Tuesday, December 4, 2018

गुंचा ए गुलबदन महकता हुआ

गुंचा ए गुलबदन महकता हुआ
जुल्फ से पाजेब तक खनकता हुआ

रेशमी रूमाल में अंगार की तरह
मोम की नम आंख में दहकता हुआ

शहद के स्वाद में है मय का नशा
पुरगुल इक डाल सा लचकता हुआ

धूप के रंग रंगी चांद की गज़ल सा
नज़र से दिल तक दमकता हुआ

खिलते कंवल सा मंजर हंसी
जैसे घूंघट से  चूनर सरकता हुआ



मोहब्बते दूरियो का गम नहीं करतीं

मोहब्बते ये दूरियों का ग़म नहीं करतीं
दूरियां मोहब्बतों को कम नहीं करती

मैं चाहूं भी तो कैसे रुक के रहूं कहीं
हवाएं कोई मुकाम कायम नहीं करती

वो सिलसिला ए खत जो था दवाएदम
अब शहर की हवाएं तरदम नहीं करंतीं

फिर से साबित कर दिया खत ने तुम्हारे
खुश्बुएं खिजांओं का मातम नहीं करतीं

दिलजलों से बातें नाहक ही दिल जलाना
ग़रदूं ये तेरी बाते अब मरहम नहीं करतीं

आए , गए ,न ठहरे ,पहलू में ,जरा भी
वेवक्त की बरसातें मौसम नहीं करतीं

मोहब्बते ये दूरियों का ग़म नहीं करतीं
दूरियां मोहब्बतों को कम नहीं करती

मैं चाहूं भी तो कैसे रुक के रहूं कहीं
हवाएं कोई मुकाम कायम नहीं करती

वो सिलसिला ए खत जो था दवाएदम
अब शहर की हवाएं तरदम नहीं करंतीं

फिर से साबित कर दिया खत ने तुम्हारे
खुश्बुएं   खिजां का   मातम नहीं करतीं

दिलजलों से बातें नाहक ही दिल जलाना
ग़रदूं ये तेरी बाते अब मरहम नहीं करतीं

आए , गए ,न ठहरे ,पहलू में ,जरा भी
वेवक्त की बरसातें मौसम नहीं करतीं

गर चांदनी उतर कर

गर चांदनी उतर के दामन से लिपट जाए
ऐसे हसीन लम्हें कोई कैसे भूल जाए

रिश्ता अजीब  है ये तेरा और जमाने का
तू आरजू बढ़ाए  ये बँदिशे बढ़ाए


चेहरे से चरागां कि चरागों से तेरा चेहरा
किससे है कौन रोशन दिल को समझ न आए

तारीफ तेरी कोई तकरीर तो नहीं है
जो दिल में नहीं है वो कैसे कहा जाए


चस्पां हैं इस बदन पे तेरे बोसों के सितारे
चाहे न चाहे ग़रदूं हर रात जगमगाए

मेरी जान ले गया

मेरी जान ले गया है फिर भी है मुझसे रूठा
मुझे इंतजार उसका जिसने मुझे है लूटा

कह के मुझे अमावस ये भी कहा मिलूंगा
मेरे चांद का है वादा सच्चा कहूं कि झूठा

कैसे करूं बयां मैं उस सादगी का जलवा
लाखो में एक ग़रदूं वो नायाब नक्श बूटा

तस्कीन जिसको सुनना राहत है गुनगुनाना
उस निगार का है नगमा हर हाल में अनूठा

कोई इंतजारे जालिम कितना करेगा कब तक
चरागो के आते आते दम रोशनी का टूटा




Monday, December 3, 2018

चांद रूठे या किसी दिन

चांद रूठे या किसी दिन गम घटा बन छाएगा
जब कभी होगी ज़रूरत दिल जलाया जाएगा

ऐ खुदा मुझको बना दे तू चरागे - रहगुजर
यूं मेरा जलना किसी के काम तो आ जाएगा

आंसुओ को ढाल ले तू बादलो में गीत के
जा बरस मनमीत घर , कुछ राहते दे आएगा

मत दे हवाओं को हवा इस मौसमे खुदगर्ज में
क्या पता किस बात पे क्या हादसा हो जाएगा

आग ए नफ्रत भी जलाए और मुहब्बत भी सदा
सोच ले तू किस रजा के साथ में निभ पाएगा

तू जला दे शौक से गरदूं को घर का गम नहीं
पर ये वादा कर यहां से रौशनी ले जाएगा


जोड़ते ही दौड़ते ही हम रहे ये भूलकर
जाएगा आखिर में हर इक हाथ खाली जाएगा

मैं चारागे जीस्त  होकर कर सकूं रौशन तुम्हें
दौड़ता ही तू रहा और जोड़ता ही तू रहा (ये भूलकर)

हुई व्यवस्था गुब्बारा

हुई व्यवस्था गुब्बारा आदर्श हो गए आवारा
जिनको आए सुई चुभोना उनकी है बस पो बारा

हवाले की हवा निकल गई सेंटकिट्स भी गोल हुआ
सूटकेस का पता नहीं है लालू का चारा ढोल हुआ
जिन जिन को भीतर जाना था छाती पे चढ़ आए दोबारा

परदेशी के धन से यारो जश्न मनाते आजादी का
भूल चुके हम ईस्ट इंडिया पेड़ सींचते बरबादी का
अपनी ही कब्रों की खातिर बना रहें हैं हम गारा

हत्यारो का पता चला न आयोगों की उम्र बढ़ गई
आंखों के आंसू न सूखे देखेगें  अबला चिता चढ़ गई
केवल झूठे फूल चढ़ेगें जान रहा है चौबारा

शक्कर फिर से मीठी हो गई सबूत पेश हुए हकले
फोन की घंटी बजे टनाटन जूते फिर से चल निकले
हाथी लगती सीबीआई पकड़े चालू बताए आरा

बचकर साफ निकल जाओगे सच्चा है गर घोटाला
छोटे मोटे में अगर फंसें तो जेल हुई समझो लाला
नहीं कमाया क्या बांटोगे लोग कहेंगें . बेचारा ल्ड

व्यवस्थाओं को हुई आंव है अजब ग़जब के पेंच दांव हैं
संविधान रग रग घायल है सच्चाई बिन हांथ पांव है
घोटालों का दंगल देखो ये मारा और वो मारा

लगभग बीस साल पुरानी रचना है 

सब चलता है

सब चलता है सब चलता है
राजनीति के दावानल में
सब जलता है सब जलता है

चुनाव तक है चर्चा सारी
दुश्मन सी जूतम पैजारी
फिर तो है मौसेरे भाई
एक ही मकसद  सिर्फ कमाई
उढा रहे वादों के मखमल
बातें दावे हवा हवाई
ये नेता नगरी क्या न करा दे
दया धर्म ईमान जला दे
अयोग्य को सम्मान दिला दे
काबिल का अपमान करा दे
इज़्जत अज़्मत शोहरत उल्फत
इसकी ऩज़रों में बस ईंधन
और ईधन तो बस जलता है

ये चाहें हड़ताल करा दें
ये चाहे तो रेल जला दें
मासूमो पर तेल छिड़क कर
जब चाहें तीली दिखला दें
जाति धर्म तो खूब जलाते
भाषा और प्रांत सुलगाते
श्मशानों तक चलने की भी
ज़हमत इनको नहीं गवारा
घर बेठे ही तंदूरो में नयना जल गई
सब जलता है
सब चलता है

अजब नीति यह रीति अजब है
सोए प्रहरी  चोर सजग है
पानी में यह आग लगा दे
कावेरी से कलुष करा दे
कर्नाटक से तमिल लड़ा दे
फिट करते रहना है गोटी
समझो इसकी खाल है मोटी
इसकी सिकती है तब रोटी
जब लोगो का घर जलता है

राजनीति कोयले की कोठी
इसमें गुपचुप गुनाह पलते
धोटालो के ठंडे बस्ते
अपराधों की अमर कथाएं
इसमे गुपचुप गुपचुप जलते
हो दीवाला या घोटाला
कभी पुरलिया कभी हवाला
हैरत में हैं हम भी वो भी
कैसे खुला रह गया ताला
पर देखो कैसे एक हुए थे
जब इनका दामन जलता है
सब चलता है



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