Monday, December 3, 2018

सब चलता है

सब चलता है सब चलता है
राजनीति के दावानल में
सब जलता है सब जलता है

चुनाव तक है चर्चा सारी
दुश्मन सी जूतम पैजारी
फिर तो है मौसेरे भाई
एक ही मकसद  सिर्फ कमाई
उढा रहे वादों के मखमल
बातें दावे हवा हवाई
ये नेता नगरी क्या न करा दे
दया धर्म ईमान जला दे
अयोग्य को सम्मान दिला दे
काबिल का अपमान करा दे
इज़्जत अज़्मत शोहरत उल्फत
इसकी ऩज़रों में बस ईंधन
और ईधन तो बस जलता है

ये चाहें हड़ताल करा दें
ये चाहे तो रेल जला दें
मासूमो पर तेल छिड़क कर
जब चाहें तीली दिखला दें
जाति धर्म तो खूब जलाते
भाषा और प्रांत सुलगाते
श्मशानों तक चलने की भी
ज़हमत इनको नहीं गवारा
घर बेठे ही तंदूरो में नयना जल गई
सब जलता है
सब चलता है

अजब नीति यह रीति अजब है
सोए प्रहरी  चोर सजग है
पानी में यह आग लगा दे
कावेरी से कलुष करा दे
कर्नाटक से तमिल लड़ा दे
फिट करते रहना है गोटी
समझो इसकी खाल है मोटी
इसकी सिकती है तब रोटी
जब लोगो का घर जलता है

राजनीति कोयले की कोठी
इसमें गुपचुप गुनाह पलते
धोटालो के ठंडे बस्ते
अपराधों की अमर कथाएं
इसमे गुपचुप गुपचुप जलते
हो दीवाला या घोटाला
कभी पुरलिया कभी हवाला
हैरत में हैं हम भी वो भी
कैसे खुला रह गया ताला
पर देखो कैसे एक हुए थे
जब इनका दामन जलता है
सब चलता है



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