Saturday, September 7, 2024

दोहे

मूरखन के संसार में     ज्ञानी की है मौज
विज्ञान कला के पीछे भागे जग की फौज

अंतर क्या है ठगी से भक्ति का बतलाओ
कहे कहे में ना चले करके भी दिखलाओ

कवि प्रवाचक भांजते आपस में क्यों लट्ठ
दोनों खावें शब्द की        भक्त पड़े हैं पट्ट

गाली देने में भला       लगे न एक छदाम
एक शब्द निकसे नही लगे यदि कुछ दाम

देख लिफाफा भरकमी  कवि कर ले कन्ट्रोल
.दिन तेरा भी आएगा        लग जाएगा मोल

Monday, September 2, 2024

एक प्रतिक्रिया

नजरूल इस्लाम 'की मूर्खतापूर्ण  नज़्म पर एक प्रतिक्रिया 

पढ़ने का समय नहीं है 
न उत्सुकता न जिज्ञासा
शब्द प्रयोग से पहले 
न जाना अर्थ न परिभाषा

जिनके लिए ग्रंथ किताब का अर्थ एक है
क्यों कि उनके लिए बहन बेटी मां बहू पत्नी एक है 
ऐसी बीमार सोच और दृष्टि है जिनकी 
उनके लिए अर्जन और विसर्जन भी एक है
जिन्हें दंडित करना है मानवता के लिए 
सरासर मूर्खता है उनसे करना 
कोई भी सकारात्मक आशा 

जो देने वाले के प्रति भी आभारी नहीं हो पाते
जिस थाली में खाते उसमें छेद करते नहीं लजाते
क्यों कि कपट और लूट जिन के साधन
और को गैर कह जीने का अधिकार नहीं दे पाते 
जिन शैतानों को रोकना है नेक जीवन के लिए 
सरासर मूर्खता है उनसे करना 
कोई भी सकारात्मक आशा

Posted on face book on date 1 / 9 / 24


कायर कोरी बाते करतेकरते रहते तूम तड़ाकधरें हथेली प्राण होमनेकरें लड़ाके धूम धड़ाकबड़ी बड़ी कविताए लिखतेलिखते बड़े बड़े आलेखलिए चाहना एक हृदय मेंहो जाए कोई उल्लेखमृतक हृदय से निकले अक्षर कैसे प्रेरण दे पाएंगेपंच सितारा के चमगादडक्या रणभेर बजा पाएंगेगाल बजाने वाले गालवगांडीव उठाएंगे कैसे डस आएंगे शत्रु कोबरेपल विपलो में फट्ट फड़ाक

कायर कोरी बाते करते
करते रहते तूम तड़ाक
धरें हथेली प्राण होमने
करें लड़ाके धूम धड़ाक

बड़ी बड़ी कविताए लिखते
लिखते बड़े बड़े आलेख
लिए चाहना एक हृदय में
हो जाए कोई उल्लेख
मृतक हृदय से निकले अक्षर
 कैसे प्रेरण दे पाएंगे
पंच सितारा के चमगादड
क्या रणभेर बजा पाएंगे
गाल बजाने वाले गालव
गांडीव उठाएंगे कैसे 
डस आएंगे शत्रु कोबरे
पल विपलो में फट्ट फड़ाक

Posted on face book at 1 /9/ 24

Sunday, August 25, 2024

बड़े दिनों के बाद अफातु भाषा की एक रचनाकारवा ए तूफां गुजारा कहां है अभी संग ढ़ग से उछाला कहां हैउड़ जाएगें तमाम हमामों के पर्देअभी जोश ने जोश पाला कहां हैअभी अपने अहलेअहद में हैं बैठे औ कोई परचम निकाला कहां हैगुलूकार हम भी हैं माहिरे फनहमें मौसिकी ने संभाला कहां हैऐ ग़रदूं गज़ल तेरी है ये अधूरीअभी इश्क इसमें डाला कहां है

बड़े दिनों के बाद अफातु भाषा की एक रचना

कारवा ए तूफां गुजारा कहां है 
अभी संग ढ़ग से उछाला कहां है

उड़ जाएगें तमाम हमामों के पर्दे
अभी जोश ने जोश पाला कहां है

अभी अपने अहलेअहद में हैं बैठे 
औ कोई परचम निकाला कहां है

गुलूकार हम भी    हैं    माहिरे फन
हमें  मौसिकी  ने संभाला कहां   है

ऐ  ग़रदूं  गज़ल  तेरी  है  ये अधूरी
अभी  इश्क   इसमें  डाला कहां है

Face book post 
25/8/2017

Saturday, August 24, 2024

दुर्गा

जो पंचाग नहीं देखते मुर्गे वही हैं
जो सर झुकाए मानते गुर्गे वही हैं
भरने जो तत्पर खड़ी खप्पर लिए
रक्त अपराधी का पीने दुर्गे वही हैं

Saturday, August 17, 2024

लालकिला / मणिपुर/ सियासत गजल 16 अगस्त 2023 को फेसबुक पर पोस्ट

लालकिला / मणिपुर/ सियासत

मेले हैं झमेले हैं अकेले हैं यहां इस दुनियादारी में
बहुत कुछ, रखना पड़ता है, यहां पर पर्दादारी में

तौल-ले-बोल तभी मुंह खोल इल्मदां आए हैं  कहते
सियासत कब जला दे क्या ? तेरी, ईमानदारी में 

वो आए घर,बराएशौक,किया सिजदा,दिया सदका 
तोहमतें,, नाम कर दी, फिर ,मेरी तीमारदारी में

सांप की बस्तियों में ,खोल ,दरखिड़कियां रखिए
इरादा जो भी हो ,शक है ,सलह में ,समझदारी में

तोडेगा न छोड़ेगा  , रहे कोई , दोस्त  या  दुश्मन 
सियासत दुश्मनों से ,और मुहब्बत फूल  यारी में 

ग़रदू

Tuesday, August 13, 2024

जिद के आगे जीत है चिढ़ के आगे हार जीत एक संगीत है ...हार एक फटकार पानी सा निर्मल मिले संतों का व्यबहारमिलते मिलते धुल गए दाग बिना व्यापारहार खेल की सम लगे रण में है धिक्कारउत्सव में आनन्दमय प्रेमी को स्वीकार

जिद के आगे जीत है चिढ़ के आगे हार 
जीत एक संगीत है ...हार एक फटकार 

पानी सा निर्मल मिले संतों का व्यबहार
मिलते मिलते धुल गए दाग बिना व्यापार

हार खेल की सम लगे रण में है धिक्कार
उत्सव में आनन्दमय  प्रेमी को स्वीकार

Sunday, June 30, 2024

।नही हैं दिखते बनाने वालेहरेक जगह हैं गिराने वालेजिन्हें बचाने तड़प रहे थेवही तो निकले फँसाने वाले2मुकर रहे हैं वे रोशनी से है उनकी किस्मत में तीरगी हीबर्क उन्हीं पर करी मुकर्ररजो आशियाँ थे दिलाने वाले3नहीं है ये कोई खुदा के बंदेये आँख वाले अक्ल के अंधेउन्ही के पाँवो जमीन खींचेंजो दे रहे हैं उन्हें निवाले4नापाक बंदे ये नाखुदा के खुद कश्तियो को डुबा रहे हैं क्या लिख सकेंगे ये खुशमिजाजीमोहब्बतों को मिटाने वालेorनापाक बंदे ये नाखुदा के जो भंवर में कश्ती फंसा रहे है क्या लिख सकेंगे ये खुशमिजाजीमोहब्बतों को मिटाने वाले5यकीं तरक्की औ उल्फतें भीनहीं तो आखिर क्या चाहते होन सरजमीं को दोजख बनाओनफरतों के न कर हवाले

नही हैं दिखते बनाने वाले
हरेक जगह हैं गिराने वाले
जिन्हें बचाने तड़प रहे थे
वही तो निकले फँसाने वाले
2
मुकर रहे हैं वे रोशनी से 
है उनकी किस्मत में तीरगी ही
बर्क उन्हीं पर करी मुकर्रर
जो आशियाँ थे दिलाने वाले
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नहीं है ये कोई खुदा के बंदे
ये आँख वाले अक्ल के अंधे
उन्ही के पाँवो जमीन खींचें
जो दे रहे हैं उन्हें निवाले
4
नापाक बंदे ये नाखुदा के 
खुद कश्तियो को डुबा रहे हैं 
क्या लिख सकेंगे ये खुशमिजाजी
मोहब्बतों को मिटाने वाले

or
नापाक बंदे ये नाखुदा के 
जो भंवर में कश्ती फंसा रहे है 
क्या लिख सकेंगे ये खुशमिजाजी
मोहब्बतों को मिटाने वाले
5
यकीं तरक्की  औ उल्फतें भी
नहीं तो आखिर क्या चाहते हो
न सरजमीं को दोजख बनाओ
नफरतों के न कर  हवाले

यकीं तरक्की  औ उल्फतें भी
नहीं तो आखिर क्या चाहते हो
न सरजमीं को करो यूं दोजख 
न नफरतों के रहो हवाले

मैं बनाता रह गया श्रेष्ठता का काफियाऔ प्रतिष्ठा ले गया लूट कर एक माफियाअनसुनी करते रहे वो हर गुहारो प्रार्थनाएक्शन जब हो गया तब कहा ये क्या कियाइस तरह से मत खुलो कि संतुलन खोना पडेभांप कर मज्मूने खत हंस पडा था डाकियाकष्ट किश्तों में भला या फ़िर गुलामी चाहिएभींच ले तू मुठ्ठियाँ बदले हर इक जुगराफ़ियातख्ता पलट होने में कितनी देर लगती है कहोकेन्द्र तब तक ही सुरक्छित अहम जब तक हांशियाउद्विग्नता बढ़ती गयी ज्यों ज्यों निकट मंजिल हुईकर दवा कुछ होश की ला पिला दे साक़िया

मैं बनाता रह गया श्रेष्ठता का काफिया
औ प्रतिष्ठा ले गया लूट कर एक माफिया

अनसुनी करते रहे वो हर गुहारो प्रार्थना
एक्शन जब हो गया तब कहा ये क्या किया

इस तरह से मत खुलो कि संतुलन खोना पडे
भांप कर मज्मूने खत हंस पडा था डाकिया

कष्ट किश्तों में भला या फ़िर गुलामी चाहिए
भींच ले तू मुठ्ठियाँ बदले हर इक जुगराफ़िया

तख्ता पलट होने में कितनी देर लगती है कहो
केन्द्र तब तक ही सुरक्छित अहम जब तक हांशिया

उद्विग्नता बढ़ती गयी ज्यों ज्यों निकट मंजिल हुई
कर दवा कुछ होश की ला पिला दे साक़िया

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