Sunday, August 25, 2024

बड़े दिनों के बाद अफातु भाषा की एक रचनाकारवा ए तूफां गुजारा कहां है अभी संग ढ़ग से उछाला कहां हैउड़ जाएगें तमाम हमामों के पर्देअभी जोश ने जोश पाला कहां हैअभी अपने अहलेअहद में हैं बैठे औ कोई परचम निकाला कहां हैगुलूकार हम भी हैं माहिरे फनहमें मौसिकी ने संभाला कहां हैऐ ग़रदूं गज़ल तेरी है ये अधूरीअभी इश्क इसमें डाला कहां है

बड़े दिनों के बाद अफातु भाषा की एक रचना

कारवा ए तूफां गुजारा कहां है 
अभी संग ढ़ग से उछाला कहां है

उड़ जाएगें तमाम हमामों के पर्दे
अभी जोश ने जोश पाला कहां है

अभी अपने अहलेअहद में हैं बैठे 
औ कोई परचम निकाला कहां है

गुलूकार हम भी    हैं    माहिरे फन
हमें  मौसिकी  ने संभाला कहां   है

ऐ  ग़रदूं  गज़ल  तेरी  है  ये अधूरी
अभी  इश्क   इसमें  डाला कहां है

Face book post 
25/8/2017

Saturday, August 24, 2024

दुर्गा

जो पंचाग नहीं देखते मुर्गे वही हैं
जो सर झुकाए मानते गुर्गे वही हैं
भरने जो तत्पर खड़ी खप्पर लिए
रक्त अपराधी का पीने दुर्गे वही हैं

Saturday, August 17, 2024

लालकिला / मणिपुर/ सियासत गजल 16 अगस्त 2023 को फेसबुक पर पोस्ट

लालकिला / मणिपुर/ सियासत

मेले हैं झमेले हैं अकेले हैं यहां इस दुनियादारी में
बहुत कुछ, रखना पड़ता है, यहां पर पर्दादारी में

तौल-ले-बोल तभी मुंह खोल इल्मदां आए हैं  कहते
सियासत कब जला दे क्या ? तेरी, ईमानदारी में 

वो आए घर,बराएशौक,किया सिजदा,दिया सदका 
तोहमतें,, नाम कर दी, फिर ,मेरी तीमारदारी में

सांप की बस्तियों में ,खोल ,दरखिड़कियां रखिए
इरादा जो भी हो ,शक है ,सलह में ,समझदारी में

तोडेगा न छोड़ेगा  , रहे कोई , दोस्त  या  दुश्मन 
सियासत दुश्मनों से ,और मुहब्बत फूल  यारी में 

ग़रदू

Tuesday, August 13, 2024

जिद के आगे जीत है चिढ़ के आगे हार जीत एक संगीत है ...हार एक फटकार पानी सा निर्मल मिले संतों का व्यबहारमिलते मिलते धुल गए दाग बिना व्यापारहार खेल की सम लगे रण में है धिक्कारउत्सव में आनन्दमय प्रेमी को स्वीकार

जिद के आगे जीत है चिढ़ के आगे हार 
जीत एक संगीत है ...हार एक फटकार 

पानी सा निर्मल मिले संतों का व्यबहार
मिलते मिलते धुल गए दाग बिना व्यापार

हार खेल की सम लगे रण में है धिक्कार
उत्सव में आनन्दमय  प्रेमी को स्वीकार

LinkWithin

विजेट आपके ब्लॉग पर