Sunday, September 6, 2009

लहर


पलट कर जब समंदर में ,लहर यादों की आती है
बहकता है ये दिल मेरा ,नजर जब मुस्कुराती है


अंधेरे बंद कमरें में ,अचानक रोशनी करके
हर इक तहजीब से आगे ,हवा में गुदगुदी करके
घुली लम्हों में खुशबू सी ,शरारत गीत गाती है

पलट कर जब ................

दुआएं साफ दिखतीं हैं ,तेरे खामोश ओंठों पर
लरजता द्वार तक आँगन , तुम्हारी एक आहट पर
मुसलसल ये वफ़ा दिलवर ,मेरे अरमां जगाती है
पलट कर जब ...............

अकेले कैक्टस पर फूल की ,इस मेहरबानी का
नवाजिश आपकी ,बेइंतिहा ,,,,इस कद्रदानी का
'ये आराइश ये रौनक इस नजर में झिलमिलाती है.

पलट कर जब ................

17 comments:

  1. waaaah bhahut khoob bahut hi surila sa geet laga ..plz larajta ka mean batane ki kirpa karen..thanks

    ReplyDelete
  2. wah, bahut sunder , pyara geet, badhaai sweekaren.

    ReplyDelete
  3. इस गीत में गेयता गजब की है
    दुआएं साफ़ .............
    मुझे पसंद आया

    ReplyDelete
  4. कमाल की शायरी.!!! जाहो-जलाल की शायरी !! भाई इतना अच्छा लिखना मेरे मन में ईर्ष्या पैदा कर रहा है.
    आप से दो बार कहा, ई-मेल देने के लिए, आपने अनसुनी कर दी. आज अंतिम बार मांग रहा हूँ, इस फरियाद के साथ कि अपना देना गवारा नहीं तो किसी मित्र का दे दें, यकीन रखें, एक बार के बाद कभी इस्तेमाल नहीं करूंगा, कहने पर भी नहीं. इस मांग के पीछे एक प्रयोजन है, जो शुद्ध साहित्यिक है. मैं चंदा नहीं मांगूंगा, किसी साईट का विज्ञापन नहीं करूंगा, किसी युवती / महिला को भी नहीं दूंगा.
    एक बार फिर शानदार रचना के लिए जानदार रचनाकार को बधाई.

    ReplyDelete
  5. पलट कर जब समंदर में ,लहर यादों की आती है
    बहकता है ये दिल मेरा ,नजर जब मुस्कुराती है ...nazaro ka muskana dil ko bahkaataa hi hai....hmesha ki tarah sunder post...

    ReplyDelete
  6. 'गाफिल '-सी लहर का क्या कहना ,
    जो हर हालमे बहा देती है !
    ग़ज़ल को पता हो न हो ,
    कुछ गज़ब तो ऐसा है ,
    गूँज छुपाये से क्या छुपे ?
    दुनिया सुन ही लेती है ..

    ReplyDelete
  7. अंधेरे बंद कमरें में ,अचानक रोशनी करके
    हर इक तहजीब से आगे ,हवा में गुदगुदी करके
    घुली लम्हों में खुशबू सी ,शरारत गीत गाती है

    वाह वा...गर्दू जी वाह...बेमिसाल पंक्तियाँ...कविता का सारा सौन्दर्य समेटे हुए...आनंद आ गया पढ़ कर...
    नीरज

    ReplyDelete
  8. bahut hi achcha likhte hain aap..
    दुआएं साफ दिखतीं हैं ,तेरे खामोश ओंठों पर
    लरजता द्वार तक आँगन ,देहरी की एक आहट पर
    मुसलसल ये वफ़ा दिलवर ,मेरे अरमां जगाती है

    waah ! waah !waah!

    bahut umda panktiyan!

    ReplyDelete
  9. प्रेम भरे भावों की सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  10. आप के अनुरोध पर ‘संजीदगी से गाओ ये गीत दर्द का है’ग़ज़ल में ३ और शेर प्रस्तुत किया है।आप देखें तो मेहनत सार्थक हो.....

    ReplyDelete
  11. अंधेरे बंद कमरें में ,अचानक रोशनी करके
    हर इक तहजीब से आगे ,हवा में गुदगुदी करके
    घुली लम्हों में खुशबू सी ,शरारत गीत गाती है
    पलट कर जब ................

    बहुत ही बेहतरीन गीत!
    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर

    ReplyDelete
  12. Sunday, September 6, 2009
    लहर

    पलट कर जब समंदर में ,लहर यादों की आती है
    बहकता है ये दिल मेरा ,नजर जब मुस्कुराती है
    अंधेरे बंद कमरें में ,अचानक रोशनी करके
    हर इक तहजीब से आगे ,हवा में गुदगुदी करके
    घुली लम्हों में खुशबू सी ,शरारत गीत गाती है
    पलट कर जब ................
    दुआएं साफ दिखतीं हैं ,तेरे खामोश ओंठों पर
    लरजता द्वार तक आँगन ,देहरी की एक आहट पर
    मुसलसल ये वफ़ा दिलवर ,मेरे अरमां जगाती है
    पलट कर जब ...............
    अकेले कैक्टस पर फूल की ,इस मेहरबानी का
    शुक्रिया आपकी ,बेइंतिहा ,,,,इस कद्रदानी का
    रौनके बज्म बे -परवाह ,निगह में झिलमिलाती है
    पलट कर जब ................
    Posted by गर्दूं-गाफिल at 11:17 AM

    ReplyDelete
  13. century visitors time

    ReplyDelete
  14. सुनो 'गर्दू', तुम्हारी लेखनी हमको सुहाती है
    मगर रचना में देरी भी हमें बेहद सताती है
    जिगर के एक गोशे से यही आवाज़ आती है
    ये गर्दू की कलम किस तरह से कविता बनाती है
    उजाला बांटते हो और आँखें मूँद लेते हो
    सभी को चेतना देकर तुम्हीं सोए, अचेते हो
    उठो गर्दू तुम्हारी लेखनी तुमको जगाती है
    ये आलस और पर्दा छोड़ दो बाहर निकल आओ
    जो मन में राग पैठा है उसे अब आंच दिखलाओ
    सभी कृशकाय हैं केवल तेरी गज भर की छाती है.

    ReplyDelete

LinkWithin

विजेट आपके ब्लॉग पर