha mera chhote, chhote tukdonka sansaar...
    Shukrguzareeke alawa aur koyi lafz nahee mere paas...

    ReplyDelete
  3. sarahniya kavya shaili aur sunder rachna ke liye badhai.

    ReplyDelete
  4. सितारों को जड़ते हुए
    वसंतों को मढ़ते हुए
    जरीदारधागों में लिपटीं
    उलझतीं रहीं गुत्थियाँ

    उलझी सुलझी गुत्थियों में लिपटी नज़्म....सुंदर प्रयास ...!!

    ReplyDelete
  5. पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
    आपकी शानदार शायरी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !
    वाह वाह क्या बात है! बहुत ही उन्दा लिखा है आपने !

    ReplyDelete
  6. आप के ब्लॉग पर आके अच्छा लगा . बहुत अच्छा लिखते हैं आप .बधाई.

    इस दुनिया में आके
    दिल से दिल लगाके
    जिसने प्यार न किया
    उसने यार न जिया।
    मैंने यह गीत का मुखडा लिखा है । पूरा गीत नहीं बन पा रहा है। ब्लोगरो से अपील है की मेरा यह गीत पूरा करने में मदद करें। गीत की पाँच अंतरा लिखनी हैं। जो भी ब्लोगर अंतरा लिखेगे उनका नाम अंतरा के सामने लिखा जाएगा। कमेन्ट बॉक्स में अपनी अंतरा लिखें । धन्यबाद ।

    ReplyDelete
  7. सितारों को जड़ते हुए
    वसंतों को मढ़ते हुए
    जरीदारधागों में लिपटीं
    उलझतीं रहीं गुत्थियाँ
    बहुत सुन्दर भाव तथा सुन्दर काव्य शिल्प

    ReplyDelete
  8. वाह वाह क्या बात है ! आप बहुत ही उन्दा लिखते हैं !

    ReplyDelete
  9. आंचल में बिखरे हुए
    पलको में उलझे हुए
    सपनों को सिलती रही
    बरसती रहीं बदलियाँ

    Bahut khub likha hai.

    ReplyDelete

LinkWithin

विजेट आपके ब्लॉग पर