Saturday, April 18, 2009

यहाँ तंज भी है और रंज भी है क्या खूब कहन है वाह वाह वाह
तीर ऐ जुबां खामोश भी है तलवार भी है ये वाह वाह वाह

वो रोज़ बयान बदलने को कहते हैं सियासत ,मजबूरी
बे खौफ ऐ खुदा ,बन्दा ऐ खुदा करते हैं इबादत वाह वाह वाह

कोई झल्लाए तो धमकी है , कोई धमकाए तो पागलपन
ये कातिल मौज निजामत की क्या खूब अदा है वाह वाह वाह

तलवों पे सितमगर के मालिश भलमनसाहत के घर नालिश
आफत में आब ओ ताब मिले ये अपनी जम्हूर्त वाह वाह वाह

मस्ती में दहशत गर्द यहां दहशत में देश के वाशिंदे
मुजरिम की अदालत में मुंसिफ खैर मनाता वाह वाह वाह

5 comments:

  1. 'mujrim kee adalat me munsif kee '............ khair

    vah ! vah ! vah !

    ..................aur kuch kaha ja sakta hai ?

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  2. बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने !

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  3. प्रिय बन्धु काफिया अच्छा चुना है आपने, आपकी साहित्य में रूचि है तो जरा sarwatindia.blogs पढिये . वहां भी काफिये,रदीफ़ के साथ कई प्रयोग दिखाई देते हैं
    मैं कोई परामर्श शुल्क नहीं लेती मैं तो अक्सर किसानों को जडी -बूटियों की खेती की ट्रेनिंग देने का भी शुल्क नहीं लेती जबकि वह मेरा पेशा है . वैसे भी शुल्क से हर चीज नहीं ख़रीदी जा सकती . आप बेफिक्र होकर जब चाहें तब फोन कर लें

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