यहाँ तंज भी है और रंज भी है क्या खूब कहन है वाह वाह वाह
तीर ऐ जुबां खामोश भी है तलवार भी है ये वाह वाह वाह
वो रोज़ बयान बदलने को कहते हैं सियासत ,मजबूरी
बे खौफ ऐ खुदा ,बन्दा ऐ खुदा करते हैं इबादत वाह वाह वाह
कोई झल्लाए तो धमकी है , कोई धमकाए तो पागलपन
ये कातिल मौज निजामत की क्या खूब अदा है वाह वाह वाह
तलवों पे सितमगर के मालिश भलमनसाहत के घर नालिश
आफत में आब ओ ताब मिले ये अपनी जम्हूर्त वाह वाह वाह
मस्ती में दहशत गर्द यहां दहशत में देश के वाशिंदे
मुजरिम की अदालत में मुंसिफ खैर मनाता वाह वाह वाह
Saturday, April 18, 2009
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wah wah wah.
ReplyDelete'mujrim kee adalat me munsif kee '............ khair
ReplyDeletevah ! vah ! vah !
..................aur kuch kaha ja sakta hai ?
बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने !
ReplyDeleteप्रिय बन्धु काफिया अच्छा चुना है आपने, आपकी साहित्य में रूचि है तो जरा sarwatindia.blogs पढिये . वहां भी काफिये,रदीफ़ के साथ कई प्रयोग दिखाई देते हैं
ReplyDeleteमैं कोई परामर्श शुल्क नहीं लेती मैं तो अक्सर किसानों को जडी -बूटियों की खेती की ट्रेनिंग देने का भी शुल्क नहीं लेती जबकि वह मेरा पेशा है . वैसे भी शुल्क से हर चीज नहीं ख़रीदी जा सकती . आप बेफिक्र होकर जब चाहें तब फोन कर लें
simple but greattttttttttttt
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