Monday, December 3, 2018

हुई व्यवस्था गुब्बारा

हुई व्यवस्था गुब्बारा आदर्श हो गए आवारा
जिनको आए सुई चुभोना उनकी है बस पो बारा

हवाले की हवा निकल गई सेंटकिट्स भी गोल हुआ
सूटकेस का पता नहीं है लालू का चारा ढोल हुआ
जिन जिन को भीतर जाना था छाती पे चढ़ आए दोबारा

परदेशी के धन से यारो जश्न मनाते आजादी का
भूल चुके हम ईस्ट इंडिया पेड़ सींचते बरबादी का
अपनी ही कब्रों की खातिर बना रहें हैं हम गारा

हत्यारो का पता चला न आयोगों की उम्र बढ़ गई
आंखों के आंसू न सूखे देखेगें  अबला चिता चढ़ गई
केवल झूठे फूल चढ़ेगें जान रहा है चौबारा

शक्कर फिर से मीठी हो गई सबूत पेश हुए हकले
फोन की घंटी बजे टनाटन जूते फिर से चल निकले
हाथी लगती सीबीआई पकड़े चालू बताए आरा

बचकर साफ निकल जाओगे सच्चा है गर घोटाला
छोटे मोटे में अगर फंसें तो जेल हुई समझो लाला
नहीं कमाया क्या बांटोगे लोग कहेंगें . बेचारा ल्ड

व्यवस्थाओं को हुई आंव है अजब ग़जब के पेंच दांव हैं
संविधान रग रग घायल है सच्चाई बिन हांथ पांव है
घोटालों का दंगल देखो ये मारा और वो मारा

लगभग बीस साल पुरानी रचना है 

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